भारत का इतिहास

By: Jun 21st, 2017 12:05 am

संविधान सभा पर प्रतिबंध समाप्त

3 जून, 1947 की योजना के फलस्वरूप मुस्लिम बहुल क्षेत्र भारत से निकल गए और इसके कारण जिस योजना के आधार पर संविधान सभा अपनी प्रथम बैठक के समय से काम करती  रही थी, उसके प्रक्रियागत और सारभूत दोनों भागों में क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया। अब मंत्रि मिशन की योजना के कई महत्त्वपूर्ण भाग प्रभावी नहीं रहे। जैसा कि संघ समिति ( यूनियन पावर्स कमेटी) ने अपनी 5 जुलाई, 1947 की रिपोर्ट में कहा, देश के विभाजन का फैसला हो जाने के बाद संविधान सभा उन मर्यादाओं को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं रही, जो मंत्रि मिशन योजना के अंतर्गत केंद्रीय सरकार पर आरोपित की गई थीं। सभा ने इन मर्यादाओं को मुस्लिम लीग को संतुष्ट करने के लिए समझौते के रूप में स्वीकार किया था। हालांकि वे देश की प्रशासनिक आवश्यकताओं के प्रतिकूल थीं। इसी तरह अब संविधान सभा के लिए यह भी आवश्यक नहीं रहा  कि वह विभागों में विभक्त हो और प्रांत समूहों के प्रश्न पर विचार करे। संक्षेप में , श्री केएम मुंशी के शब्दों में , 16 मई की योजना ने संविधान सभा के ऊपर जो प्रतिबंध लगाए थे, वे अब सब समाप्त हो गए। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के फलस्वरूप भारत , भारत और पाकिस्तान नामक दो डोमिनियनों में विभाजित हो गया। पाकिस्तान के लिए अलग से संविधान सभा की व्यवस्था की गई। दोनों देशों की संविधान सभाओं को अपने- अपने डोेमिनियन के लिए विधान मंडल का भी कार्य करना था और इस क्षमता में उन्हें अपने- अपने क्षेत्रों में ब्रिटिश संसद की सारी शक्ति प्राप्त हो गई थी। 15 अगस्त, 1947 तब अधिकांश देशी राज्यों के प्रतिनिधि भी संविधान सभा में आ गए। मंत्रि मिशन की योजना में 93 स्थान देशी राज्यों के लिए निर्धारित किए गए थे। योजना के पैरा 19 (2) में इन प्रतिनिधियों के चुनाव की पद्धति का निरूपण किया गया था। इस संबंध में व्याख्या की गई थी कि नरेश मंडल एक वार्ता समिति की स्थापना करेगा और इसी के अनुरूप एक राज्य समिति की स्थापना संविधान सभा करेगी। ये दोनों समितियां मिलकर देशी राज्यों के प्रतिनिधियों के चुनाव की पद्धति तय कर सकती थीं। फलतः इन दोनों समितियों की स्थापना की  गई और उन्होंने कई बैठकों के बाद स्थानों के वितरण के संबंध में एक  योजना का अनुमोदन किया। ब्रिटिश की भांति ही जिन बड़े राज्यों की जनसंख्या अधिक थी, उनके लिए उनकी जनसंख्या के आधार अलग से स्थान निश्चित किए जाने थे। 10 लाख की जनसंख्या के लिए एक स्थान निर्धारित किया जाना था। यदि जनसंख्या इससे तीन चौथाई या अधिक हो तो उसके लिए एक स्थान निश्चित किया जाना था और यदि जनसंख्या इससे कम हो तो  उसकी उपेक्षा की जा सकती थी। छोटे राज्यों को दो वर्गों में बांट दिया गया था। सीमावर्ती वर्ग और अंतर्वर्ती वर्ग। इन वर्गों के संदर्भ में 5 लाख या इससे अधिक जनसंख्या के लिए एक स्थान निर्धारित किया जाना था।

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