मत भूलें कि किसान है तो जहान है

By: Jun 12th, 2017 12:03 am

मोहिंद्र सिंह चौहान लेखक,नेरी, हमीरपुर से हैं

देश चाहे कितना भी परमाणु शक्ति संपन्न बन जाए, पर यदि उस देश का किसान कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर लेता है, तो उस परमाणु शक्ति संपन्नता के कोई मायने नहीं हैं। देश को समृद्ध बनाना है, तो किसान को खुशहाल बनाना ही होगा। अन्नदाता अगर सड़कों पर है, तो अनाज कौन उगाएगा…

बुजुर्ग कहते हैं कि घड़ी का भूला हुआ 100 कोस दूर चला जाता है। आज भारत वर्ष के किसान की हालत देखकर कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है कि हम भटककर 100 कोस दूर रास्ते की मंजिल तक अग्रसर हैं। आए दिन मीडिया को भी मुद्दा मिल जाता है कि फलां जगह किसान ने आत्महत्या कर ली, किसान शब्द मात्र गरीबी का पर्याय बनकर रह गया है। वो दिन कब आएंगे जब हमें देखने को मिलेगा कि किसानी खेती एक संपन्नता का प्रतीक है। किसी भी समाज की संपन्नता का आईना उसका परिवेश होता है। आज हम कृषि विकास के बारे में जितनी भी डींगे हांक लें, मगर हमारे खेत खलिहान उसकी तस्वीर को बयां कर देते हैं। यहां मुझे कबीर जी का यह दोहा स्मरण आ रहा है कि प्रेम छिपाए न छिपे जा घट प्रगट होय, जो पै मुख वोला नहीं नैन देत हैं रोय। बड़ी-बड़ी योजनाएं- परियोजनाएं, बड़े-बड़े सेमिनार हाई प्रोफाइल कान्फ्रेंस, गोष्ठियां, किसान मेले, राजनीतिक पार्टियों की किसान सभाएं महज  राजनीतिक मुद्दे हैं। कृषि के विकास के नाम पर देश के भारी भरकम धन का आबंटन होता है। जब हम किसी रास्ते से गुजरते हैं और खेती की अच्छी तस्वीर नजर आती है, तो हमारा मन प्रसन्न हो जाता है। जब यह एहसास होता है कि किसान के खेत हरे-भरे हैं जाहिर है उसका घर भी संपन्न होगा। निःसंदेह हमारे देश ने इतना अन्न उत्पादन कर लिया है कि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। मगर दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि हमारी 35 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे निर्वाह कर रही है। भारत वर्ष का कुपोषण में दुनिया में 67वां स्थान है, लाखों लोगों को पेट भर खाना नसीब नहीं होता है। भूखा व्यक्ति कुछ करना तो क्या सोच भी नहीं सकता। वो चाहे ईमानदारी का विषय हो या स्वच्छता का या अन्य सामाजिक या नैतिक दायित्व। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले यह तय कर लेना चाहिए कि इसे प्रारंभ कहां से करना है।

किसी कार्य को हमेशा निम्न स्तर से प्रारंभ करना चाहिए। जिस प्रकार पौधे को जड़ों में पानी दिया जाता है। किसी भी व्यवस्थ की मूल समस्या को टटोलकर उस समस्या का हल होना चाहिए। भारत वर्ष की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है। गांव में रहने वाले 99 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेतीबाड़ी से जुड़े होते हैं या खेती आधारित व्यवस्थाओं से जुड़े होते हैं और जब तक ये 70 प्रतिशत जनसंख्या संपन्न नहीं होगी, तब तक भारत वर्ष संपन्न नहीं हो सकता। देश की जीडीपी में 55 लोगों के जुड़े होने के बावजूद 40.5 प्रतिशत का योगदान है। दुनिया की 17 प्रतिशत जनसंख्या भारत वर्ष में रहती है, निजी क्षेत्र विकास करता है, लेकिन सरकारी क्षेत्र नहीं। कृषि एवं बागबानी में सरकार को चाहिए कि सभी लोगों को कृषि बागबानी के लिए कामन कोड निर्धारित करना चाहिए। प्रगतिशील किसानों एवं वैज्ञानिकों की सिफारिशों के अनुरूप ही कृषि बागबानी की रूपरेखा तैयार होनी चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 92000 करोड़ रुपए के कृषि उत्पाद बर्बाद हो जाते हैं। प्रतिवर्ष 20698 करोड़ के अनाज, 16644 करोड़ के फल, 14842 करोड़ रुपए की सब्जियां, 18987 करोड़ के पशु उत्पाद, 9325 करोड़ के मसाले, 3877 करोड़ रुपए के दलहन, 8278 करोड़ रुपए के तिलहन बर्बाद हो जाते हैं। वर्तमान में यदि पोस्ट हार्वेस्ट प्रबंधन का सुदृढीकरण कर लिया  जाए, तो भविष्य के लिए उसी आधार पर रूपरेखा तैयार की जा सकती है। कृषि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केवल मंडीकरण एवं पोस्ट हारर्वेस्ट प्रबंधन द्वारा ही काफी सीमा तक कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाया जा सकता है यही नहीं, कुछ विकारों को तो सरकार सख्त कानून बनाकर भी सुधार सकती है। कृषि विकास के लिए ऐसे विकास पथ निर्माण की आवश्यकता है कि पथ पर कदम रखते ही गणतव्य तक सफर आसान हो। मसलन किसान के लिए बीज बोने से लेकर फसल बेचने तक की व्यवस्था सुचारू होनी चाहिए जिसकी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।  किसान  को किसी भी स्तर पर भटकना न पड़े, चाहे अच्छे बीज की बात हो, सिंचाई की सुविधा हो, विपणन की समस्या हो या तकनीकी अथवा वैज्ञानिक जानकारी हो। हर स्तर पर किसान के लिए इन सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था हो तभी कृषि विकास के लिए एक कृषि विकास पथ निर्माण संभव है। देश चाहे कितना भी परमाणु शक्ति संपन्न बन जाए, पर यदि उस देश का किसान कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर लेता है, तो उस परमाणु शक्ति संपन्नता के कोई मायने नहीं हैं। देश को समृद्ध बनाना है, तो किसान को खुशहाल बनाना ही होगा। अन्नदाता अगर सड़कों पर है, तो अनाज कौन उगाएगा। तभी तो कहते हैं कि किसान है, तो जहान है, वरना कुछ भी नहीं।

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