मध्य हिमालय में जबरन की हुई शादी को कहते हैं ‘हर’

By: Jun 21st, 2017 12:05 am

मध्य हिमालयी भाग में जब कोई लड़का मेले, किसी शादी आदि में से किसी लड़की को जबरदस्ती उठाकर शादी कर लेता है यालड़की-लड़के के साथ स्वयं भाग जाती है तो इसे ‘हर’ शादी कहा जाता है…

हिमाचल में क्षेत्रानुसार विवाह

प्रत्येक बाराती को पीला फूल दिया जाता है, जो वह टोपी में लगाता है। शराब की महफिल जमती है। सवाल-जवाब के रूप में गाने गाए जाते हैं। नाच होता है उसके बाद बारात के दो तीन सदस्य लड़की के कमरे में जाते हैं और गाने व छांग पीने के बाद लड़की के माथे पर मक्खन का टीका लगाते हैं। लड़की को भी उसके मां-बाप छांग देते हैं। दूसरे दिन बारात वापस जाती है। बैंड सबसे आगे जाता है, उसके पीछे लामा, उसके पीछे बाकी। जब बारात लड़के के गांव पहुंचती है तो पहले वह मंदिर में ठहरते हैं। बाद में लड़की पहले अपनी सास के पास जाती है, झुकती है और एक रुपए देती है। बकरा काटा जाता है, नाच-गान, खाना-पीना होता है और अंत में दूल्हा उसके गले में सूखे न्योजे और खुमानी की माला डालकर उसे स्वीकार करता है। दुल्हा और दूल्हन 10-15 दिन के बाद लड़की के मां-बाप के घर जाते हैं और साथ में दस-बीस किलो गेहूं या जौ का आटा ले जाते हैं जो लड़की के संबंधियों में बांटा जाता है। सप्ताह भर वहां रहने के बाद वे वापस आ जाते हैं।

‘हर’ : मध्य हिमालयी भाग में जब कोई लड़का मेले, किसी शादी आदि में से किसी लड़की को जबरदस्ती उठाकर शादी कर लेता है या लड़की-लड़के के साथ स्वयं भाग जाती है तो इसे ‘हर’ शादी कहा जाता है। ऐसी सूरत में लड़के के मां-बाप बाद में लड़की के मां-बाप से समझौता करके उनके लड़के द्वारा किए गए काम के कारण बेइज्जती की क्षतिपूर्ति के लिए 100 से 500 रुपए तक का बकरा आदि लेते हैं। किन्नौर इलाके में ऐसी शादी को दुबदुब, चुचिस या खुटकिमा कहते हैं। एक माह के उपरांत जब लड़का-लड़की को लेकर मायके जाता है, तो अपने साथ तीन-चार टोकरी पकवान तथा लड़की की मां के लिए सूखे मेवे की माला जिसे ‘टूमलैंग’ कहते हैं, ले जाता है। इस संस्कार को ‘स्ठैन टैनिक’ कहा जाता है।

रीत : झाझरा या गाड्डर शादी में जब पति- पत्नी में जब अनबन हो जाती है और वे इकट्ठे नहीं रह सकते, तो लड़की अपने मां-बाप के घर चली जाती है और लड़की का बाप पिछले पति को रीत का पैसा देकर, जिसमें उसके पति द्वारा दिए गए गहने, कपड़ों की कीमत या शादी के अन्य खर्च शामिल होते हैं। बिना कोई औपचारिक तलाक लिए, छुड़ा सकता है। दूसरी शादी करने की सूरत में यह रीत दूसरे पति द्वारा दी जाती है। यह रिवाज स्त्री की स्वतंत्रता का प्रतीक है कि उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे बांध कर रखा नहीं जा सकता और उसका पति उसपर जुर्म नहीं कर सकता। रीत का सारा खर्चा होने वाले पति द्वारा दिया जाता है। बहुपति प्रथाः कुछ समय पहले तक हिमाचल के ऊपरी क्षेत्रों, सिरमौर के गिरिपार के क्षेत्र व सराज के इलाकों में बहुपति प्रथा का प्रचलन था। इसका मूल लोग महाभारत में ढूंढते हैं कि पांचों पांडव भाइयों ने एक पत्नी द्रौपदी से विवाह किया था।

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