रुठे शनि को मनाने का पर्व है शनैश्चरी अमावस्या

By: Jun 24th, 2017 12:11 am

Aasthaअमावस्या शनिदेव का विशेष दिन है और यदि अमावस्या शनिवार के दिन आ जाए तब यह दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इस बार 24 जून कोे शनिवार होने पर यह दिन शनिदेव का विशेष दिन है।  है। अंधेरे के स्वामी शनिदेव हैं और अमावस्या के दिन घनी काली अंधेरी रात होती है। अंधेरे से उजाले की ओर आने की प्रक्रिया को ही अमावस्या शांति कहते हैं। इसलिए इस दिन जो उपाय, पूजा, दान-पुण्य शनिदेव के लिए किए जाते हैं, वे बहुत जल्दी स्वीकार हो जाते हैं और बहुत ही अच्छा फल प्रदान करते हैं। ज्योतिष में नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। शनि को नवग्रहों में सर्वोच्च न्यायाधीश कहा गया है। नीलम रत्न, गंगा से हिमालय तक का प्रदेश, वायु तत्त्व, विषैली रुचि, हमेशा नीचे रहने वाली दृष्टि, स्त्री स्थान, तीक्ष्ण स्वभाव आदि पर इनका अधिकार है। शनिदेव मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी हैं। मकर राशि से कम तथा कुंभ राशि से अधिक स्नेह करते हैं। मकर राशि या कुंभ राशि पर स्वगृही होकर केंद्र में विराजमान हो तों व्यक्ति की सारी सुरक्षा का भार शनि संभाल लेते हैं। शनि कभी वक्री होकर तो कभी मार्गी होकर अपना प्रभाव दिखाते हैं। जब वक्री गति से चलते हैं तो अपने पीछे वाली राशि पर अधिक प्रभाव डालते हैं और जब मार्गी होते हैं तो अपने आगे की राशि पर अधिक प्रभाव डालते हैं। जिस राशि पर शनि विराजमान होते हैं, उस राशि के पीछे की राशि तथा उस राशि के आगे की राशि पर शनि की साढ़ेसाती लग जाया करती है और जब शनि चंद्रमा से चतुर्थ भाव या अष्टम भाव में विराजमान होते हैं तो शनि का ढैय्या लग जाता है। शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। शनि को ज्योतिष में विच्छेदात्मक ग्रह माना गया है। एक ओर शनि मृत्यु प्रधान ग्रह माना गया है वहीं दूसरी ओर शुभ होने पर भौतिक जीवन में श्रेष्ठता भी देता है। शनि फल तत्काल एवं निश्चय ही देता है। किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि यदि षष्टम भाव में विराजमान हो तो असाध्य बीमारियों से बचाता है, अष्टम भाव में होने पर आयु बढ़ाता है तथा द्वादश भाव में विराजमान होने पर कोर्ट कचहरी की विपत्ति आने पर भारी नुकसान से बचाने तथा विजय दिलाने का काम करता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में यह सेवा देने वाले उसके सहकर्मी या उसके अधीन कार्य करने वाले लोग व्यक्ति के विरोधी हो जाएं, तो समझ लेना चाहिए कि शनि पीड़ा है। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि की स्थिति कमजोर होती है, वह व्यक्ति पापकर्म को बढ़ावा देता है, युद्ध करता है, विकृत अंगों वाला हो जाता है,  लोगों का अनिष्ट करता है, रोगी हो जाता है, वन में विचरण करने लगता है।

-पं.विवेक शर्मा

श्री शनि ज्योतिष केंद्र, 531, फर्स्ट फ्लोर, सेक्टर-11, पंचकूला

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