लोक संपृक्ति के कथाकार अरुण भारती का जाना

By: Jun 19th, 2017 12:05 am

‘भेडि़ए’ शीर्षक से ही वर्ष 1990 में अरुण भारती का पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। उस संग्रह की कहानियों-कब्र, टावर, स्वांग और शून्य से शून्य तक के अख्तर, नत्थू, चैतिया और ज्ञानी जैसे पात्र आज भी याद आते हैं। अरुण भारती का दूसरा कहानी संग्रह ‘औरतें तथा अन्य कहानियां’ 1994 में प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व मार्च 1993 में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में डा. प्रेम सिंह के संयोजन में एक विशाल हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ था। उसमें हिमाचली लेखकों को जोड़ने का जिम्मा मुझे सौंपा गया था। वह यादगार सम्मेलन वरिष्ठ कवि त्रिलोचन जी की अध्यक्षता में हुआ था। उसके एक सत्र में अरुण भारती ने अपनी ‘औरतें’ शीर्षक कहानी पढ़ी तो सत्र के बाद उन्हें कई लेखिकाओं ने घेर लिया था। उनका कहना था कि स्त्री के मन को समझने में कथाकार ने कमाल किया है। घिरे हुए भारती को देखकर कवि त्रिलोचन कह रहे थे-‘यह भारती तो बड़ा जादूगर निकला, महफिल ही समेट ली है ’…

सुपरिचित कहानीकार और सक्रिय संस्कृति कर्मी अरुण भारती का देहावसान उनके बड़े दायरे के परिचितों के लिए भले ही अचानक हुआ रहा होगा, लेकिन उनके अंतरंग मित्रों को पिछले कुछ वर्षों से मालूम था कि वह किसी रोज भी विदा ले सकते हैं। उन्हें मधुमेह के साथ हृदय रोग भी कुछ ऐसा था कि कई बार उनकी धड़कन ही मंद पड़ जाती और चक्कर आते थे। उन दिनों उनका एचबी छह ग्राम रह गया था। उपचार के प्रति लापरवाही के साथ, घरेलू उपयोग के लिए भी उन्हें अपनी कार चलानी ही होती थी। इस जिद में आखिर वही हुआ, जो उन्हें खुद मालूम  था। शिमला से लौटते हुए चैली में चक्कर आया। गाड़ी रोककर घनाहटी में प्रो. जयदेव गुप्ता को फोन किया, जिनके पास धामी से शिमला आते-जाते उनकी बैठकी हमेशा होती थी। घनाहटी की डिस्पेंसरी में ऑक्सीजन चढ़ाकर उन्हें 108 में इंदिरा गांधी अस्पताल के लिए ले जाते हुए प्रो. गुप्ता ने मुझे इस घटना की सूचना दी और अस्पताल पहुंचने के लिए कहा। मैं माल रोड से चला ही था कि तभी दूसरा फोन आया-हमारे भारती ने रास्ते में ही आखिरी सांस ले ली, अब घर लौट  रहे हैं। 12 जून का वह दिन मित्र के लिए घातक साबित हुआ, जबकि पहली मई, 1952 को जन्मे हेमानंद की आयु उस रोज 65 वर्ष 42 दिन की ही हुई थी। रात सात बजे तक प्रकाश बादल के साथ हम गांव धामी के नीचे श्मशान पर पहुंचे तो हेमानंद शर्मा ‘अरुण भारती’ के उस हल्के शरीर को अग्नि ने समेट लिया था। हमारे पास शेष थे उनकी दोस्ती के किस्से और कथाकार की यादगार कहानियां।

हेमानंद शर्मा ने 1970 में शिमला के तार विभाग में टेलीफोन आपरेटर की नौकरी शुरू की तो वहां कवि पद्म गुप्त अमिताभ पहले से सेवारत थे। उनकी संगत में ‘अरुण भारती’ होकर वह कविताएं लिखने लगे थे। 1981 में अमिताभ शिमला से चले गए तो भारती का कहानीकार खुले में निकल आया। उसी दौर में शिमला में साहित्यिक गतिविधियों का नवोत्थान चल निकला था। तभी अरुण भारती हम लोगों की मित्र मंडली में शामिल हो गए थे। फिर 1985 में ‘विपाशा’ का प्रकाशन शुरू हुआ और अरुण  भारती की कहानियां उसमें लगातार छपने लगीं। उसी दौर में केशव के संपादन में ‘आहटें’ शीर्षक से हिमाचल के लेखकों की कहानियोें का संकलन प्रकाशित  हुआ। उस पुस्तक का लोकार्पण शिमला में वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने  किया तो उनका सारा भाषण अरुण भारती की कहानी ‘भेडि़ए’ और उसकी प्रमुख जुझारू पात्र ‘बसंती’ पर ही केंद्रित  हो गया था। वहीं से अरुण भारती कहानीकार के रूप में खास तौर से चर्चा में आ गए थे।

‘भेडि़ए’ शीर्षक से ही वर्ष 1990 में अरुण भारती का पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। उस संग्रह की कहानियों-कब्र, टावर, स्वांग और शून्य से शून्य तक के अख्तर, नत्थू, चैतिया और ज्ञानी जैसे पात्र आज भी याद आते हैं। अरुण भारती का दूसरा कहानी संग्रह ‘औरतें तथा अन्य कहानियां’ 1994 में प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व मार्च 1993 में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में डा. प्रेम सिंह के संयोजन में एक विशाल हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ था। उसमें हिमाचली लेखकों को जोड़ने का जिम्मा मुझे सौंपा गया था। वह यादगार सम्मेलन वरिष्ठ कवि त्रिलोचन जी की अध्यक्षता में हुआ था। उसके एक सत्र में अरुण भारती ने अपनी ‘औरतें’ शीर्षक कहानी पढ़ी तो सत्र के बाद उन्हें कई लेखिकाओं ने घेर लिया था। उनका कहना था कि स्त्री के मन को समझने में कथाकार ने कमाल किया है। घिरे हुए भारती को देखकर कवि त्रिलोचन कह रहे थे-‘यह भारती तो बड़ा जादूगर निकला, महफिल ही समेट ली है।’ अरुण भारती की तीसरी कहानी संग्रह ‘अच्छे लोग, बुरे लोग’ वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ, लेकिन पत्रिका में प्रकाशित अनेक कहानियां, संग्रह में आने को शेष हैं। इस संग्रह की पहली कहानी ‘गॉड नोज’ का पाठ उन्होंने गत 19 मई को शिमला में भाषा विभाग की संगोष्ठी में किया था। वह जैसे-कैसे पहुंच गए थे, उनकी आवाज भी कमजोर थी। यही उनका आखिरी पाठ रहा।

एक सफल कहानीकार होने के साथ अरुण भारती नाटक लेखक, लोक नाट्य कलाकार भी थे। उन्होंने मंचन के लिए-संशय, जंग और आंगन ये तीन नाटक भी लिखे। अनेक रेडियो नाटकों के अतिरिक्त आकाशवाणी शिमला से उनका लिखा धारावाहिक ‘चंदू-नंदू का कारखाना’ विशेष चर्चित रहा। लोक नाट्य ‘करपाला’ के वह मंझे हुए कलाकार थे। उनकी कहानियों, नाटकों जैसी रचनाओं में भी ‘करपाला’  का बल दिखाई देता है। कहानियों, नाटकों में शिमला के आसपास के ग्रामीण जीवन की जीवंत छवियां देखते हुए अरुण भारती वरिष्ठ लेखक रत्न सिंह हिमेश की परंपरा में भी दिखाई देते हैं। उन्होंने ग्रामीण परिवेश की ऐसी कहानियां रची हैं, जो समय के साथ निरंतर बदलते समाज और विघटित होते जीवन मूल्यों की दास्तान है। उनकी रचनाएं अविश्वसनीय, असहज और अतिरंजना पूर्ण घटनाओं के वर्णन नहीं हैं, बल्कि पात्रों और कथ्य के अनुकूल स्वतः स्फूर्त भाषा में संवेदना का निर्वाह करती सहज पठनीय रचनाएं हैं।

अरुण भारती स्वभाव से ही कहानीकार थे। आम बात करते हुए भी हम मजाक में उन्हें टोका करते थे- ‘अब कहानी न बनाना, सीधी बात सुना दो’। वह राह चलते या किसी चौपाल पर कथानक और उसके पात्र पकड़ लेते थे। उनसे तब तक पहचान बढ़ाते रहते, जब तक कहानी पककर तैयार नहीं हो जाती थी। यही कारण रहा कि उनकी कहानियां वाक्य जोड़-जोड़कर गढ़ी गई नहीं हैं, बल्कि लोक संपृक्ति से लबालब भरी रचनाएं हैं। अरुण भारती स्वयं भी एक जीवंत कथा के पात्र थे। अनेक विषय क्षेत्रों का जानकार, दोस्तों का दोस्त। मैं अपने इस प्यारे दोस्त से अकसर कहा करता था-‘दुनिया-जहान की कहानियां लिखते हो मित्र, तुम्हारा जीवन तो उपन्यास बना पड़ा है।’

-डा. तुलसी रमण

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