वाह रे कलियुगी बाप

By: Jun 16th, 2017 12:02 am

( प्रेम चंद्र माहिल, लरहाना, हमीरपुर )

वाह रे कलियुगी बाप, तेरा हर जगह देखा क्रियाकलाप,

लड़के की रिश्तेदारी करने पर, अकड़ कर किरदार निभाता है,

पुत्रवधु संग दहेज में, खूब माल घर लाता है,

पुत्री को गले लगाकर, पुत्रवधु से टांगें दबाता है,

पुत्री को पलंग पर बिठाकर, पुत्रवधु  से सारे काम करवाता है,

एक पुत्र को गले लगाकर, दूसरे को दूर भगाता है,

बच्चों में झगड़ा करवा कर, स्वयं पंच बन जाता है,

बच्चों की बुराइयों को छुपा कर, उनकी प्रशंसा का ढिंढोरा पिटवाता है,

बच्चों को संस्कार देने के यह लायक नहीं,

क्योंकि संस्कार इसके पास नहीं,

अपने जीवन का यह बोझ ढोता है, शाम को बोतल गड़क कर यह सोता है,

बाप की इज्जतदार कुर्सी को छोड़ कर, जो भटकता है,

वहीं कुबाप की कुर्सी पर बैठकर जीवन भर तड़पता है।

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