शर्तों ने पेचीदी की पुरस्कार की पात्रता

By: Jun 27th, 2017 12:05 am

सुरेश शर्मा

लेखक, धर्मशाला से हैं

newsविभाग व सरकार को चाहिए कि वे अपने अध्यापकों, पाठशाला के मुखियाओं पर निगरानी रखे। व्यवस्था में कमी पाए जाने पर दंड का विधान भी हो तथा उत्कृष्ट कार्य करने वाले अध्यापकों का सम्मान भी हो। अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए उनको स्वयं न आवेदन करना पड़े, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की आंखें निरंतर उन पर निगरानी रखें तथा सम्मानित करें…

‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’ हिंदी का यह मुहावरा आम तौर पर ऐसे समय प्रयोग होता है जो कार्य कभी भी पूरा होने वाला न हो या ऐसी शर्त लगा देना जो असंभव तो नहीं, परंतु बहुत ही मुश्किल से पूरा होने वाला हो। एक किंवदंती के अनुसार कहा जाता है कि कभी किसी नृत्यांगना ने नृत्य करने से पूर्व नौ मन तेल के दीये जलने पर रोशनी होने पर ही नृत्य करने की शर्त रखी। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बोर्ड परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने वाले अध्यापकों, मुख्याध्यापकों व प्रधानाचायों के लिए बीते पांच वर्षों में 90 प्रतिशत परीक्षा परिणाम देने पर उनकी नौकरी में सेवा विस्तार देने की योजना है। मुख्यमंत्री शिक्षक सम्मान योजना के अनुसार स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक के लिए इस योजना के अनुसार नौकरी में सेवा विस्तार तभी मिलेगा, जब शिक्षक अपने विषय में लगातार पांच वर्ष 90 प्रतिशत परिणाम देगा। इस बारे में इस वर्ष विभाग ने सत्र 2012-13 से 2016-17 तक की समय अवधि रखी है। इसके साथ ही शिक्षक को इस योजना के अंतर्गत तभी चयनित किया जाएगा, जब उसके साथी शिक्षक का भी उसके विषय में 90 प्रतिशत परिणाम हो। अध्यापक को सम्मान के लिए तभी चुना जाएगा, जबकि उसकी कक्षा में पास होने वाले विद्यार्थियों के औसत अंक 60 प्रतिशत से अधिक हों। मुख्याध्यापकों व प्रधानाचार्यों को तभी इस सम्मान के लिए चुना जाएगा जब उनकी पाठशाला में दो अन्य विषयों का परिणाम भी 90 प्रतिशत से अधिक होगा।

यहां पर विचारणीय प्रश्न यह कि उपरोक्त सम्मान योजना के लिए इतनी शर्तों का पूरा होना संभव है? शिक्षा विभाग ने इस सम्मान के लिए आवेदन करने के लिए 30 जून, 2017 तक का समय निश्चित किया है, जबकि अभी तक विभाग के पास इस सम्मान व नौकरी में सेवा विस्तार के लिए कोई भी आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। इस सम्मान योजना के अंतर्गत गणित, अंग्रेजी तथा विज्ञान का कोई भी प्रशिक्षित स्नातक, पीजीटी तथा किसी पाठशाला का मुखिया मानकों के आधार पर चयनित होगा, ऐसा संभव नहीं दिखता। जहां पर मेहनत करने वाले अध्यापकों को सम्मानित करने का उद्देश्य है, वहीं पर सम्मान योजना में निश्चित किए गए नियमों व मानकों के अनुरूप अध्यापकों के निराश व निरुत्साहित होना ही है।

मुख्यमंत्री शिक्षा सम्मान योजना का उद्देश्य कर्मठ, ईमानदार व कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापकों का सम्मान करना है, लेकिन इसके लिए नियमों व मानकों की पेचीदगी व कलिष्ठता ने अध्यापकों व पाठशालाओं के मुख्याध्यापकों  व प्रधानाचार्यों को सोचने पर विवश कर दिया है। यहां पर इस बात पर भी विचार किया जाना अतिआवश्यक है कि सम्मान केवल तीन विषयों के अध्यापकों के लिए ही क्यों? अन्य विषय व अन्य गतिविधियां भी शिक्षण संस्थानों में आयोजित की जाती हैं, उनके आयोजन व शिक्षण- प्रशिक्षण के लिए भी अध्यापक मेहनत, परिश्रम व कर्त्तव्यनिष्ठा से कार्य करते हैं। हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में ही कार्यरत ऐसे भी अध्यापक मिल सकते हैं, जिन्होंने न केवल पांच वर्ष तक बल्कि 15 से 20 वर्षों तक निरंतर 90 प्रतिशत नहीं, बल्कि सौ फीसदी परिणाम देकर पाठशाला के लिए उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की हैं। उनका भी सम्मान होना चाहिए। उन्हें भी प्रोत्साहित किया जाना अपेक्षित है।

मानवीय निर्माण की प्रक्रिया में अनेक विषयों, गतिविधियों व व्यक्तियों  की भूमिका रहती है। शिक्षण की इस प्रक्रिया में न केवल कुछ विषय, न केवल कुछ व्यक्ति, न केवल अंक प्रतिशतता, बल्कि बच्चे के विकास के लिए सभी सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, नागरिक, सृजनात्मक तथा रचनात्मक क्रियाएं व उनके आयोजक अध्यापक उतने ही महत्त्वपूर्ण होते हैं, जितने कि पाठ्यक्रम के विषय। बच्चे के सर्वांगीण विकास का मूल्यांकन न केवल शैक्षणिक, बौद्धिक व मानसिक विकास के आधार पर बल्कि सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, नागरिक, शारीरिक व मानवीय गुणों के आधार पर निर्धारित होता है। पांच वर्ष तक किसी भी विषय के किसी भी अध्यापक के लिए सौ फीसदी परिणाम देना एक विशेष उपलब्धि है, जो कि कोई सरल व साधारण कार्य नहीं है। वहीं दूसरी ओर वर्तमान व्यवस्था में किस पाठशाला में कौन अध्यापक लगातार पांच वर्ष तक एक ही पाठशाला में कार्य करता है? सरकार की स्थानांतरण नीति के अनुसार अगर अध्यापक एक ही पाठशाला में पांच वर्ष से कार्य कर 90 प्रतिशत परिणाम देता है, तो निश्चित रूप से यह बड़ी उपलब्धि है। अध्यापकों का स्थानांतरण तो उनकी मर्जी, विभाग व सरकार की ओर से पांच वर्ष से पूर्व भी हो जाता है। शत-प्रतिशत परीक्षा परिणाम देने के लिए अध्यापक का स्थायित्व भी आवश्यक है। परीक्षा परिणाम, भौतिक साधनों, प्रशासनिक कारणों, विद्यार्थियों के स्तर, सामाजिक व राजनीतिक परिवेश पर भी निर्भर करते हैं। विभाग व सरकार को चाहिए कि वे अपने अध्यापकों, पाठशाला के मुखियाओं पर निगरानी रखे। व्यवस्था में कमी पाए जाने पर दंड का विधान भी हो तथा उत्कृष्ट कार्य करने वाले अध्यापकों का सम्मान भी हो। अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए उनको स्वयं न आवेदन करना पड़े, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की आंखें निरंतर उन पर निगरानी रखें तथा सम्मानित करें, ताकि कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापकों का सच में सम्मान हो।  सरकार द्वारा रखी शर्तें काफी कठिन हैं। नियमों व मानकों की कलिष्ठता को सरल बनाया जाना चाहिए, ताकि अध्यापक अपने आप को प्रोत्साहित व सम्मानित महसूस करें। ‘मुख्यमंत्री शिक्षक सम्मान योजना’ का उद्देश्य श्रेष्ठ व उत्तम है, परंतु नियमों व मानकों पर पुनर्विचार, मंथन व चिंतन आवश्यक है।

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