सत्याग्रह से गोवध तक की यात्रा

By: Jun 3rd, 2017 12:08 am

newsडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

कभी तमिलनाडु के पशु उत्सव जलीकट्टू पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया गया था कि इस उत्सव में बैलों को दौड़ाया जाता है । इसको पशुओं के प्रति क्रूरता कहा गया था, लेकिन गाय के एक बछड़े को बीच सड़क पर इस लिए काट दिया गया था क्योंकि सोनिया कांग्रेस भाजपा की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करना चाहती है । कांग्रेस मानती है कि भारत में बछड़े को काटना विरोध का सशक्त प्रतीक है । सीपीएम यह करती है, यह फिर भी समझा जा सकता है क्योंकि उन्होंने कभी भी यह दावा नहीं किया कि पार्टी भारतीय परंपराओं से जुड़ी हुई है, लेकिन कांग्रेस यह करे तो अवश्य ही भारत के लोगों को धक्का लगेगा । क्योंकि अभी भी इस पार्टी के नाम से महात्मा गांधी का नाम जुड़ा हुआ है…

पहले हम उस कांग्रेस की बात करें, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी किया करते थे। उस कांग्रेस के उद्देश्यों में भारतीय संस्कृति का पोषण भी था। राम राज्य की चर्चा तो वह करते ही रहते थे। गीता उनकी आस्था थी। गो रक्षा और गोसंवर्द्धन उनके जीवन का उद्देश्य था। अंग्रेजों के चले जाने के बाद वह जिस भारत की कल्पना करते थे, उसमें गो हत्या को बंद करना भी था। भीमराव अंबेडकर जीवन भर महात्मा गांधी का विरोध करते रहे। जब वह अमरीका में न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए गए, तो वहां हार्टले छात्रावास में ठहरे थे, लेकिन वहां गोमांस पकता था, इसलिए वह उस छात्रावास को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले गए थे। महात्मा गांधी सारी उम्र अंग्रेजी शासन का विरोध करते रहे, लेकिन उन्होंने ब्रिटेन के लोगों का विरोध करने के लिए बाइबल का अपमान करने के बारे में कभी नहीं सोचा। भीमराव अंबेडकर अपने राजनीतिक जीवन में कांग्रेस का विरोध करते रहे लेकिन विरोध करने के लिए और महात्मा गांधी को चिढ़ाने के लिए भी गाय काटने के बारे  में सपने में भी नहीं सोचा। विरोध करने का एक शालीन तरीका होता है। लोकतंत्र में विरोध की भी शालीनता होती है। लोकतंत्र में पक्ष -विपक्ष की अपनी अपनी भूमिका  होती है ।

तब की बात कुछ और थी। तमाम बहस-मुबाहिसों के बावजूद आस्था के राष्ट्रीय प्रतीकों की लानत-मलानत करने की बात उस समय के नेतृत्व  के मन में कहीं भी नहीं होती थी। संभवतः गांधीवादी सोच और इसके प्रभाव के कारण ही कांग्रेस से विभिन्न विचारधाराओं के लोग जुड़ सके और आजादी मिलने तक इसकी छतरी के नीचे अपने-अपने तरीके से संघर्ष करते रहे।

अब कांग्रेस में यह खूबी कहीं भी नहीं दिखती। कई मामलों में तो ऐसा लगता है कि इस पार्टी ने अब भारत-भारतीयता की बात करने से भी उचित दूरी जैसी बना रखी है। महात्मा गांधी से सोनिया गांधी तक आते आते बहुत लम्बा सफर तय कर लिया है। दुर्भाग्य से इस सफर में कांग्रेस धीरे- धीरे अपने मूल्यों को खोती गई और और उसके रंग रूप का पश्चिमीकरण होता गया। कांग्रेस का यह अवमूल्यन कैसे और क्यों हुआ, इसका एक कारण कांग्रेस का दशकों तक सत्ता भोगते रहना है । ऐसी सत्ता जो लोकतांत्रिक रास्ते पर चलते-चलते अंत में वंशवाद में बदल गई ।

वंशवाद ने परिवारवाद का रूप धारण कर लिया और सत्ता एक परिवार के हाथों में सिमट कर रह गई।   कांग्रेस को लगा कि भारतीय इस परिवार को हमेशा ढोते रहेंगे। इसी कारण यह भी भ्रम पैदा हुआ कि शासन करना कांग्रेस का एकाधिकार है। दिग्विजय सिंह जैसे कुछ लोग अब भी इसी ठहरी मानसिकता से राजनीतिक घटनाक्रम का विश्लेषण् करते हैं और विश्लेषण विफल होने पर जनता की नासमझी का राग रोने लगते हैं। चिंतन में आए ठहराव और आत्ममुग्धता के कारण अचानक कांग्रेस के हाथ से सत्ता ही नहीं खिसक गई बल्कि भारत की राजनीति में वह हाशिए पर आ गई । लगभग साढ़े पाच सौ के सदस्यों वाली लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या चालीस के आसपास सिमट गई। ऐसी स्थिति में संतुलन बनाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है। खासकर ऐसी पार्टी के लिए जो अरसा पहले लोकतांत्रिक रास्तों को छोड़ कर परिवार के महलों में सिमट गई हो।  ऐसी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी का विरोध करना है। यह उसका सांविधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। विरोध करने के लिए कौन सा तरीका इस्तेमाल करना है, इसका तरीका भी सोनिया कांग्रेस को स्वयं ही चुनना है। इस तरीके से ही संकेत मिलेगा कि पार्टी की चिंतन की धारा किस ओर जा रही है और देश के लिए कांग्रेस का भविष्य का क्या एजेंडा है। कांग्रेस ने घोषणा कि की वह केरल में भाजपा की नीतियों का विरोध करेगी। उसको लगता है कि भाजपा की नीतियों से देश को नुकसान पहुंचता है। ऐसा करने का कांग्रेस को अधिकार है और उसे करना भी चाहिए। पशुओं को क्रूरता से बचाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय के एक नोटिस से कांग्रेस में काफी बेचैनी दिखी। केरल में यह बेचैनी कुछ ज्यादा ही दिख रही थी। सभी ने सोचा कि कांग्रेस के लोग कल केरल में भाजपा के खिलाफ  प्रदर्शन करेंगे। महात्मा गांधी ऐसे मौकों पर सत्याग्रह किया करते थे। वह विरोधी का दिल जीतने के लिए स्वयं अपने आप को कष्ट देते थे । इसलिए कई लोगों ने सोचा कहीं राहुल गांधी सत्याग्रह का ही ऐलान न कर दें।  इसलिए सभी का ध्यान केरल की ओर लगा हुआ था कि सोनिया कांग्रेस विरोध का कौन सा तरीका अपनाती है। लेकिन दूसरे दिन केवल केरल ही नहीं बल्कि सारा देश चौंक उठा । सोनिया कांग्रेस ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसकी किसी को कभी आशा नहीं थी। जिसकी सपने में भी किसी ने कल्पना नहीं की थी। कांग्रेस के कार्यकर्ता केरल के कन्नूर में गाय के एक बछड़े को खींचते हुए बीच सड़क पर ले आए। उस निरीह बछड़े को उन्होंने बीच सड़क पर काटा। उसका मांस पकाया और फिर वहां नाच- नाच कर खाया। इतना ही नहीं, वे यह अमानुषिक कार्य कैमरे के सामने कर रहे थे ताकि सारा देश सोनिया कांग्रेस के इस भाजपा विरोध को देख ले, लेकिन इस राक्षसी कृत्य में सोनिया कांग्रेस अकेली नहीं थी। भारत में सीपीएम के नाम से जाने जाते जर्मनी के स्वर्गीय कार्ल मार्क्स के शिष्यों ने केरल में कई जगह गोमांस की पार्टियां आयोजित करके भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने के पश्चिमी तरीके का बहुत ही घिनौना प्रदर्शन किया। कभी तमिलनाडु के पशु उत्सव जलीकट्टू पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया गया था कि इस उत्सव में बैलों को दौड़ाया जाता है । इसको पशुओं के प्रति क्रूरता कहा गया था, लेकिन गाय के एक बछड़े को बीच सड़क पर इस लिए काट दिया गया था क्योंकि सोनिया कांग्रेस भाजपा की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करना चाहती है । कांग्रेस मानती है कि भारत में बछड़े को काटना विरोध का सशक्त प्रतीक है। सीपीएम यह करती है, यह फिर भी समझा जा सकता है क्योंकि उन्होंने कभी भी यह दावा नहीं किया कि पार्टी भारतीय परंपराओं से जुड़ी हुई है। लेकिन कांग्रेस यह करे तो अवश्य ही भारत के लोगों को धक्का लगेगा। क्योंकि अभी भी इस पार्टी के नाम से महात्मा गांधी का नाम जुड़ा हुआ है। परंतु लगता है महात्मा से शुरू करके सोनिया गांधी तक आते  कांग्रेस ने अपने जीवन का एक चक्र पूरा कर लिया है ।

यह उसका पुनर्जन्म है।  इस जन्म में उसकी बागडोर ही सोनिया गांधी के हाथ में है, अब उसकी प्रेरणाएं और प्रतिक्रियाएं बदल चुकी हैं। विरोध करने का तरीका तो ऐसा हो गया है, जिसे भारतीय जमीन पर कभी सोचा भी नहीं जा सकता था।  अभी यह प्रकरण चल ही रहा था कि समाचार आया कि कांग्रेस के ही एक विधायक ने पुरानी परंपराओं का निर्वाह करते हुए भाजपा की नीतियों के विरोध में भूख हड़ताल भी कर दी थी, लेकिन उसने अपनी भूख हड़ताल भी गोमांस खा कर ही तोड़ी। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान ।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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