सरस्वती नदी के किनारे पर था पुरु का राज्य

By: Jun 21st, 2017 12:05 am

आर्यों राजाओं में अनू, द्रह्य, तुर्वशा और पुरु प्रसिद्ध थे। पुरु का राज्य सरस्वती नदी के किनारे पर था। इस युद्ध के संबंध में एक ऐसे राजा का उल्लेख आता है, जिसका राज्य विस्तार उस भाग में रहा, जो अब हिमाचल प्रदेश में है। सुदास की सेना का नेतृत्व उसके गुरु तथा मंत्री वशिष्ठ ने किया…   

आर्य और हिमाचल

शांबर का समकालीन एक और शक्तिशाली राजा था जो आर्य जाति से था और उसका नाम ‘दिवोदास’ था। वह भरत कुल से था। उसका राज्य उस समय मैदानी भाग में रावी ‘परुष्णी’ और सतलुज-व्यास (शतुद्र-विपाशा), नदियों के बीच वाले भू-भाग में फैला हुआ था। शांबर के धन एवं संपत्ति से भरपूर किलों तथा विशाल राज्य को देखकर साहसी दिवोदास कहां चुप रह सकता था। उधर, दिवोदास की बढ़ती शक्ति से इर्षित होकर शांबर भी उससे लोहा लेने को तैयार रहता था। अतः दोनों  में संघर्ष छिड़ गया। इनका यह युद्ध चालीस वर्ष तक होता रहा। यह युद्ध मैदानी भाग में नहीं, बल्कि हिमाचल की पहाडि़यों में हुआ। अंत में चालीस वर्ष के निरंतर युद्ध के बाद ‘उदब्रज’ नामक स्थान पर वीर शांबर की मृत्यु दिवोदास के हाथों हुई। शांबर के किलों को ध्वस्त करके आर्य लोगों ने धन संपन्न पर्वत में प्रवेश किया। वीर शांबर के अतिरिक्त आर्यों को शुष्ण, चुमुरी और कई पहाड़ी राजाओं का भी सामना करना पड़ा। परंतु कुशल सैन्य संगठन के कारण आर्य लोग विजयी होते हुए आगे बढ़ते गए। इस प्रकार आगे बढ़ते हुए आर्यों ने कोल, किन्नर-किरात और नागों के हिमाचल को निचली घाटियों  और तराइयों  से खदेड़ कर दुर्गम पहाडि़यों की ओर जाने के लिए बाध्य किया। हिमाचल की ऊपरी पहाडि़यों तथा घाटियों में कश्मीर (काशगिरी) की ओर से आए उन्हीं के भाई-बंधु खश लोग आर्यों से पहले की गढ़वाल-कुमांऊ तक फैल चुके थे। खशों का जब इन जातियों से सामना हुआ तो उन्होंने भी इन्हें दुर्गम पहाडि़यों की ओर भगा दिया। जो वहीं बस गए उन्हें या तो अपने में विलीन कर लिया या दास बना दिया गया। यहां की मूल जातियों को उत्तर की ओर भगाने वाले ‘वैदिक आर्य’ थे तथा उनको अपने में विलीन करने वाले उन्हीं  के भाई-बंधु ‘खश’ लोग थे। शांबर तथा उसके साथियों को पराजित करने के बाद आर्य हिमाचल की घाटियों में भीतर की ओर नहीं बढ़े, बल्कि शिवालिक की पहाडि़यों के आंचल से होते हुए सतलुज (शतदु्र) को पार करके सरस्वती तथा यमुना नदियों की ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार वैदिक आर्यों के एक शक्तिशाली राजा ‘ययाति’ ने सरस्वती नदी के किनारे एक बड़े राज्य की नींव डाली, जो उसके बाद उसके पुत्र ‘पुरु’ के नाम से पुरु वंश से प्रसिद्ध हुआ। आर्यों द्वारा पंजाब और सरस्वती, यमुना के मैदान में अपने-अपने छोटे-बड़े राज्य स्थापित करने के बाद जो सबसे महत्त्वपूर्ण घटना घटी, वह थी दाशराज्ञ युद्ध। इस युद्ध का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। यह युद्ध भरतों के राजा दिवोदास के पुत्र सुदास और दस आर्य तथा अनर्या राजाओं के बीच हुआ था। आर्यों राजाओं में अनू, द्रह्य, तुर्वशा और पुरु प्रसिद्ध थे। पुरु का राज्य सरस्वती नदी के किनारे पर था। इस युद्ध के संबंध में एक ऐसे राजा का उल्लेख आता है, जिसका राज्य विस्तार उस भाग में रहा, जो अब हिमाचल प्रदेश में है। सुदास की सेना का नेतृत्व उसके गुरु तथा मंत्री वशिष्ठ ने किया।

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