स्मार्ट नक्शे पर शिमला

By: Jun 24th, 2017 12:02 am

अंततः शिमला को उसका वास्तविक हक मिला और राष्ट्रीय रैंकिंग के स्मार्ट नक्शे पर यह शहर समाहित हुआ। इसे मात्र संयोग कहें, लेकिन नगर निगम की जीत में शरीक भाजपा के गले में, यह मोदी सरकार की स्वागती माला के मानिंद है। यह दीगर है कि शिमला कई मायनों में अपने रुतबे व रक्त प्रवाह के कारण विशिष्टता का संगम रहा है, लेकिन वक्त की आधुनिकता ने इसके आचरण को खोखला कर दिया। बेशक पर्यटन, धरोहर तथा राजधानी के अपने अंदाज में यह शहर उम्मीदें जोड़ता रहा, मगर इस दौरान अस्तित्व का टूटना भी जारी रहा। नागरिक सभ्यता की जिस शिष्टता का नाम शिमला रहा, उसके चिन्ह अब विद्रूपता पैदा करते हैं। इसीलिए समाधानों की इबारत में देश के स्मार्ट शहरों में शुमारी, एक नई हवा की तरह शिमला को उठने का मौका दे रही है। यह उस शिमला का समाधान है, जो राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के कठघरे में खड़ा है। शहर की क्षमता के सौदागर तो बढ़ गए, लेकिन इसकी खासियत के रक्षक नहीं रहे। इसीलिए यह शहर कभी राजधानी होने से कराहता है, तो कभी पर्यटन के बाहुपाश में तड़पता है। यह नागरिकों की ऐसी बस्ती बन गया, जो सिर्फ शहर का दोहन करती है, इसलिए पानी की बूढ़ी पाइपों ने पीलिया चूस लिया तो पता चला कि सीवरेज कहीं जहर परोस रही है। हम शिमला को न तो फिर से बसा सकते हैं और न ही इसका अवतार पैदा कर सकते हैं, अतः नए संदर्भों में शहर की मिलकीयत में केंद्रीय योजनाओं-परियोजनाओं का मिलन करवा सकते हैं। ऐसे में फिर यह मकसद केंद्र बनाम हिमाचल द्वंद्व बनकर न रह जाए, क्योंकि हर सुबह में राजनीति अपना हिस्सा ढूंढ रही है। विडंबना यह है कि बेहतरीन योजनाएं राजनीतिक अहंकार के कारण आगे नहीं बढ़ रहीं, क्योंकि  राज्य और केंद्र के बीच यश और अपयश की खींचतान है। बहरहाल शिमला स्मार्ट सिटी के खाके में तैयार हो रहीं करीब तीन हजार करोड़ की परियोजनाओं में हम सर्वप्रथम शिमला के बाशिंदों को स्मार्ट होते देखना चाहते हैं। हालांकि चतुराई में हिमाचली नागरिक समाज अपनी जागरूकता के साथ हर अधिकार पाना चाहता है, लेकिन कर्त्तव्य की परिभाषा में आगे नहीं आता। स्मार्ट शहर की बुनियादी शर्त तो नागरिकों की जिम्मेदारी रहेगी और इसी के सहारे शिमला के भविष्य की सांसें नत्थी हैं। हमें शिमला के भीतर असली शिमला फिर से स्थापित करना है, तो उन जड़ों को बचाना होगा जो पर्वतीय जीवन के अनुशासन निर्धारित करती हैं। यह कहां का दस्तूर कि कल जहां पैदल चलते थे, वहां आज वाहन चीखते हैं। जहां पेड़ों की कतारें मौसम को दुरुस्त रखती थीं, आज गंजे पहाड़ पर निजी प्रभाव का वजूद टिका है। जाहिर है इस शहर के फेफड़ों में पहले जहां से आक्सीजन आती थी, उस रिवायत में लौटकर शिमला को समझना होगा। शिमला केवल शहर नहीं एक अद्भुत सभ्यता और मर्यादित आचरण की जीवनशैली है, इसलिए स्मार्ट सिटी, इसके अनुशासन से सामंजस्य बैठाने की परिपाटी सिद्ध होनी चाहिए। यहां जीवन का गुणात्मक विकास ही, असली विकास है। अतः स्मार्ट होने का अर्थ शिमला के अतीत का संरक्षण व भविष्य की मर्यादा तय करने जैसा है, जहां विकास को आधुनिक चुनौतियों का समाधान खोजते हुए कई मील पत्थर स्थापित करने हैं। परिवहन का एरियल ढांचा सशक्त करने के अलावा पेयजल आपूर्ति को सुरक्षित और समुचित बनाने की प्राथमिकताएं इंतजार कर रही हैं। शिमला की गोद में स्लम के धब्बे, नागरिक सुविधाओं का टोटा, गंदगी, जल निकास की कमी, बेतरतीब निर्माण की गति और भीड़ से संबोधित होने के नए रास्ते स्मार्ट सिटी के तहत खोज सकते हैं। बेशक हिमुडा जाटिया देवी में एक आधुनिक शहर बसा रहा है, लेकिन शहर के बीचोंबीच आबादी को भविष्य के निष्कर्ष से समाधान की ओर ले जाने की चुनौती है। शिमला हर वर्ग की जरूरतों, शिक्षा-चिकित्सा की आवश्यकताओं और मनोरंजन की खूबियों को कैसे अभिव्यक्त करता है, इन्हीं लक्ष्यों का नाम ‘स्मार्ट सिटी’ है। शहर की आबरू में प्रकृति और मानवीय प्रवृत्ति के बीच संतुलन और भविष्य के प्रति चेतना शहर में कैसे पल्लवित होंगे, इसी आरजू को पूरा करना है। एक रिज या माल के सहारे शिमला मुकम्मल नहीं होता, अतः चारों दिशाओं में खुले स्थान, मैदान तथा पैदल चलने को सीधे रास्ते या पुलों के जरिए जब लोग प्रदूषण व वाहन रहित समाधान की रखवाली करेंगे, तो यही शहर ऊंची मचान पर बैठकर पर्वत की रखवाली कर रहा होगा।

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