हिमाचली कुर्बानियों का कारवां और कन्नी काटता केंद्र

By: Jun 3rd, 2017 12:07 am

newsसुरेश कुमार

लेखक,‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं

देश को हिमाचल ने बहुत कुछ दिया। सैन्य ही नहीं हिमाचल के असैन्य बलिदान भी कम नहीं हैं। बिलासपुर ने खुद को डुबोकर भाखड़ा बना दिया और  सारा देश रोशन कर दिया। बदले में हिमाचल को क्या मिला? आज भी विस्थापित अपने हकों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इतनी कुर्बानियों के बाद भी केंद्र ने हिमाचल…

जैसे हिमाचल का पानी और जवानी हिमाचल के काम नहीं आती, वैसे  ही हिमाचल की सरहदों पर सैन्य कुर्बानियां भी किसी काम नहीं आ रही हैं यानी केंद्र के लिए उनकी कोई कीमत ही नहीं है। सरहदों को बलिदान के खून से सींचने वाला 30 फीसदी खून हिमाचली है। हिमाचल में पिछले दो साल में 72 जवानों ने शहादत का जाम पिया। यानी औसतन हर महीने तीन हिमाचली जवान देश के लिए कुर्बान हो रहे हैं। अभी हाल ही में पूर्व सैनिक लीग की एक जनसभा में जब राज्यपाल देवव्रत हिमाचल के सैन्य हितों की पैरवी कर रहे थे, तो उसी दौरान कुपवाड़ा में शहीद हुए तीन हिमाचली जवान तिरंगे में लिपटकर हिमाचल लौट रहे थे। हिमाचल की कुर्बानियों  का कारवां छोटा नहीं है। याद करो आजादी का पहला विद्रोह, जिसका आगाज एक हिमाचली जोरावर सिंह ने किया था। आजादी के लिए यह पहला कदम देश को मंजिल दिला गया। देश के सर्वोच्च सेना सम्मान परमवीर चक्र को हासिल करने वाला भी पहला व्यक्ति मेजर सोमनाथ शर्मा हिमाचली ही था। 1999 में कारगिल में पाकिस्तान की घुसपैठ की जानकारी भी सबसे पहले देने वाला कैप्टन सौरभ कालिया भी हिमाचली ही था।

देश को हिमाचल ने बहुत कुछ दिया। सैन्य ही नहीं हिमाचल के असैन्य बलिदान भी कम नहीं हैं। बिलासपुर ने खुद को डुबोकर भाखड़ा बना दिया और  सारा देश रोशन कर दिया। बदले में हिमाचल को क्या मिला? आज भी विस्थापित अपने हकों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इतनी कुर्बानियों के बाद भी  केंद्र ने हिमाचल की  कद्र नहीं की। किसी दूसरे राज्य की शहादतों का सिलसिला इतना नहीं होगा, जितना हिमाचल का है। हिमाचल में औसतन हर घर से एक फौजी है। सैन्य पृष्ठभूमि के इस प्रदेश को वीरभूमि भी तो इसलिए कहा जाता है। हाल ही में 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट के एयरबेस पर हुए आतंकी हमले को नाकाम करने में दो हिमाचलियों ने खुद को कुर्बान कर दिया। शाहपुर के हवलदार संजीवन कुमार और भटियात चंबा के जगदीश चंद ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को भारी नुकसान से बचा लिया। सरहदें ही नहीं, देश की आंतरिक सुरक्षा में भी हिमाचली जवानों ने अपनी शौर्यगाथा लिखी है। 24 अप्रैल, 2017 को छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में दो हिमाचली देश के काम आए।

यानी हिमाचल के खून में उबाल ही ऐसा है कि  कोई देश की तरफ आंख भी उठाए, तो मर मिटने को तैयार हो जाएं। बात अब तक हुए बड़े युद्धों की करें तो 1947 के युद्ध में 43  हिमाचली शहीद हुए,  1962 के युद्ध में 131, 1965 के युद्ध में 199 और 1971 के युद्ध में 195 हिमाचालियों ने शहादत का जाम पिया। आजादी से लेकर अब तक हिमाचल के 1215 जवान देश की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं और यह आंकड़ा देश के दूसरे किसी भी राज्य से कहीं ज्यादा है। देश को आजाद करवाना मुश्किल था, पर उस आजादी को बरबरार रखना और भी मुश्किल है। दुश्मन हर समय भारत पर नजरें गड़ाए रहता है। देश अपने होने का एहसास दिलाने के लिए खून मांगता है और यह खून देते हैं हिमाचल के सूरमा। जिस प्रदेश में पूर्व सैनिकों का आंकड़ा ही डेढ़ लाख के करीब है, तो उस प्रदेश की युवा पीढ़ी में सेना में जाकर देश के लिए मर मिटने का ज्ज्बा क्यों नहीं होगा। कितना याद दिलाएं केंद्र्र को हिमाचल की कुर्बानियों का हिसाब, पर इतने सालों बाद भी केंद्र सरकारों ने अपना मौन नहीं तोड़ा। देश की सरकारों ने हिमाचल को कुछ भी नहीं दिया। कब से हिमाचल के लिए भर्ती कोटे में बढ़ोतरी की गुहार लगा रहे हिमाचल को केंद्र सरकार ने कभी सकारात्मक जवाब नहीं दिया। कई प्रदेशों के नाम पर रजिमेंट बनी हैं, पर हिमाचल रेजिमेंट के नाम से केंद्र हमेशा कन्नी काटता रहा है। हिमाचल में धूमल सरकार के समय डोगरा रजिमेंट सेंटर को हिमाचल में स्थानांतरित करने की चर्चाएं जरूरी हुईं, पर बात बातों से आगे नहीं बढ़ी। अब राज्यपाल ने हिमाचल में एनडीए के लिए केंद्र से गुहार लगाने का आश्वासन दिया है, पर अनुभवों के अनुसार लगता है कि यह मांग भी महज मांग बनकर ही रह न रह जाए। बेशक हिमाचल सरकार अपने सैनिकों और पूर्व सैनिकों की बेहतरी के लिए बहुत कुछ कर रही है, पर केंद्र का भी तो कुछ दायित्व बनता है कि  वह हिमाचल की सैन्य कुर्बानियों की कद्र करे। देश की सरहदों को महफूज करने के लिए ज्यादा से ज्यादा हिमाचलियों को भर्ती करे। क्योंकि देश सेना की संख्या बढ़ाने से सुरक्षित नहीं होगा, देश सुरक्षित होगा जांबाजों की फौज बढ़ाने से। हिमाचल से ज्यादा जांबाज देश को दूसरे राज्यों में नहीं मिलेंगे।

हर माह शहीद होते तीन जवानों के ताबूत भी केंद्र सरकार की तासीर को नहीं बदल पा रहे तो यही कहेंगे कि केंद्र में बैठे नीतिकर सिर्फ राजनीति करने में माहिर हैं, उन्हें रणनीति से कोई  मतलब नहीं है। केंद्र में बैठे ठंडे खून वाले नेता हिमाचल के गर्म खून को आंकने की काबिलियत ही नहीं रखते। हमारे नेता भी हिमाचल की सही पैरवी केंद्र के सामने नहीं कर पाते।  नहीं तो अब तक हिमाचल के नाम से रेजिमेंट भी बनी होती और हिमाचल का सैन्य भर्र्ती कोटा भी बढ़ा होता। हिमाचल की उन माताओं को नमन है, जिनके वीर सपूत देश को जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए।

ई-मेल: sureshakrosh@gmail.com

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App