हिमाचल में खेलों का धरातल

By: Jun 27th, 2017 12:05 am

हमीरपुर पहुंचा ओलंपिक का छोटा सा चिराग भी, हुनर की रोशनी का बड़ा स्वागत करता है। हिमाचल में खेलों की परिपाटी को परिभाषित करता यह प्रयास एक नई दिशा की ओर इशारा कर रहा है। परिणामों की बानगी में प्रतिभा की उम्मीदें और भविष्य को रेखांकित करते मंजर का साधुवाद अवश्य ही युवा सांसद अनुराग ठाकुर को मिलेगा। खेलों से बढ़ता हिमाचली ताल्लुक किसी परिचय का मोहताज नहीं, फिर भी हम अधोसंरचना के मूल्यांकन में अपनी कमजोरियों को छुपा नहीं सकते। ओलंपिक मशाल ने यूं तो हमीरपुर के तीन मैदान ढूंढ लिए, लेकिन उद्देश्य की पैमाइश में खेल ढांचे की मजबूती वांछित है। प्रतिभा का होना और  इसे चुनना दो अलग-अलग पहलू हैं, जबकि इसे परिमार्जित करना एक अलग धरातल पर खेलों को अंगीकार करने जैसा है। बेशक कुछ खेल छात्रावासों, संगठनों और विभागीय कसरतों में हिमाचल का प्रतिनिधित्व हो रहा है, लेकिन हमीरपुर में ओलंपिक आयोजन ऐसे खेल समुदाय को चिन्हित कर गया, जिसे सामाजिक प्रश्रय भी चाहिए। परिणामों की खेप में राज्य के लक्ष्य तसदीक होते हैं ताकि अगली पायदान में प्रतिस्पर्धा बढ़े। कुछ इसी तरह  साई महिला खेल छात्रावास में कुंदन बनती प्रतिभा ने अपना लोहा मनवाना शुरू किया , तो देश की निगाहें यकायक हिमाचल की ओर उठीं। देश के लिए हिमाचल की बेटी ने अगर खेल मैदान से तिरंगे को सलाम किया, तो अंतरराष्ट्रीय युवा एथलेक्टिस में चंबा की सीमा का कांस्य पदक भारत के गले में लटक जाता है। हिमाचली बेटियों ने खेलों के संदर्भ में खुद को बुंलद करते हुए, समाज का तानाबाना बदला, तो अभिभावकों के मान-सम्मान की परिपाटी भी खुले आसमान को छूना चाहती है। नॉर्थ जोन की अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम में एक साथ हिमाचल की पांच बेटियां उतर रही हैं, तो इस कारंवा के पीछे सामाजिक बदलाव की घंटियां सुन लेनी चाहिएं। नेशनल जूनियर एथलेटिक्स में पुनः चांदी और कांस्य कूट कर लौटीं- खेल छात्रावास की बेटियों ने अपने प्रतिष्ठान को सफलता का तिलक लगाया है। कहना न होगा कि धर्मशाला के खेल संस्थानों ने सिक्का यूं जमाया कि अब परिणामों की बाढ़ आ रही है। इसलिए भारतीय खेल प्राधिकरण ने राष्ट्रीय स्तर के खेल शिविर यहां लगाने शुरू किए हैं और अतिरिक्त ढांचा खड़ा करके सस्थायी रूप से देश का अभ्यास कराया जाएगा। कुछ इसी तरह शिमला के शिलारू में भारतीय महिला हाकी  टीम अपना प्रशिक्षण ग्रहण करती रही है। हिमाचल भी अगर खेलों के लिए अपनी माटी पर विश्वास करे, तो कई अकादमियां जन्म लेंगी और देश की खेल प्रतिष्ठा यहीं लिखी जाएगी। हिमाचल की खेल नीति को झाड़ने-पोंछने की आवश्यकता के बीच यह पड़ताल भी जरूरी है कि खेल संगठन अपना दायित्व निभाने में खिलाडि़यों के प्रति कितने वचनबद्ध हैं। बेशक अनुराग ठाकुर के योगदान से निकली मशाल पहले क्रिकेट और अब अनेक खेलों के लिए जल उठी है, फिर भी इसकी बुनियाद पर तने सवाल समझने होंगे। हिमाचल में जल और साहसिक क्रीड़ाओं की संभावना विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं को आकर्षित करते हुए आगे बढ़ सकती है, जबकि ग्रामीण खेलों  के जरिए प्रतिभा का चयन अपना असली मुकाम चुन सकता है। प्रदेश के मौसम व प्रकृति के अंदाज को देखते हुए खेल के जरिए पर्यटन के भी कई महोत्सव चुन सकते हैं। प्रदेश में खेलों को चिन्हित करते मैदान और स्टेडियमों का निर्माण करने के साथ-साथ कुछ स्कूल व कालेजों को विशेष प्रशिक्षण केंद्र का दर्जा भी देना होगा। खेल ढांचे को अगर पुष्ट करना है, तो राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों को आमंत्रित करना होगा। राष्ट्रीय खेलों का आयोजन हिमाचल की सुविधाओं को संपन्न करेगा और इसके लिए एक साथ ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी, कुल्लू , शिमला व धर्मशाला में खेल ढांचे को स्तरोन्नत करने की योजना बनानी चाहिए। कुछ प्रमुख खेल मैदानों के साथ आवासीय सुविधा तथा प्रशिक्षण के हिसाब से कोचों की संख्या में बढ़ोतरी की दरकार है। हिमाचल में स्कूली खेलों को नए आयाम तक पहुंचाने के लिए वार्षिक कैलेंडर मजबूत करना होगा, जबकि खेलों के हिसाब से छात्रों का चयन व इनके लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान हर तरह से करना होगा।

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