अनेकता में एकता हमारी पहचान
राष्ट्र के नाम अंतिम संबोधन में बोले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नई दिल्ली— राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में देश की सहिष्णुता, बहुलवाद और अहिंसा की शक्ति की बात की। श्री मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। हम एक-दूसरे से तर्क-वितर्क कर सकते हैं, सहमत-असहमत हो सकते हैं, लेकिन विविध विचारों की मौजूदगी को हम नकार नहीं सकते हैं। अनेकता में एकता देश की पहचान है। देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विभिन्न विचारों को ग्रहण करके हमारे समाज में बहुलतावाद का निर्माण हुआ है। हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। प्रतिदिन हम आसपास बढ़ती हुई हिंसा को देखते हैं तो दुख होता है। हमें इसकी निंदी करनी चाहिए। हमें अहिंसा की शक्ति को जगाना होगा। महात्मा गांधी भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां समावेशी माहौल हो। हमें ऐसा ही राष्ट्र बनाना होगा। उन्होंने कहा कि मैं भारत के लोगों का सदैव ऋणी रहूंगा। जब मैंने पांच साल पहले राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तो संविधान की रक्षा की भी शपथ ली थी। पिछले पांच सालों में मैंने देश के संविधान की रक्षा के लिए हरसंभव कोशिश की। मैं अपने कार्यकाल के दौरान कई जगहों की यात्रा की। बुद्धिजीवियों, छात्रों से मिला और उनसे काफी कुछ सीखा। श्री मुखर्जी ने मंगलवार को शपथ लेने जा रहे नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई भी दी।
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