आत्म पुराण

By: Jul 22nd, 2017 12:05 am

अश्विनी कुमार- आप इंद्र के वज्र का कुछ भय मत कीजिए। हम अपनी विद्या द्वारा उसका प्रतिकार करने में समर्थ हैं। सामने यह जो घोड़ा खड़ा है। हम उसके मस्तक को काटेंगे और आपके मस्तक को भी काटेंगे। फिर आपके धड़ पर घोड़े का मस्तक लगा देंगे और आपका मस्तक घोड़े पर लगा दिया जाएगा। आप अश्व के मस्तक से ही हमको ब्रह्मा विद्या का उपदेश करना। जब देवराज इंद्र आपका मस्तक काटेगा तो हम फिर आपका मस्तक घोड़े पर से लेकर आपके धड़ पर लगा देंगे। दध्यङ ऋषि के स्वीकार कर लेने पर अश्विनी कुमारों ने उनका मस्तक काटकर घोडे़ का मस्तक लगा दिया। उसके लगने पर दध्यङ ऋषि ने हयग्रीव के रूप में कहा, हे अश्विनी कुमारो! जब तक मनुष्य का चित्त शुद्ध न हो तब तक कर्म उपासना करना उचित है। चित्त शुद्ध हो जाने पर कर्म उपासना का त्याग करके केवल वेदांत शास्त्र का चिंतन करना ही कर्त्तव्य है। अब मैं तुमको जिस ब्रह्म विद्या का उपदेश करता हूं। आगे चलकर कोई उसका उपदेश अपने शिष्यों को नहीं करेगा। क्योंकि अभी मैं जब तुमको समग्र ब्रह्मविद्या का उपदेश दूंगा तो इंद्र हमारे मस्तक को अवश्य काट डालेगा। उसे देखकर सब ब्राह्मण भयभीत हो जाएंगे। वे इस डर से कि ब्रह्म विद्या का उपेदश करने से इंद्र हमारा भी मस्तक काट डालेगा अपने पुत्रों और प्रिय शिष्य को भी इसका उपदेश नहीं देंगे। कौषीतिक आदि ऋषि यदि ब्रह्म विद्या का उपदेश करेंगे तो भी आधी विद्या की कथन करेंगे पर उनको भी इंद्र का यतकिंचित भय बना ही रहेगा। केवल एक याज्ञवल्क्य मुनि जो सूर्य को गुरु बनाकर ब्रह्म विद्या को प्राप्त करेगा अपने शिष्यों को संपूर्ण ब्रह्म विद्या बता सकेगा। इसके पश्चात दध्यङ ऋषि तुमको ब्रह्म विद्या का उपदेश देने लगे और जैसे ही वह उपदेश समाप्त हुआ, इंद्र ने वज्र से उनका मस्तक काट दिया। तुमने उस मस्तक को कटा देखकर घोड़े के धड़ पर लगा कर ऋषि का मस्तक अलग कर लिया और उसे ऋषि के धड़ पर लगा दिया। इसी प्रकार घोड़े को भी पुनर्जीवित कर दिया गया और बिना किसी की हिंसा के इस समस्या का समाधान हो गया। तत्पश्चात उस आगंतुक ऋषि ने दध्यङ ऋषि की कही ब्रह्म विद्या का सार पुनः अश्विनी कुमारों को सुनाया, जिससे वे बड़े प्रसन्न हुए और उसे त्रिकालज्ञ समझकर भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। इसके अनन्तर जिस कार्य के लिए ऋषि आए थे, उस कार्य को भी पूरा कर दिया। इतनी कथा कहकर गुरुदेव ने अपने शिष्यों से कहा, तुमने जो कौषीतिक ऋषि के भय का कारण पूछा था तो हमने विस्तार सहित बतला दिया। अब जो कुछ अन्य व्रत्तांत जानना हो सो कहो। चतुर्थ अध्याय में दध्यङ  ऋषि का उपख्यान सुनकर शिष्य ने कहा, हे भगवन! आपने कहा था के इंद्र के भय से सभी ऋषियों ने संपूर्ण ब्रह्म विद्या का उपदेश देना बंद कर दिया था, केवल याज्ञवल्क्य ने सूर्य भगवान के प्रसाद से अपने  शिष्यों को उसका उपदेश दिया। हम जानना चाहते हैं कि याज्ञवल्क्य जी ने किस शिष्य को किस प्रकार ब्रह्म विद्या का उपदेश दिया।

गुरु उचाव- याज्ञवल्क्य आरंभ में वैशम्पायन के समीप रहकर अध्ययन करते थे। तत्पश्चात किसी कारण वैशम्पायन जी ने रूष्ट होकर याज्ञवल्क्य से अपनी दी हुई समस्त विद्या वापस ले ली। याज्ञवल्क्य ने फिर महान तप करके सूर्य भगवान को प्रसन्न किया और उनसे चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया और गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके सुयोग्य शिष्यों को वेदाध्ययन कराने लगे।

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