क्या चीन तीसरे विश्व युद्ध के बीज बो रहा है ?

By: Jul 28th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंहवर्तमान स्थिति में उत्तर कोरिया के अलावा दूसरा कोई देश परमाणु हथियारों के उपयोग की बात नहीं सोचेगा। चीन को अपनी तुच्छ युद्धप्रियता को भी समझना चाहिए, विशेषकर उस स्थिति में जबकि अमरीका व जापान उसके सामने खड़े हैं। हाल में भारत, जापान व अमरीका ने दक्षिण चीन सागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करके इसका संदेश भी दे दिया है। फिर भी अगर चीन युद्ध के बीज बोने की कोशिश करेगा तो हथियारों के इस्तेमाल से तो भारत भी चूकने वाला नहीं है….

चीनी सेना और भारी मशीनरी के तिब्बत सीमा पर पहुंच जाने से भारत-चीन विवाद एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। इस क्षेत्र में हाल का घटनाक्रम विश्व शांति के कतई अनुकूल नहीं प्रतीत होता। इस पूरे तनाव का केंद्र चीन ही है। विस्तारवाद की घातक नीति के कारण उसके अपने पड़ोसियों से किसी न किसी तरह के सीमा विवाद चल रहे हैं। वह इन पड़ोसियों पर दबाव बना रहा है कि वे उसके साथ उसी की शर्तों पर समझौता करें। पाकिस्तान पहले ही कश्मीर का करीब एक-तिहाई हिस्सा चीन को उपहार स्वरूप भेंट कर चुका है। चीन अब ब्लूचिस्तान में नए अड्डे बनाकर भारतीय सागर तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में भी वह जापान, अमरीका और दक्षिण कोरिया सहित विश्व शक्तियों को चुनौती दे रहा है। छोटा सा देश भूटान, जो कि एक दशक तक भारत के संरक्षण में रहा है, दोनों देशों के बीच विवादित क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क बनाने से असुरक्षित महसूस कर रहा है। भूटान और चीन के बीच अब तक कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन दोनों के बीच कोई कारगर समझौता नहीं हो पाया है। हालांकि दोनों देश इस बात पर सहमत हैं कि यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा। इस वचन को चीन तोड़ रहा है और उसने विवादित क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां चला रखी हैं।

भारत भी कहीं न कहीं इस बात से चिंतित है क्योंकि इस क्षेत्र में सड़क बनने से उसकी सुरक्षा को भी खतरा पैदा हो जाएगा। जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, वियतनाम और भारत में चीन के प्रति मैत्री भाव में तेजी से गिरावट आई है। कुछ लोग तर्क करते हैं कि आर्थिक क्षेत्र में भारत संकट में है, इसलिए चीन इस स्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहता है। यह विचार एक गलती है, क्योंकि भारत की शक्ति को चीन भी भलीभांति जानता है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ठीक ही कहा है कि चीन को किसी तरह के मुगालते में रहते हुए हमें 1962 वाला भारत नहीं समझना चाहिए, क्योंकि तब से अब की स्थितियों में बहुत अंतर आ चुका है। यह भी दीगर है कि आने वाले वर्षों में चीन को कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उसके वृहद आर्थिक परिदृश्य में व्यापक बदलाव आएगा। उसे घटते विकास और नौकरियों के अवसरों में कमी का सामना करना होगा। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के निर्माण से पर्यावरण को जो भारी नुकसान हुआ है, उसकी कीमत भी उसे चुकानी पड़ेगी। यह उल्लेखनीय है कि चीन ने अपने निर्यात लक्ष्य बढ़ाने के लिए पर्यावरण को तिलांजलि देते हुए कई विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए हैं। ऐसा करके उसने तीव्र आर्थिक विकास तो कुछ हद तक कर लिया है, लेकिन उसी के समानांतर उसे उन देशों के विरोध का सामना भी करना होगा, जो उसके साथ स्पर्धा करने के लिए संघर्षरत हैं। आने वाले दस वर्षों में चीन के आर्थिक स्थायित्व को चुनौती मिलेगी और भारत को लेकर संभावना है कि वह सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में कायम रहेगा। इस संदर्भ में कई विशेषज्ञों का विचार है कि भारत सैन्य विकल्प के बजाय आर्थिक नाकेबंदी की सोचता है। किसी भी सूरत में यह कोई सुसंगत हल नहीं होगा, क्योंकि भारत के निरंतर विकास के लिए उसे प्रौद्योगिकी व उत्पादों की जरूरत होगी।

चीन बड़ा निर्यातक देश है। आयात में उसकी हिस्सेदारी 60 फीसदी है जो 10 साल पहले 43 फीसदी थी। हमारा व्यापार घाटा अब भी बहुत ज्यादा है, क्योंकि भारत कुल निर्यात का करीब 10 फीसदी निर्यात करता है। पिछले कुछ वर्षों में इसमें कमी दर्ज की गई है। इस तरह का व्यापार असंतुलन व्यापार में स्वस्थ विकास के बहुत अनुकूल नहीं है, लेकिन उन लोगों, जो चीनी सामान पर प्रतिबंध चाहते हैं, को हमारी वास्तविकता भी समझनी होगी। दक्षिण कोरिया, जापान, नार्वे और अमरीका जैसे कई देशों ने चीनी सामान पर कई प्रतिबंध लगा रखे हैं। चीन ने यहां तक धमकी दी है कि वह भारत में किए गए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को वापस ले लेगा। इस बात की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत ज्यादा नहीं है। 25 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ जापान इस क्षेत्र में सबसे आगे है। भारत के लिए जो जरूरी है, वह यह कि वह लाइटर, रसोई में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों व अन्य उत्पादों जैसे आम सामान का भारी उत्पादन शुरू करने वाला है। मेक इन इंडिया के मार्फत इसे अंजाम दिया जा सकता है। इससे देश में रोजगार के साधन उत्पन्न होंगे और यह चीन के साथ अनावश्यक व्यापार में कटौती करेगा। इस तरह से भारत को इसका दोहरा लाभ हासिल हो सकता है। लेकिन फिलहाल आर्थिक नाकेबंदी की जरूरत नहीं है।

अब प्रश्न उठता है कि ऐसे तनाव व सीमा विवाद के बीच चीन कैसे बिना साथियों के कोई स्थिति अपने पक्ष में कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रमपूर्ण कूटनीति के बाद लगभग पूरा विश्व एक ओर है। केवल पाकिस्तान व उत्तर कोरिया, चीन के पक्ष में हैं। रूस इन देशों का साथ दे सकता है, लेकिन साथ ही वह चीन समर्थक मुद्रा व भारत समर्थक मुद्रा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेगा। भारत के पक्ष में खड़ा होकर इजरायल इस पूरे प्रकरण में एक प्रभावी भूमिका निभा सकता है। पाकिस्तान में चीन परमाणु हथियार रख रहा है और भारत के लिए वह पाकिस्तान से बड़ा खतरा है। मुलायम सिंह यादव के इस वक्तव्य की सच्चाई कोई नहीं जानता। यह भी कोई नहीं जानता कि यह विश्व युद्ध का पूर्व लक्षण है। मेरा विश्वास है कि परमाणु हथियार भयंकर विनाश जरूर ला सकते हैं, परंतु उनका एक महत्त्व यह है कि वे सामने वाले में यह भाव जरूर पैदा करते हैं कि दूसरा भी कम नहीं है और ये उसे डरा कर रखते हैं। इस तरह परमाणु हथियार प्रतिरोधक शक्ति के रूप में काम करते हैं। वर्तमान स्थिति में उत्तर कोरिया के अलावा दूसरा कोई देश परमाणु हथियारों के उपयोग की बात नहीं सोचेगा। चीन को अपनी तुच्छ युद्धप्रियता को भी समझना चाहिए, विशेषकर उस स्थिति में जबकि अमरीका व जापान उसके सामने खड़े हैं। हाल में भारत, जापान व अमरीका ने दक्षिण चीन सागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करके इसका संदेश भी दे दिया है। फिर भी अगर चीन युद्ध के बीज बोने की कोशिश करेगा तो हथियारों के इस्तेमाल से तो भारत भी चूकने वाला नहीं है।

बस स्टैंड

पहला यात्री : कोटखाई दुष्कर्म मामले में जब सभी दल न्याय के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, तो कांग्रेस केवल मौन व्रत क्यों रख रही है?

दूसरा यात्री : कुछ हंसोड़ सोचते हैं कि मनमोहन सिंह ने उसे ऐसी सलाह दी होगी।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com

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