खुला आकाश ढूंढती गुडि़या

By: Jul 2nd, 2017 12:05 am

शाम घिरती आ रही थी और नीलू और उसकी गुडि़या खिड़की में बैठी-बैठी उदास हो गई। तभी नीलू उठी और साइकिल चलाने लगी और चलाते-चलाते कहीं चली गई। मम्मी बाहर आई और नीलू को न देख ढूंढने निकल पड़ीं।  सड़क खत्म होने तक नीलू कहीं भी नहीं थी। मम्मी चुपचाप घर लौट आईं। बाहर मोटरसाइकिल की आवाज आई। पापा आ गए थे। नीलू की साइकिल बाहर न देख कर उन्होंने पूछा, नीलू साइकिल ले कर कहां गई रास्ते में सड़क पर नहीं दिखाई दी। मम्मी कुछ भी नहीं बोल पाईं। उन्हें तो रोना आ रहा था। अभी-अभी ही तो दूध पीकर बाहर गई थी साइकिल चलाने। पापा ने कहा अपनी सहेली ऋचा के यहां होगी। और पापा बिना चाय पिए ही ऋचा के यहां नीलू का पता करने चल दिए। नीलू वहां भी नहीं थी। अब तक काफी देर चुकी थी।  अंधेरा होने लगा था।  इतनी देर तक तो वह कभी बाहर नहीं रहती थी। मम्मी-पापा की परेशानी से बेखबर नीलू चौड़ी सड़क पर फर्राटे से साइकिल दौड़ा रही थी। पिछले साल यह साइकिल उसे पहली क्लास में फर्स्ट आने पर मिली थी। अब तक वह साइकिल चलाने में अच्छी तरह माहिर हो चुकी थी, लेकिन घर के सामने की सड़क और पार्क के चारों तरफ  की सड़कें छोड़ कर आज तक वह साइकिल पर कहीं भी नहीं गई। आज वह आंख बचा कर बिना पूछे इस चौड़ी सड़क की सैर को निकल आई थी। रास्ता उसका जाना पहचाना था।  इसी पर से तो वह रोज स्कूल जाती थी। सड़क पार करना भी उसके स्कूल में सिखा दिया गया था।  हां, जब कोई कार तेजी से उसके पास से गुजरती तो उसे थोड़ी घबराहट जरूर होती,  पर वह हैंडिल टेढ़ा-मेढ़ा कर के अपने आप को संभाल ही लेती थी। आज अपने को खुली सड़क पर अकेला पाकर उसकी खुशी का ठिकाना न था। वह खूब तेजी से साइकिल चला रही थी, उसके बाल हवा में पीछे उड़ रहे थे और वह बिलकुल रेशमा दीदी जैसी लग रही थी। अचानक तेजी से आती एक कार जोर से ब्रेक लगाए जाने की आवाज के साथ उसके बिलकुल पास आकर रुकी।  क्या इस तरह साइकिल चलाई जाती है? एक सज्जन ने कार की खिड़की से सिर निकाल कर गुस्से से पूछा। डर के मारे नीलू के हाथ से साइकिल छूट गई। साइकिल एक तरफ  गिरी और नीलू दूसरी तरफ ।  उसके पैर में बड़ी जोर का दर्द हो रहा था।  घुटने में चोट लगी थी और कोहनियां भी छिल गई थीं।  ट्रैफिक से भरी उस सड़क पर पल भर में ही भीड़ जमा हो गई।   नीलू ने झट से साइकिल उठाई और उसका दिल हुआ कि वह तुरंत अपने घर पहुंच जाए। तभी भीड़ में उसे पापा दिखाई दिए। नीलू दौड़ कर पापा से लिपट गई।  नीलू रोने लगी थी।  थोड़े प्यार और थोड़ी नाराजगी के साथ पापा ने पूछा, नीलू तुम बिना घर में बताए अकेले इस सड़क पर क्यों आ गई। मैं देखना चाहती थी कि मुझे बड़ी सड़क पर साइकिल चलाना आता भी है या नहीं। बस हिम्मत कर के बिना बताए ही निकल पड़ी। हिम्मत कर के चुपचाप निकलने से बेहतर तो यह था कि तुम हिम्मत कर के हमें बता देती।   हम रेशमा दीदी को तुम्हारे साथ भेज देते। दोनों साथ में होतीं तो न तुम्हें परेशानी होती न हमें और न बड़ी सड़क पर चलने वाले लोगों को, पापा ने कहा। चल अब घर चल।  नीलू को देखकर मां दौड़ कर उसके पास आई।  कल से नीलू भी अपनी बड़ी दीदी के साथ साइकिल में स्कूल जाएगी पापा ने कहा। हां रेशमा नीलू अब ठीक से साइकिल चला लेती हैं।  मैं भी कल साथ चलूंगा ताकि देख सकूं कि नीलू ठीक से साइकिल चला रही है या नहीं। ठीक है  फिर तो कल से हम पांच लड़कियों के दल में नीलू  भी शामिल हो जाएगी।

 


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