गैंग बनाकर महिलाओं पर टूटते भेडि़ए

By: Jul 27th, 2017 12:02 am

विजय शर्मा

लेखक, हमीरपुर से हैं

दुष्कर्म की भयंकर घटनाएं यह सोचने पर बाध्य करती हैं कि क्या इनसान इस कद्र हैवान व दरिंदा बन सकता है, जो गैंग बनाकर महिलाओं व किशोरियों की अस्मिता को लूटने पर आतुर है। ऐसे घृणित अपराधी तो मर्द कहलाने के भी लायक नहीं हैं, जो बेबस और निरीह स्त्रियों और किशोरियों को अपना शिकार बनाते हैं…

हिमाचल प्रदेश जैसे शांत राज्य में बढ़ती अपराध की खबरें जनमानस को विचलित करने लगी हैं। कोटखाई प्रकरण ने प्रदेश की जनता को उद्वेलित कर दिया है। न्याय का आस एवं दोषियों को सजा दिलाने के लिए समाज का हर वर्ग एकजुट होकर सड़कों पर उतर आया है। लोग पुलिस की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि कोटखाई प्रकरण में पुलिस ने जिस प्रकार ढील बरती, उससे अपराधियों को बचाव का मौका मिल गया और एक होनहार बालिका वहशी दरिंदों की दरिंदगी का शिकार हो गई। पुलिस का अपराध और अपराधियों से निपटने की जो कार्यप्रणाली है, वह दरअसल वही 1980 के दशक की है। बेशक पुलिस कितनी भी हाईटेक और सुविधा संपन्न हो गई हो, लेकिन उसकी कार्यप्रणाली में अब तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलता है। इसकी नाकामी का ही नतीजा है कि लोग आज सड़कों पर उतर आए हैं। दरअसल पिछले एक दशक से अपराधों में बढ़ोतरी का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और महिला अपराधों में निरंतर बढ़ोतरी होती जा रही है। बिटिया प्रकरण ने प्रदेश की जनता को झकझोर दिया है और लोग अब जान गए हैं कि यदि अब भी अपराध और अपराधियों के खिलाफ एकजुट नहीं हुए, तो उनकी अपनी बहू-बेटियां भी सुरक्षित नहीं रहेंगी। जो प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता हो, वहां बलात्कार, हत्या और नशाखोरी की प्रदेश से बाहर के लोग कल्पना भी नहीं करते और देश-विदेश से पर्यटक बेझिझक यहां का रुख करते हैं। हालिया घटनाएं चिंतित करती हैं। प्रदेश में पिछले तीन-चार सालों में हर वर्ष दुष्कर्म की करीब 250 वारदातें हुईं और इसी दौरान तीन विदेशी महिलाओं से भी दुष्कर्म के मामले सामने आए।  2014 में दिल्ली के निर्भया प्रकरण के बाद महिला अपराधों से निपटने के लिए कानून में आवश्यक संशोधन करके उसे लागू कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद महिलाओं पर एक से बढ़कर एक घिनौने अपराध हो रहे हैं। देश भर के तमाम अखबार बलात्कार और हत्या की खबरों से भरे रहते हैं। दुष्कर्म की भयंकर घटनाएं यह सोचने पर बाध्य करती हैं कि क्या इनसान इस कद्र हैवान व दरिंदा बन सकता है, जो गैंग बनाकर महिलाओं व किशोरियों की अस्मिता को लूटने पर आतुर है। ऐसे घृणित अपराधी तो मर्द कहलाने के भी लायक नहीं हैं, जो बेबस और निरीह स्त्रियों और किशोरियों को अपना शिकार बनाते हैं। आज रिश्तों की डोर इतनी कच्ची हो गई है कि लोग अपने ही मित्र व रिश्तेदार की मासूम किशोरियों व महिलाओं को हवश का शिकार बना रहे हैं। अधिकतर मामलों में मित्र, रिश्तेदार और पुलिस पर भी यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे हैं। यह हकीकत गिरते सामाजिक मूल्यों की ओर इशारा करती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में भी इस तथ्य को इंगित किया गया है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में जान-पहचान वालों एवं संबंधियों का ज्यादा हाथ होता है।

दूसरी बड़ी बात यह है कि महिलाओं के उत्पीड़नकर्ताओं के मन में सजा का भी कोई भय नहीं रह गया है। हमारी लचर एवं लंबी न्याय व्यवस्था के चलते ज्यादातर अपराधी बच निकलते हैं और पीडि़तों के साथ भी कोर्ट में अपराधियों जैसा ही सलूक होता है। शायद यही वजह है कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि हो रही है। बलात्कार के मामलों में सजा की दर बेहद कम है। आंकड़े बताते हैं कि 2006 में यौन उत्पीड़न के मामलों में सजा की दर 51.8 फीसदी, 2007 में 49.9, 2008 में 50.5 और 2009 में 49.2 फीसद रही। इन आंकड़ों से साफ है कि बलात्कार के अधिकतर मामलों में अपराधी सजा से बच निकले हैं। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में सजा केवल 30 फीसदी गुनहगारों को ही मिल रही है, जिसके कारण बलात्कारियों और यौन उत्पीड़नकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। इस समय देश में तकरीबन एक लाख से अधिक बलात्कार के मुकदमें अदालतों में लंबित हैं। इनका निपटारा कब होगा, इसके बारे में फिलहाल कोई नहीं जानता। वहीं भारत में हर घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। ये तो केवल वही आंकड़े हैं, जो पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हैं। अधिकांश मामलों में तो पुलिस रिपोर्ट दर्ज ही नहीं करती है या लोकलाज के कारण भी ऐसे मामलों को पीडि़ता के परिजनों द्वारा दबा दिया जाता है। जब तक यौन उत्पीड़न के मामले में शत-प्रतिशत गुनहगारों को सजा नहीं मिलेगी, ऐसे दुष्कृत्य थमने वाले नहीं हैं। पुलिस चाहे कितनी भी हाईटेक क्यों न हो जाए, जब तक वह संवेदनहीन बनी रहेगी, अपराध को रोकने में नाकाम ही रहेगी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि वे अपने मातहत कर्मचारियों को मामले की संवेदनशीलता के आधार पर निपटने का प्रशिक्षण दिलवाएं। उनमें इतनी समझ विकसित करें कि वे जान सकें कि कौन से मामले प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने चाहिएं। इस तरह से प्रदेश पुलिस को पेशेवर बनाकर हम काफी हद तक अपराध और अपराधियों के हौसलों को पस्त कर सकते हैं। जब तक पुलिस सभी मामलों को एक ही लाठी से हांकने का प्रयास करेगी, चूक भी होगी और भ्रष्टाचार के रास्ते भी खुले रहेंगे। अतः महिला अपराध के मामले तो पुलिस की प्राथमिकता पर होने चाहिएं। दुष्कर्म सरीखे जघन्य अपराध की पीडि़ताओं और उनके परिजनों की पीड़ा समझकर विशेष संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत होती है। दुर्भाग्यवश तमाम प्रयासों के बावजूद अब तक ऐसा नहीं हो पाया है।

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