घन गरजे

By: Jul 17th, 2017 12:05 am

सखि, वन-वन घन गरजे!

श्रवण निनादा-मगन

मन उन्मन

प्राण-पवन-कण

लरजे!

परम अगम प्रियतमा गगन की शंख-ध्वनि आई

मंथर गति रति चरण चारू की चाप गगन में छाई

अंबर कंपित पवन संचारित संसृति अति सरसाई

मंद्र-मंद्र आगमन सूचना हिय में आन समाई

क्षण में प्राण उन्मादी

कौन इन्हें अब बरजे?

मेरा गगन और मम आंगन आज सिहर कर कांपा

मेरी यह आल्हाद बृथा सखि, बना असीम अमापा

आवेंगे वे चरण जिन्होंने इस त्रिलोक को नापा

सखि मैंने ऐसा आमंत्रण-श्रुति स्वर कब आलापा?

लगता है मानो ये बादल कुछ यों ही हैं तरजे!

श्रवण-निनाद-मगन

मन-उन्मन

प्राण-पवन-कण लरजे!

-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’’

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