जीएसटी से आगे की राह

By: Jul 4th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं

डा. भरत झुनझुनवालाबड़े उद्योगों का बाजार बढ़ने से इनके शेयर उछल रहे हैं। यदि बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन में पांच प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। तो छोटे उद्योगों द्वारा 20 प्रतिशत की कटौती हो रही है। समग्र अर्थव्यवस्था पस्त है। दूसरी तरफ वर्तमान सरकार कर्मठ है। रेलवे, हाई-वे एवं बिजली जैसे क्षेत्रों में सुधार हो रहा है। मानसून भी सहयोग कर रहा है। जीएसटी से अंतरराज्यीय व्यापार सरल होगा। इन कारणों से अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। आगे की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों में कौन ज्यादा प्रभावी होता है…

बीते समय से शेयर बाजार में उछाल आता रहा है, जबकि वृद्धि दर में गिरावट होती रही है। यह परिस्थिति विरोधाभासी है। सामान्य रूप से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है तो बाजार में माल की मांग बढ़ती है, कंपनियों द्वारा माल का उत्पादन अधिक किया जाता है, उनके लाभ बढ़ते हैं और शेयर बाजार में उछाल आता है। यानी वृद्धि तथा शेयर बाजार साथ-साथ चलते हैं, परंतु इस समय ये विपरीत दिशा में चल रहे हैं। वृद्धि दर गिरी हुई है, परंतु शेयर बाजार उछल रहा है। यह परिस्थिति सरकार की नीतियों का सीधा परिणाम है। वर्तमान आर्थिक नीतियों में बड़ी कंपनियों को खुला बाजार मिल रहा है, जबकि छोटे उद्योगों का दायरा सिकुड़ रहा है। यूं समझिए कि तीन कमजोर भाइयों की रोटी परिवार के एक ताकतवर बेटे ने छीन ली। इससे जो ताकतवर बेटा है, वह और ताकतवर हो गया जैसे शेयर बाजार उछल रहा है, परंतु समग्र परिवार का स्वास्थ्य कमजोर हो गया, जैसे वर्तमान में वृद्धि दर गिरी हुई है।

इन हालात को पैदा करने में नोटबंदी का योगदान रहा है। नकद में व्यापार छोटे उद्यमी ज्यादा करते हैं जैसे गोलगप्पे के ठेले वाला नकद में आटा खरीद कर गोलगप्पे बनाता है एवं नकद में बेचता है। नोटबंदी से उसका धंधा कुछ समय के लिए चौपट हो गया, चूंकि तमाम लोगों के पास डिजिटल भुगतान की सुविधा अथवा जानकारी नहीं थी। दो माह बाद अर्थव्यवस्था में नोट पुनः प्रचलन में आ गए, परंतु गोलगप्पे वाले का धंधा पुनः नहीं चला। नोटबंदी का आंशिक प्रभाव दीर्घकालीन हो गया। किसी समय मेरी किसी बड़ी बिस्कुट निर्माता कंपनी के सेल्समैन से चर्चा हुई। उसने बताया कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि देश की हर दुकान में उनका माल उपलब्ध हो। जैसे मान लीजिए कोई उपभोक्ता पार्ले के ग्लूकोज बिस्कुट पसंद करता है। वह किसी दुकान पर पार्ले बिस्कुट खरीदने गया, परंतु उस दुकान में पार्ले का बिस्कुट उपलब्ध नहीं था। फलस्वरूप उसने दूसरा बिस्कुट खरीद लिया। अब उसे यह नया बिस्कुट पसंद आ गया और उसने सदा के लिए पार्ले को छोड़ दिया। अतः लगातार चल रही मांग में ब्रेक आने पर उसका पुनः उत्पन्न होना जरूरी नहीं होता है। इसी प्रकार नोटबंदी के दौरान लोगों ने कुछ समय के लिए गोलगप्पे खाना बंद कर दिया। नोट उपलब्ध होने के बाद कुछ खरीददार वापस आए, तो कुछ सदा के लिए जुदा हो गए। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए पैकेटबंद नमकीन अथवा आइसक्रीम खाना शुरू कर दिया। बड़ी कंपनियों जैसे मैकडोनल्ड अथवा डोमिनो पर यह दुष्प्रभाव कम पड़ा। उनकी ब्रिक्री का बड़ा हिस्सा पहले भी डिजिटल प्लेटफार्म पर होता था, बल्कि नोटबंदी से उन्हें लाभ हुआ। जो उपभोक्ता चाट खाने निकला था, वह नकद भुगतान न कर पाने के कारण डोमिनो की तरफ मुड़ गया। इस प्रकार कुल अर्थव्यवस्था में मंदी आई, चूंकि गोलगप्पे वाले का धंधा चौपट हो गया। परंतु डोमिनो के लाभ बढ़े और शेयर बाजार में भी उछाल आया।

ऐसा ही प्रभाव डिजिटल भुगतान का हो रहा है। गृहिणियों ने तिजोरी में जो नकद सुरक्षा कवच के रूप में रखा था, वह जबरन बैंक में जमा हो गया। गृहिणी खाली हो गई। वह सहम गई। नोटबंदी के दौरान तमाम लोगों ने आशंका व्यक्त की थी कि 2000 रुपए के नए नोट अथवा 100 रुपए के पुराने नोटों को भी सरकार बंद कर सकती है। नकद रखने पर उसका भरोसा उठ गया। बैंक के टर्म डिपॉजिट अथवा म्युचुअल फंड में इन्कम टैक्स का टंटा है। घर के पुरुषों का सहयोग भी लेना होता है। इसलिए गृहिणियों ने सुरक्षा कवच के लिए सोना खरीदना चालू कर दिया है। यही कारण है कि बीते दिनों देश में सोने की मांग में खासी वृद्धि हुई है। सोने के आयात के लिए देश की पूंजी बाहर जा रही है। इससे अर्थव्यवस्था दबाव में है जैसे गुब्बारे से हवा निकलने से वह पिचक जाता है। परंतु बड़ी कंपनियों, विशेषकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर दुष्प्रभाव कम पड़ता है। भारत में सोने की खरीद से अर्थव्यवस्था की जो हवा निकलती है, वही हवा दक्षिण अफ्रीका अथवा रूस जैसे सोने के

निर्यातक देशों में पहुंच कर उनके गुब्बारे को फुला रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारत में ब्रिक्री कम हुई है, तो रूस में ज्यादा, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पस्त हो रही है। जीएसटी का भी ऐसा ही प्रभाव होगा।

जीएसटी का एक प्रमुख उद्देश्य अंतरराज्यीय व्यापार को सरल बनाना है। एक राज्य में उत्पादन करने वाली कंपनी के लिए दूसरे राज्य में माल भेजना अब ज्यादा आसान हो जाएगा। राज्य की सरहद पर फार्म नहीं देना होगा। एक राज्य में अदा की गई जीएसटी का रिफंड दूसरे राज्य में लिया जा सकेगा। इससे छोटी इकाइयों की मुश्किलें बढ़ेंगी। मान लीजिए हरिद्वार में कोई छोटा पर्दा बनाने का उद्योग है। पूर्व में मुंबई एवं सूरत में बने पर्दे हरिद्वार कम पहुंचते थे, चूंकि उन्हें केंद्रीय बिक्री कर अदा करना होता था, राज्य की सीमा पर बिक्री के फार्म का झंझट रहता था इत्यादि। जीएसटी के लागू होने से मुंबई के बड़े पर्दा निर्माता के लिए माल को हरिद्वार भेजना आसान हो जाएगा। हरिद्वार के पर्दे के निर्माता को जो अकस्मात संरक्षण उपलब्ध था, वह अब समाप्त हो जाएगा। बड़ी इकाइयों को पूरे देश में स्वछंद घूमने का अवसर मिलेगा, जबकि छोटी इकाइयों की हालत बिगड़ेगी। बड़ी कंपनियों के लाभ बढ़ेंगे और शेयर बाजार उछलेगा। परंतु छोटे उद्योगों के मालिक एवं कर्मियों द्वारा बाजार से माल कम खरीदा जाएगा। कुल अर्थव्यवस्था का संकुचन होगा। यूं समझिए कि हाई-वे पर चलने वाले ट्रक के लिए जीएसटी उन्नत गुणवत्ता के मोबिल ऑयल का काम करेगी। परंतु हाई-वे पर बड़ी ट्रक की तेज रफ्तार से बैलगाड़ी और ठेले और छोटी दुकान चलाने वाले भयाक्रांत होकर दुबक जाएंगे।

इस समय नोटबंदी, डिजिटल पेमेंट तथा जीएसटी, ये तीनों कारक बड़े उद्योगों को खुला मैदान उपलब्ध करा रहे हैं, जबकि छोटे उद्योग पर चोट कर रहे हैं। बड़े उद्योगों का बाजार बढ़ने से इनके शेयर उछल रहे हैं। यदि बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन में पांच प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, तो छोटे उद्योगों द्वारा 20 प्रतिशत की कटौती हो रही है। समग्र अर्थव्यवस्था पस्त है। दूसरी तरफ वर्तमान सरकार कर्मठ है। रेलवे, हाई-वे एवं बिजली जैसे क्षेत्रों में सुधार हो रहा है। मानसून भी सहयोग कर रहा है। विश्व बाजार में तेल के दाम गिरे हुए हैं। जीएसटी से अंतरराज्यीय व्यापार सरल होगा। इन कारणों से अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। आगे की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों में कौन ज्यादा प्रभावी होता है। नोटबंदी, डिजिटल पेमेंट तथा जीएसटी के कारण छोटे उद्योग दबाव में आ रहे हैं और अर्थव्यवस्था शिथिल पड़ रही है। इनके विपरीत रेलवे, हाई-वे, बिजली, मानसून, तेल के दाम तथा जीएसटी सरीखे कारकों के प्रभाव में बड़े उद्योग उछल रहे हैं। जहां एक तरफ गुब्बारे की हवा निकल रही है, तो दूसरी तरफ एयर पंप से उसमें हवा डाली जा रही है। ऐसे में गुब्बारा फूलेगा या पिचकेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा प्रभाव ज्यादा कारगर है। बहरहाल वर्तमान में अर्थव्यवस्था की दिशा अनिश्चित है, यद्यपि बड़े उद्योगों की बल्ले बल्ले है।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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