जीरो बजट प्राकृतिक कृषि

By: Jul 26th, 2017 12:07 am

newsधरती में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है। महात्मा गांधी के सोलह आना सच्चे इस वाक्य को ध्यान में रखकर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जाए, तो किसान को न तो अपने उत्पाद को औने-पौने दाम में बेचना पड़े और न ही पैदावार कम होने की शिकायत रहे। लेकिन सोना उगलने वाली हमारी धरती पर खेती करने वाला किसान लालच का शिकार हो रहा है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस देश में रासायनिक खेती के बाद अब जैविक खेती सहित पर्यावरण हितैषी खेती,एग्रो इकोलॉजिकल फार्मिंग, बायोडायनामिक फार्मिंग, वैकल्पिक खेती, शाश्वत कृषि,सावयव कृषि, सजीव खेती, सांद्रिय खेती, पंचगव्य, दशगव्य कृषि तथा नडेप कृषि जैसी अनेक प्रकार की विधियां अपनाई जा रही हैं और संबंधित जानकार इसकी सफलता के दावे करते आ रहे हैं। परंतु किसान भ्रमित है। परिस्थितियां उसे लालच की ओर धकेलती जा रही हैं। उसे नहीं मालूम उसके लिए सही क्या है? रासायनिक खेती के बाद उसे अब जैविक कृषि दिखाई दे रही है। किंतु जैविक खेती से ज्यादा सस्ती,सरल एवं ग्लोबल वार्मिंग (पृथ्वी के बढ़ते तापमान) का मुकाबला करने वाली ‘जीरो बजट प्राकृतिक खेती’ मानी जा रही है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है? जीरो बजट प्राकृतिक खेती देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।

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