तख्त पर सलवटें

By: Jul 27th, 2017 12:05 am

चुनाव के पहर में हिमाचल और पहरे में सत्ता के कदम। परिस्थितियों को चिन्हित करता सरकार का रुतबा और राजनीतिक शोर में उलझा यह प्रदेश अपने आसपास विचित्र दुर्योग देख रहा है। कोटखाई कांड की चोट पर टूटती सरकार की ढाल या कांग्रेसी फूट की चाल पर बिखरता कुनबा। दहलीज-दर-दहलीज बिगड़ते कदमों की निशानी में कांग्रेस का दारोमदार अपनी टूट-फूट में, लेकिन सत्ता अपने मुकाबले में अकेली नहीं तो फिर इसके साथी बिखर क्यों रहे। आक्रोश का एक समूह विपक्ष के अनेक मजमूनों का साथी, तो दूसरी ओर कांग्रेस ही अपने जिस्म पर खरोंचें गिनने को आतुर क्यों। हैरानी यह कि कोटखाई प्रकरण से पहले भी सत्तारूढ़ दल के दो घर आबाद रहे। इस बार कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू को दरकिनार नहीं कर पाए मुख्यमंत्री, तो अपनी ही दीवार के दीदार नहीं कर पाई पार्टी। अनेक लंगर डालकर बैठे कई मंत्री, कुछ सरकार के-कुछ पार्टी के। रोचक तथ्य पुनः परिवहन मंत्री के जन्मदिन को मनाएंगे और जो सौगात मिलेगी, उसी का नाम सियासत है। राजनीति के जिस हरम में प्रदेश की छवि कैद है, उसे मुक्त कौन कराएगा। क्या भाजपा इसी कोशिश के संघर्ष में है या कांग्रेस खुद अपनी सरकार को ठिकाने लगाने पर तुली है। सियासत से हटकर भी कोटखाई प्रकरण ने सरकार को लांछित तो किया ही और जिस तरह सीबीआई की मांद में मामला आया, वहां यह न जाने कौन सा पर्दाफाश करेगा। इसका अर्थ यह भी कि हिमाचल का चेहरा और आदतें बदल रही हैं और सामाजिक प्रभाव के सिक्के का एक पहलू खुद सियासत भी है। भाजपा भी सामाजिक सिक्के के इसी पहलू पर चोट कर रही है, लेकिन सिक्का तो कमोबेश हर सरकार के समय प्रभावशाली लोगों का होने लगा है। ये वही लोग हैं जो वन भूमि में सेब के पौधे उगा पाते हैं या सरकारी संसाधनों के आबंटन में रुतबा दिखाते हैं, तो क्या इसी रंग का कोई भेडि़या अब हमारी बहू-बेटियों को बुरी निगाह से देख रहा है। खैर राजनीतिक कृपा के कारण हिमाचली समाज की शब्दावली पूरी तरह बदल चुकी है और इसीलिए पांच साल बाद हम नए शब्द खोजकर फिर राजनीतिक सत्ता के गुलाम बन जाते हैं। यानी बारी-बारी सत्ता के तख्त पर बिछी चादर बदली जाती है, लेकिन अब मैली चादर का युद्ध है और इसे जीत कर पटकनी देनी है। अंततः कोटखाई भी तो हमारे आचरण की मैली चादर ही है और इसके लिए सरकार की चांदनी में दाग ढूंढने में भाजपा से माहिर कौन होगा। सरकारों की भी कोशिश रहती है कि सत्ता की चादर हमेशा चटक, कोरी और सफेद दिखाई दे। इसलिए मुकाबला एक चादर पर टिकता है, जिस पर भाजपा को दाग तो कांग्रेस को ही सुराख दिखाई दे रहा है। यह सुराख भाजपा द्वारा पहचाने गए दाग से भी भयावह है, क्योंकि यहीं से इस चादर के तार-तार होने की गुंजाइश दिखती है। इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस के भीतर सत्ता के भी कई टुकड़े हैं। बेशक भाजपा ने सत्ता के दामन में छेद खोज लिए और इन्हीं में से एक अंतिम प्रहार बनकर कोटखाई के सच के साथ जुड़ा है, लेकिन संघर्ष के ताबूत में सत्ता पक्ष का पूरा बदन जकड़ा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस के नए प्रभारी सुशील कुमार शिंदे हिमाचल में घायल पार्टी व सरकार के परिंदों को अपने पिंजरे में डाल पाएंगे। यह कार्य इसलिए भी कठिन है, क्योंकि पार्टी की कमान केंद्र में सशक्त नहीं है और दूसरे इस मुख्यमंत्री से निपटने का जोखिम अब तक घातक माना गया है। ऐसे में सवाल यह भी कि हिमाचल में कांग्रेस आखिर बचाना क्या चाहती है-सत्ता या पार्टी। न पार्टी ध्वज से भाजपा के खिलाफ डंका बज रहा है और न सत्ता के चमत्कार में विपक्ष दरकिनार हुआ। बहरहाल आरोपों की बहंगी में पहले से सवार भाजपा का साथ देने के लिए दूसरे पलड़े पर कोटखाई प्रकरण सवार है, तो सत्ता के तख्त पर उभरती सलवटें परेशान तो करेंगी, लेकिन इससे हटकर भी कांग्रेस का अपना युद्ध है और जहां पूरा जहाज डुबोने की कोशिश में न जाने कौन बचेगा-वीरभद्र या सुक्खू।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App