पहाड़ी गांधी के नाम

By: Jul 14th, 2017 12:02 am

आजादी के हिमाचली अंदाज को जिस सुबह का इंतजार था, उसे बाबा कांशीराम ने एक मंजिल व मुकाम की तरह अपने व्यक्तित्व में ओढ़ लिया और आज हम स्वतंत्र भारत की संतान बनने का गौरव पा रहे हैं। आजादी के ऐसे दर्शन को स्वीकार करते हुए बेशक समारोह के रूप में मनाते वर्षों बीत गए, लेकिन अब सरकार ने भी माना कि क्रांतिकारी कवि को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए कुछ और भी करना होगा। लिहाजा बाबा के पैतृक गांव की उदासीन गली तक आजादी के कदम, कृतज्ञता के साथ ऐसे स्मारक को खोजने लगे जो वर्षों पूर्व बन जाना चाहिए था। डाडासीबा अचानक आजादी के मठ की तरह नजर आने लगा और इस घोषणा के फलक पर हम एक योद्धा के कृतित्व की रोशनी में, भविष्य की पीढि़यों को देश के प्रति जज्बा बता पाएंगे। सरकार की घोषणा ने डाडासीबा के गांव के पिछड़ेपन में आजादी के मायने खोजे हैं। ऐसे में आदर्श गांव को चिन्हित करने की पहल में, शहीदों की बस्तियां पूजी जानी चाहिएं। पहली बार कवि सम्मेलनों से आगे हम बाबा कांशीराम को अंगीकार कर रहे हैं, तो इसके मायने एक विरासत को आगे बढ़ाने के रहेंगे। स्मारक को इमारत के आगे राष्ट्रीय संवेग और संवेदना की कृति बनाने के लिए, एक व्यापक रूपरेखा व सोच की जरूरत रहेगी। जो शख्स आजादी की आग में बार-बार कूदा हो और अपनी तरह की कुर्बानी का सबूत बना, उसके जीवन का चित्रण कई तरीकों से संभव होना चाहिए। साहित्य से आजादी तक के सफर में कलम की हस्ती और ताकत का प्रदर्शन, हिमाचल की अस्मिता को आज भी ऊर्जा से सराबोर करता है, तो यह विषय शोध का है। इस दृष्टि से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से यह पूछने का अधिकार है कि संस्थागत विजन की परिपाटी में हिमाचली नायक का स्थान क्यों नहीं अध्ययन व अनुसंधान का दीपक जला पाया। हमारी अपनी पीढ़ी नायक की खोज में विश्वविद्यालय के किस प्रयास की प्रशंसा करे। यह पहला अवसर है, जब सरकारी प्रेस विज्ञप्ति ने पहाड़ी गांधी की शख्सियत पर शिद्दत से सामग्री परोसी और इनके वैविध्यपूर्ण जीवन के पहलू साझा हुए। ऐसे महापुरुषों की जीवन यात्राओं पर लोक नाटिकाओं के जरिए कला व साहित्य सृजन की शृंखला अगर सामने आती है, तो नायक सही मायने में हमेशा वक्त के साथ रहेगा। बाबा कांशीराम सरीखे कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने में यकीनन हिमाचल कभी पीछे नहीं रहा और इस लिहाज से कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग एवं अकादमी का योगदान सराहनीय रहा है। मौजूदा दौर में स्वतंत्रता सेनानी बोर्ड के उपाध्यक्ष सुशील रतन ने अवश्य ही हिमाचली नायक के प्रति अपने दायित्व में कई निर्णय जोड़ लिए और बाबा कांशीराम के कृतित्व पर प्रस्तावित स्मारक एवं संग्रहालय में उनका योगदान स्पष्ट है। इससे पूर्व राज्य स्तरीय स्वतंत्रता सेनानी स्मारक की पैरवी में रतन ने आजादी का पूजा स्थल चिन्हित किया, तो अब इसी दिशा में हिमाचली नायक को पूरे प्रदेश की पलकों पर सवार किया जा रहा है। वास्तव में नायकों के स्मारक पूजा स्थल के मानिंद हमारे होने का एहसास है और इसीलिए इस दिशा में जोड़ी गई हर ईंट पवित्र है। विभिन्न युद्ध मोर्चों पर हुई हिमाचली शहादत के प्रमाणिक दस्तावेज अगर  अपनी जीवंतता और दिलेरी की हिफाजत को साझा करने का इतिहास है, तो इस प्रयास की बानगी में हर ऐसे चरित्र को महत्त्व देना होगा। इस कड़ी में पहाड़ी गांधी के प्रति पैदा हुई संवेदना का स्वागत करते हुए यह भी देखना होगा कि समाज और राज्य किस तरह अपनी कृतज्ञता के दीपक जलाते हैं। इसके साथ हिमाचली वीर गाथाओं की दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से प्रस्तुति तथा दस्तावेजीकरण भी आवश्यक हो जाता है। विभिन्न ऐतिहासिक किलों के अलावा शिमला के रिज व धर्मशाला के शहीद स्मारक पर नियमित रूप से दृश्य एवं श्रव्य प्रस्तुतियों के जरिए हिमाचली इतिहास व शहादत के निरंतर दौर का चित्रण करना होगा।

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