बड़ा नाम – बड़ा काम

By: Jul 16th, 2017 12:05 am

साल 2010 में पड्डल कालेज से चलने वाली आईआईटी मंडी ने आकाश और तेजस सरीखे प्रोजेक्टों में योगदान देकर खुद को इक्कीस साबित कर दिया है। अब बादल फटने व भू-स्खलन की जानकारी भी यहां से चुटकियों में मिलने लगेगी। सोलर  एनर्जी पर भी तेजी से काम हो रहा है। कमांद में कैसे लिखी जा रही है विकास की गाथा, बता रहे हैं अमन अग्निहोत्री व आशीष भरमोरिया…

प्रकृति की गोंद में बसा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कमांद मंडी रिसर्च और संभावनाओं के लिए सुनहरा केंद्र है। मंडी शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित कमांद  में हिमालय की शिवालिक रेंज पहाडि़यों के साथ आईआईटी मंडी की स्थापना की गई है। इसका अद्भुत ईको फें्रडली भवन ऊहल नदी के किनारे बन रहा है। आईआईअी मंडी की शुरुआत यूं तो 2008 में आईआईटी रुड़की के कैंपस से हुई है और जुलाई 2009 में आईआईटी रुड़की में ही पहला बैच बैठा था। इसके बाद 24 फरवरी,2009 को आईआईटी मंडी का नींव पत्थर रखा गया था। इस समय देश में नई खुली आईआईटी में सबसे पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी अपने नए कैंपस में शिफ्ट होने वाली पहली आईआईटी बन चुकी है। कमांद में आईआईटी मंडी के लिए प्रदेश सरकार ने 538 एकड़ भूमि दी है, जिसमें नार्थ और साउथ दो कैंपस में आईआईटी मंडी के भवनों का अब निर्माण हो रहा है। पहला बैच पड्डल कालेज से लिए गए भवनों में 2010 में बैठा था।

इन बडे़ प्रोजेक्ट पर हो रहा काम

* पानी की शुद्धता जांचने के लिए नैनो सेंसर

* पहली स्टेज में ही पता चलेगी गुर्दे की बीमारी

* कपडे़ की रंगाई से निकलने वाले पानी एजो डाई पर शोध

* स्पाइडर मैन की तरह दीवार पर चढें़गे लोग

* जैव इंजीनियरिंग रोकेगी हिमालय में भू-स्खलन

* पशु-पक्षियों की आवाज पहचानने पर शोध

* देश में बनेगी 16 मीटर की नैनो चिप

* बिजली बचाने के लिए माइक्रो ग्रिड

* कूल्हे के मर्ज से छुटकारा दिलाने के बाद सीमेंटेड एस्टीबुलम प्रोसथेसिस प्रोजेक्ट पर शोध

इन्फ्रास्ट्रक्चर

आईआईआटी मंडी दो कैंपस में बांटा गया है। इसमें नॉर्थ व साउथ कैंपस शामिल हैं। साउथ कैंपस में बीटेक के सभी कोर्स चलाए जा रहे हैं। मौजूदा समय में आईआईटी मंडी (कमांद) कैंपस 50 हजार स्क्वेयर मीटर में पूरी तरह तैयार है। पिछले छह महीने में करीब 8500 स्क्वेयर मीटर में निर्माण पूरा कर लिया गया है। इसके अलावा 120000 स्क्वेयर मीटर में कैंपस निर्माणाधीन है।

फैकल्टी : 104, छात्र : 871

यूजी : 571, पीजी : 359

एलुमनी : 486, 16 पीएचडी, 32 एमएस, 10 एमएससी, तीन एमटेक,  425 बीटेक

सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट पर रिसर्च

सोलर एनर्जी से संबंधित चार प्रोजेक्ट्स पर आईआईटी मंडी में काम हो रहा है। इनमें से एक प्रोजेक्ट हिमाचल सरकार से फंडेड है, जबकि  एक प्रोजेक्ट स्टार्टअप के अंतर्गत है। डा. सतवशील पवार तीन लोगों के साथ कोरुगेटेड बॉक्स (गत्ते के बॉक्स) ड्रायर पर काम कर रहे हैं। प्रोजेक्ट हाल में ही शुरू हुआ है। गत्ते के बॉक्स बनने के बाद इनमें नमी को कम करने व एक लेवल पर सेट करना होता है। इसके बाद ही  गत्तों के बॉक्स को उपयोग में लाया जाता है। अभी तक इन बॉक्स में नमी के लेवल सेट करने में इलेक्ट्रिक ड्रायर का इस्तेमाल होता है। उद्योगों में अभी तक इलेक्ट्रिक ड्रायर से ही काम हो रहा है। इसमें बिजली की खपत काफी ज्यादा रहती है। ऐसे में आईआईटी मंडी में सोलर एनर्जी से चलने वाले बॉक्स ड्रायर के प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है।

बायो एक्स सेंटर में जड़ी-बूटियों का संरक्षण

आईआईटी मंडी आईआईटी रोपड़ और पीजीआई चंडीगढ़ के प्राध्यापक, विशेषज्ञ और रिसर्च स्कॉलर मिलकर काम कर रहे हैं। आईआईटी मंडी में स्वास्थ्य सुविधाओं की लागत कम करने, हिमालय रीजन में जड़ी-बूटियों के संरक्षण और खेती में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर शोध किया जा रहा है। आईआईटी मंडी में दस करोड़ की लागत से बने बायो-एक्स रिसर्च सेंटर में रिसर्च वर्क के लिए हाईटेक उपकरण स्थापित किए गए हैं। रिसर्च सेंटर में आईआईटी मंडी और रोपड़ की करीब 45 से ज्यादा फैकल्टी काम कर रही है, जबकि करीब 150 शोधार्थी विभिन्न विषयों में बायो-एक्स रिसर्च सेंटर में काम करेंगे। प्रो. के विजय राघवन ने बताया कि स्वास्थ्य, खेती और हिमाचल की जरूरतों और दिक्कतों पर एक साथ काम करना ही इस सेंटर का मुख्य उद्देश्य है।

 इन पर किया जा रहा शोध

1.कैंसर और मधुमेह जैसे रोगों का पता लगाना

2.लक्षित दवा वितरण के लिए उपन्यास नैनो कण का विकास

3.आयुर्वेद की प्रभावकारिता के डीएनए आधारित अध्ययन

4.हिमालय के औषधीय पौधों की पहचान और संरक्षण, इनके आधार पर दवाएं बनाना

4.कृषि अनुप्रयोगों के लिए कम लागत वाली सेंसर तकनीक

5.हड्डी की संरचना और कृत्रिम हड्डी प्रतिस्थापन का अध्ययन

6.गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए स्क्रीनिंग मशीन, सस्ती, पोर्टेबल एमआरआई और ईसीजी मशीनें

आईआईटी मंडी को अव्वल बनाना प्राथमिकता

आईआईटी मंडी के डायरेक्टर डा. टिमोथी ए गोन्साल्वेस ने ‘दिव्य हिमाचल’ को बताया विजन

दिहि : इनोवेशन की दिशा में हिमाचल में क्या कुछ करने की जरूरत है ?

गोन्साल्वेस : कृषि, पर्यटन और उद्योग में नया करने की जरूरत है। हिमाचल की आर्थिकी कृषि और पर्यटन है। इसके अलावा बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) इकलौता बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। प्रदेश में ईको टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म सरीखी गतिविधियों को बढ़ावा देने की जरूरत है। हाईटेक इंडस्ट्री, क्लीन एयर, इंटरनेट डाटा सेंटर, चिकित्सा उपकरण, फूड प्रोसेसिंग यूनिट, कृषि आधारित उद्योग प्रदेश की आर्थिकी को सुधारेंगे। इस पर काम होना चाहिए। कृषि में नई तकनीक को जोड़ना भी जरूरी है। यूरोप की तर्ज पर हिमाचल में भी होम स्टे है, लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है।

दिहि : आईआईटी मंडी प्रदेश के विकास में किस तरह सहायता कर सकता है ?

-: सोसायटी का विकास ही आईआईटी मंडी का विजन है।   इसका मकसद यहां की जनता को उसे समर्पित करना है। साथ ही आईआईटी मंडी कैटलिस्ट के माध्यम से युवाओं को अपने बिजनेस शुरू करने में आर्थिक व तकनीकी सहायता प्रदान करता है। इसके लिए हिमाचल सरकार से 60 लाख रुपए प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा ईवोक शुरू किया गया है, जिसमें  करीब दस अलग-अलग बिजनेस महिलाएं चला रही हैं। साथ ही सोलर पावर एनर्जी व लो कॉस्ट हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी के एक प्रोजेक्ट पर हिमाचल पावर कारपोरेशन के साथ आईआईटी मंडी काम कर रहा है। ऐसी ही परियोजनाएं जो हिमाचल के विकास में मील का पत्थर साबित होंगी, जिन पर काम कर रहे हैं।

दिहि : आप की नजर में प्रदेश को आर्थिक क्षेत्र में कहां ज्यादा कसरत करनी चाहिए?

-: प्रदेश में सेब, फल व अन्य तरह की कृषि पर आधुनिक तकनीक का बहुत कम इस्तेमाल किया जा रहा है। आईएचबीटी, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में इस्तेमाल हो रही तकनीक ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचनी चाहिए। विदेश से जो सेब के पौधे यहां आ रहे हैं, उनसे यहां प्रति हेक्टेयर सात से नौ टन का उत्पादन हो रहा है, जबकि विदेशों में यही उत्पादन 35 से 40 टन का है।  लाहुल-स्पीति सरीखे क्षेत्रों में सोलर प्लांट स्थापित कर बाहरी राज्यों को बिजली बेची जा सकती है।

दिहि : तकनीक के क्षेत्र में प्रदेश के बाकी संस्थानों के बीच आईआईटी मंडी किस तरह सेतु बन सकता है?

-: आईआईटी मंडी दूसरे महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों के सुधार में भूमिका निभा रहा है। दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के अध्यापक व छात्र आईआईटी मंडी आते हैं, जिसमें नवीनतम तकनीक और अन्य पहलुओं पर बातचीत की जाती है। साल में करीब छह शार्ट टर्म कोर्स भी करवाए जा रहे हैं, जिसका लाभ करीब 300 लोग ले रहे हैं। इसके अलावा सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ एक कान्कलेव भी की जाती है। सुंदरनगर में जवाहरलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज को भी आईआईटी मंडी शैक्षणिक गतिविधियों में मदद करता है।

दिहि : संस्थान और प्रदेश के लिए आप का विजन क्या है ?

-: बेहतरीन शोध कार्यों के लिए आईआईटी मंडी की दुनिया के अव्वल संस्थानों में गिनती हो, यही स्वप्न है और आने वाले दस सालों के अंदर ऐसा होगा भी। शुरुआत में ही अमरीका के टॉप शिक्षा संस्थानों के छात्र में मंडी में शोध कार्यों को समझने के लिए आ रहे हैं। लिहाजा आईआईटी मंडी अपनी पहचान बना रहा है।

हर फील्ड में आविष्कार

आकाश से तेजस विमान तक में योगदान

आईआईटी मंडी ने हर फील्ड में आविष्कार किए हैं। यह हिमाचल  का सौभाग्य है कि केंद्र सरकार की सबसे सस्ता टेबलेट आकाश देने में भी आईआईटी मंडी का योगदान रहा है। आकाश टेबलेट की कुछ एप्लीकेशन मंडी में तैयार हुई हैं। इसी तरह देश के पहले घरेलू लड़ाकू विमान तेजस के निर्माण में भी आईआईटी मंडी का योगदान रहा है। 2016 तक आईआईटी मंडी को सरकारी क्षेत्र में व निजी क्षेत्र से 50 करोड़ से अधिक की फंडिंग में 134 शोध प्रोजेक्ट मिले हैं, जिनमें देश कम्प्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक गेजट को ठंडा करने के लिए सबसे छोटी नैनो चिप भी आईआईटी मंडी ने बनाई है, जिससे अब आने वाले समय में कम्प्यूटर या लैपटॉप बिना पंखे ही चलेंगे।  वहीं पिछले वर्ष ही प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई उच्चतर अभियान योजना और इमपिं्रट में आईआईटी मंडी को 2016 में पांच बडे़ प्रोजेक्ट मिले हैं, जिन पर शोध करने के लिए आईआईटी मंडी को 10 करोड़ रुपए भी केंद्र सरकार की तरफ से स्वीकृत कि ए गए हैं। पिछले वर्ष देश भर से दर्जनों योजनाओं ने 700 से अधिक प्रोजेक्ट इन दोनों योजनाआें में सबमिट किए थे। जिसमें से  आईआईटी मंडी को ही पांच बडे़ प्रोजेक्ट मिले हैं। जिनमें कम कीमत पर एमआरआई, दूरसंचार क्षेत्र, ठोस व तरल कूड़ा-कचरा प्रबंधन व इसे ऊ र्जा में बदला, सेमी कंडक्टर और ऊर्जा क्षेत्र में शोध के प्रोजेक्ट मिले हैं। बिजली की खपत पर अंकुश लगाने वाला स्मार्ट ग्रिड लांच पैड बनाया गया है, जिससे अब लोग चाह कर भी जरू रत से ज्यादा बिजली खर्च नहीं कर सकेंगे।  एक ही टीवी या स्क्रीन पर दो वीडियो देखने-सुनने का आविष्कार भी आईआईटी मंडी ने ही किया है। इसी तरह से आईआईटी मंडी के युवा वैज्ञानिक सवा लाख रुपए से फार्मूला रेस वन कार भी तैयार कर चुके हैं। इसके अलावा कब खेत को पानी चाहिए, यह तकनीक भी आईआईटी ने तैयार कर ली है। इससे आपके खेतों को जरूरत के समय पानी मिलेगा, जबकि मशीन खुद बनाएगी स्वादिष्ट खाना, यह शोध भी आईआईटी ने कर लिया है। वहीं जहरीली गैसों को रोकने वाले नैनो सेंसर भी आईआईटी तैयार कर चुकी है।

बंदरों के आते ही बजेगा अलार्म

बंदरों के आतंक से परेशान हो चुके किसानों की मदद के लिए आईआईटी मंडी के छात्र एक बेहतरीन प्रोजेक्ट तैयार कर रहे हैं। इसमें  किसानों को बंदरों के दखल से खेतों को बचाने के लिए हर समय पहरा देने की जरुरत नहीं पड़ेगी। आईआईटी मंडी सेकंड ईयर के छात्रों ने मंकी मेन्स अलार्म नाम का प्रोजेक्ट तैयार किया है। इसमें बंदरों के खेतों में दाखिल होते ही जोर का अलार्म बजना शुरू हो जाएगा। यही नहीं, इसमें बंदरों को कैद करने व भगाने तक का इंतजाम किया गया है। खास बात यह है कि प्रोजेक्ट की कीमत भी 30 हजार रुपए से कम है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट पर आगे भी काम होता है तो यह हिमाचल के किसानों के लिर खुशखबरी होगी।

नेचर इंडेक्स सर्वे में तीसरा स्थान

नेचर इंडेक्स सर्वे में आईआईटी मंडी को 2016 में देश में तीसरे स्थान का दर्जा दिया गया है। इस सर्वे में आईआईटी मुंबई पहले  और कानपुर दूसरे स्थान पर रही हैं।

प्रदीप सीरवी देश भर में चमके

आईआईटी मंडी के होनहारों की बात करें तो यहां से पासआउट हो चुके प्रदीप सीरवी 2015 में जीएटीई (गेट) परीक्षा में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पूरे देश में पहले स्थान पर रहे हैं। इसके साथ ही    इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने वाले जम्मू-कश्मीर के युवक ने 2016 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में देशभर में दूसरा स्थान हासिल किया है।

28 लाख से 1.7 करोड़ तक का पैकेज

आईआईटी मंडी से पासआउट होने वाले इंजीनियर को परीक्षा खत्म होने से पहले ही रोजगार मिल जाता है। आईआईटी मंडी के होनहार अब तक 28 लाख रुपए से 1.7 करोड़ तक का पैकेज पा चुके हैं। पिछले वर्ष ही आईआईटी के शुभम अजमेरा को गूगल कंपनी ने 1.7 करोड़ रुपए के पैकेज पर लिया है, जबकि इससे पहले 45 छात्र भी 28 लाख तक के पैकेज पर विभिन्न नामी कंपनियों में नौकरी पा चुके हैं।

विदेशी छात्रों ने भी किया मंडी का रुख

मंडी में शोध आईआईटी मंडी के नाम एक और गौरव यह भी है। यहां विदेश से भी छात्र पढ़ने व शोध के लिए आते हैं।  चार वर्षों में 97 छात्र शोध कार्यों के लिए आईआईटी मंडी में आ चुके हैं।

आईआईटी मंडी की लाजवाब खोज

आईआईटी मंडी ने एक बहुत ही विशेष प्रोजेक्ट पर काम किया है जो किसी भी कंपनी के लिए मुफ्त में उपलब्ध है। किसी भी दृष्टिबाधित के लिए यह बहुत कारगर है। इस प्रोजेक्ट में शब्दों को सुनने के लिए 13 भाषाओं में तबदील किया जाता है। इसमें हिंदी, इंग्लिश, राजस्थानी, तमिल सहित अन्य भाषाएं शामिल हैं।

सभी विभाग कर रहे एक साथ काम

आईआईटी मंडी के सभी विभाग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। यही आईआईटी मंडी को देश के दूसरे आईआईटी से अगल करता है। खास बात यह भी है कि हाल में शुरू किए गए बायो-एक्स सेंटर में आईआईटी मंडी, रोपड़ व पीजीआई चंडीगढ़ मिलकर काम कर रहे हैं। बायो एक्स सेंटर में स्वास्थ्य, आर्थिकी से लेकर हिमालयन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों में काम किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट में आईआईटी मंडी के सभी विभाग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

औषधीय पौधों के रसायन बनाने का प्रयास

आईआईटी मंडी के बोटेनिकल गार्डन में डाक्टर श्याम मस्कपल्ली हिमालय औषधियों पर काम कर रहे हैं। बोटेनिकल गार्डन में ऐसे पौधे लगाए हैं,जो फल या तो खाए जाते हैं या फिर औषधीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं। डा. श्याम इन औषधीय पौधों में होने वाले रसायन पर काम कर रहे हैं, ताकि बिना औषधीय पौधे के उस रसायन को तैयार किया जा सके। बोटेनिकल गार्डन हिमाचल का इकलौता गार्डन है, जहां औषधीय पौधों को ही संरक्षित किया जा रहा है। डाक्टर चरणजीत परमार बोटेनिकल गार्डन में हिमाचली औषधीय पौधों और फल आधारित पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा आईएसटीपी (इंटरएक्टिव सोसिओ टेक्निकल पार्टिकम) में अमरीका के 24 छात्र आईआईटी मंडी के साथ ‘एग्रो वैल्थ’ पर ही काम कर रहे हैं। इसमे सेब स्टोरेज और बीज भंडारण पर काम किया जा रहा है।

नेचर फेंडली बम बनाने पर काम

आईआईटी मंडी को डीआरडीओ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने एक विशेष जिम्मा दिया है। आईआईटी मंडी अब ऐसा विस्फोटक बनाने की तैयारी कर रही है, जिससे दुश्मन का खात्मा तो होगा, लेकिन इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।

नदियां-नाले नहीं होंगे दूषित

आईआईटी मंडी के छात्रों ने नदियों को प्रदूषित होने से बचाने की तकनीक ईजाद कर ली है।  इतना ही नहीं, केमिकलयुक्त पानी व कचरा मानव प्रयोग में भी लाया जा सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रों ने फ ोटो कैटालिक रिएक्टर (पारदर्शी कांच रिएक्टर)  तैयार किया है। यह सूर्य की किरणों से औद्योगिक प्रदूषण मिटाने में मददगार होगा। एक साल के अनुसंधान के बाद सहायक प्रोफेसर डा. राहुल वैश के नेतृत्व में फ ोटो कैटालिक रिएक्टर तकनीक ईजाद की है।

लागत कम करने पर भी स्टडी

डा. भरत सिंह राजपुरोहित भी सोलर यूटिलाइजेशन की समस्याएं सुलझाने पर काम कर रहे हैं। आईआईटी में टेक्नोलॉजी बिजनेस इन्क्यूबेटर (स्टार्टअप) के तहत सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए होने वाले सर्वे और इंस्टालेशन पर काम किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का मकसद सोलर प्लांट के लिए होने वाले सर्वे और इंस्टालेशन को आसान बनाना है।

बादल फटने की पूर्व सूचना

हिमाचल की भोगौलिक परिस्थितियां काफी भिन्न और चुनौती भरी हैं। हिमाचल में भू-स्खलन, बादल फटना आम बात है। इस पर ही कई विभाग काम कर रहे हैं। आईआईटी मंडी के कम्प्यूटर साइंस के प्रोफेसर डाक्टर वरुण दत्त, सहायक प्रो. डा. उदय वी. काला, डा. प्रतीक चतुर्वेदी व डाक्टर वीर भूषण भू-स्खलन की पूर्व सूचना आधारित प्रोजेक्ट पर काम रहे हैं। इसमें भू-स्खलन या बादल फटने से पहले ही अलार्म बज जाएगा।  अब तक प्रोजेक्ट के 90 फीसदी परिणाम सही पाए गए हैं।

भू-स्खलन रोकने पर स्टडी

आईआईटी के शोधार्थियों द्वारा ऐसे पेड़ों की पहचान की गई है,जिनकी जड़ें ज्यादा मिट्टी पकड़ती हैं और ये पेड़ हिमाचल में भी पाए जाते हैं। इन पेड़ों को भू-स्खलन प्रभावित और संभावित इलाकों में लगाया जाएगा,  ताकि लैंड स्लाइडिंग रोकी जा सके।

आजीविका के लिए यूएचएल

आईआईटी में हिमालयी आजीविका की प्रगति के लिए केंद्र (यूएचएल) स्थापित किया गया है। इसमें सामाजाकि और आर्थिक दृष्टिकोण से संबंधित योजनाओं मसलन चीड़ पत्तियों का पर्यावरण के लिए प्रयोग, अजोला का पशु चारे में उपयोग, मेक इन इंडिया के लिए प्रारूप और नवोत्थान केंद्र स्थापित किए गए हैं।

आईआईटी मंडी चला रहा स्कूल

कमांद में माइंड फ्री प्राथमिक स्कूल चलाया जा रहा है। स्थानीय बच्चों को भी इसमें दाखिला दिया जाता है।  50 -से ज्यादा छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

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