बहिष्कार से दें चीन को जवाब

By: Jul 19th, 2017 12:05 am

डा. अश्विनी महाजन

लेखक, प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज दिल्ली से हैं

डा. अश्विनी महाजनएक समय चीन का व्यापार अधिशेष 627.5 अरब डालर तक पहुंच गया था। लेकिन वैश्विक मंदी के चलते 2015-16 तक आते-आते व्यापार अधिशेष 419.7 अरब डालर तक गिर चुका है। ऐसे में भारत से उसका व्यापार अधिशेष 52.7 अरब डालर तक पहुंचने से अब वह चीनी व्यापार अधिशेष के 12 प्रतिशत तक पहुंच गया है। ऐसे में यदि भारत चीनी माल का बहिष्कार करता है, तो भारत चीनी अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका दे सकता है…

चीन द्वारा भूटान एवं सिक्किम में भी सीमा विवाद खड़ा करने और भारत को युद्ध की धमकी देने के बाद देश की जनता में चीन के प्रति भारी आक्रोश है। इसके चलते जनता द्वारा चीनी माल के बहिष्कार का दौर एक बार फिर से जोर पकड़ने लगा है। गौरतलब है कि पिछले साल दीपावली के आसपास चीनी माल के बहिष्कार के चलते भारतीय बाजारों में चीनी सामान की मांग 30 से 50 प्रतिशत कम हो गई थी। पिछले साल व्हाट्स ऐप, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर इस बहिष्कार ने बहुत तेजी से जोर पकड़ा था। उसी तर्ज पर चीन के प्रति आक्रोश के चलते फिर से बहिष्कार की आवाजें तेज हो गई हैं। गौरतलब है कि 1987-88 में चीन से आयात मात्र 0.015 अरब डालर ही थे, जो बढ़कर 2015-16 में 61.7 अरब डालर तक पहुंच गए। प्रारंभ में आयात-निर्यात जो लगभग संतुलन में थे, लेकिन बढ़ते आयातों और उस अनुपात में निर्यातों में विशेष वृद्धि नहीं होने के कारण चीन से व्यापार घाटा 2015-16 तक बढ़कर 52.7 अरब डालर तक पहुंच गया। वर्ष 2016-17 में हालांकि चीन से आने वाले आयात 1.5 अरब डालर तक घट गए और व्यापार घाटा दो अरब डालर तक घट गया। लेकिन यदि देखा जाए तो अभी भी यह व्यापार घाटा अत्यधिक है, जिसके कारण देश पर विदेशी मुद्रा अदायगी का बोझ तो बढ़ा ही, खिलौनों, बिजली उपकरणों, मोबाइल, कम्प्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स, साजो सामान, प्रोजेक्ट गुड्स, पावर प्लांटों के भारी आयातों के कारण हमारे उद्योग धंधे तो नष्ट हुए ही, रोजगार का भी भारी हृस हुआ।

वर्ष 2015-16 में चीन से हमारे आयात, जो 61.7 अरब डालर यानी चार लाख 15 हजार करोड़ रुपए के थे, जो हमारे कुल मैन्युफेक्चरिंग उत्पादन के 24 प्रतिशत के बराबर थे। इसका मतलब यह है कि चीनी आयातों के चलते हमारे मैन्युफेक्चरिंग में 4.15 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और उसी अनुपात में यदि देखा जाए तो हमारे 24 प्रतिशत रोजगार नष्ट हो गए। यदि चीन से आयात आधे भी रह जाएं तो हमारा मैन्यूफेक्चरिंग उत्पादन 12 प्रतिशत बढ़ सकता है और उसी अनुपात में रोजगार भी। चीनी माल का बहिष्कार हो, यह बहुसंख्यक लोगों की चाहत है, लेकिन कुछ लोगों का यह मानना है कि हमें उपभोक्ता के हितों का भी ध्यान रखना होगा, जो चीन से सस्ते आयातों से लाभान्वित हो रहे हैं। कुछ लोग यह तो मानते हैं कि चीन से आयातों का बहिष्कार करने से हम अपना आक्रोश तो व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन इससे चीन को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत का चीन के कुल निर्यातों (1845 अरब डालर) में हिस्सा मात्र 3.4 प्रतिशत ही है। ऐसे में अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर वह उसकी भरपाई आसानी से कर सकता है। कुछ अन्य लोगों का यह मानना है कि भारतीय बहिष्कार का चीन को नुकसान तो होगा, लेकिन दीर्घकाल में। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत से तल्ख रिश्तों से चीन से आने वाले आयातों पर सरकार का रुख भी सख्त हो सकता है।

यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीन जो अभी तक विदेशी व्यापार से भारी अधिशेष प्राप्त कर रहा था, पिछले कुछ समय से वह घटता जा रहा है। एक समय चीन का व्यापार अधिशेष 627.5 अरब डालर तक पहुंच गया था। लेकिन वैश्विक मंदी के चलते 2015-16 तक आते-आते व्यापार अधिशेष 419.7 अरब डालर तक गिर चुका है। ऐसे में भारत से उसका व्यापार अधिशेष 52.7 अरब डालर तक पहुंचने से अब वह चीनी व्यापार अधिशेष के 12 प्रतिशत तक पहुंच गया है। ऐसे में यदि भारत चीनी माल का बहिष्कार करता है, तो भारत चीनी अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका दे सकता है। यह सोचना कि चीन के आयातों को रोकने से उपभोक्ताओं का अहित होगा, सही नहीं है। भारतीय उद्योग बंद होने से, चीन अपने सामान की कीमत बढ़ाकर उपभोक्ताओं का शोषण भी कर सकता है। उदाहरण के लिए, पिछले काफी समय से दवा उद्योग में चीन से आने वाले सस्ते कच्चे माल (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिंऐट्स यानि एपीआई) आयात के चलते भारत का एपीआई उद्योग काफी हद तक नष्ट हो गया। अब भारतीय दवा उद्योग की चीन पर निर्भरता का लाभ उठाते हुए चीन ने फॉलिक एसिड (विटामिन बी कांप्लेक्स के लिए रसायन) की कीमत 10 गुना बढ़ा दी है। इसके साथ एंटी बायोटिक दवाइयों में एमोक्सि साइक्लिन रसायन की कीमत दो गुना कर दी गई है। इस तरह से साफ तौर पर चीन अब हमारे दवा उद्योग का शोषण करने लगा है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीनी अर्थव्यवस्था इस समय भारी संकटों से गुजर रही है। बढ़ती महंगाई और उसके कारण वहां बढ़ती मजदूरी ने चीनी उद्योगों की प्रतिस्पर्धा शक्ति को काफी क्षीण कर दिया है। दुनिया भर में मंदी के कारण घटते आयातों ने उसका संकट और बढ़ा दिया है। चीन में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास अब लगभग रुक गया है और उसकी फैक्टरियां बंदी के कगार पर हैं। उधर अमरीका समेत कई देशों ने चीनी माल पर रोक लगाने की कवायद ने चीन की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। आम तौर पर बहिष्कार का समर्थन नहीं कर रहे लोगों का यह तर्क रहता है कि चूंकि हम डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत व्यापार समझौतों से बंधे हुए हैं, हम चीनी माल पर टैरिफ या गैर टैरिफ बाधाएं लगाकर उसे रोक नहीं सकते। लेकिन वे भूल जाते हैं कि चीनी सामान सस्ता ही नहीं, बल्कि घटिया किस्म का होता है। इसलिए उसे रोकने के लिए हमें मात्र मानक तय करने हैं। यदि वह सामान हमारे मानकों पर खरा नहीं उतरता है, हम उसे तुरंत रोक सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत सरकार चीन से आने वाले सामानों के मानक तय कर उन्हें घोषित करे। भारत सरकार ने अभी तक प्लास्टिक के सामान, पावर प्लांटों इत्यादि पर मानक लगाकर चीनी आयातों को आने से रोका भी है। इसके अलावा हमें ध्यान रखना होगा कि चीन भारत के बाजारों पर कब्जा करने की दरकार से लागत मूल्य से भी कम पर ‘डंप’ कर देता है। इस संबंध में डब्ल्यूटीओ नियमों में यह प्रावधान है कि ऐसे सामान जो लागत से कम मूल्य पर ‘डंप’ किए जा रहे हैं, प्रभावित पक्षों की शिकायत पर ‘एंटी डंपिंग’ ड्यूटी लगाकर रोका जा सकता है। ऐसी ‘एंटी डंपिंग ड्यूटी’ कई बार लगाई भी जा चुकी है और कई अन्य मुल्क इन प्रावधानों का उपयोग भी कर रहे हैं।

आश्चर्य का विषय है कि हमारे विशेषज्ञ चीनी माल पर प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में डब्ल्यूटीओ के नियमों का हवाला देते हैं, तो दूसरी ओर चीन ने डब्ल्यूटीओ नियमों के बावजूद कई देशों का माल अपने यहां आने से रोक दिया है। कुछ समय पहले जब मंगोलिया ने चीन की धमकी के बावजूद तिब्बती नेता दलाईलामा को अपने देश में आने दिया तो चीन ने सैकड़ों की संख्या में मंगोलिया से आने वाले कोयले के ट्रकों को चीन की सीमा में घुसने नहीं दिया। उधर दक्षिणी कोरिया द्वारा अमरीकी मिसाइल प्रणाली ‘थाड’ को स्थापित करने पर कोरिया से आने वाले सौंदर्य प्रसाधनों पर रोक लगा दी। उधर नार्वे से आने वाली सलमन मछली पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि नोबल पुरस्कार समिति ने चीन के विद्रोही नेता को नोबल पुरस्कार प्रदान कर दिया था। अंत में जब नार्वे ने एक चीन नीति को मानने की घोषणा की, तब जाकर उस प्रतिबंध को हटाया गया।

ई-मेल : ashwanimahajan@rediffmail.com

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