भोगना ही होगा नतीजा

By: Jul 27th, 2017 12:02 am

(आरएल चौहान, कोटखाई, शिमला )

थर्रा उठे होंगे सभी पशु-पक्षी,

दहल उठा होगा तांदी का वह जंगल,

झुक गई होंगी शर्म से सबकी आंखें,

घटित होते देख ऐसा घोर अमंगल।

कितनी मजबूर, असहाय रही होगी गुडि़या,

इनसान बनकर यह सोचो-विचारो,

यहां तक कहा जिसने,

‘जो करना है कर लो पर,

कृपया मुझको जान से न मारो।’

चीखती-चिल्लाती रही अबोध बच्ची,

पर तुमने न सुनी उसकी वे कराहें।

नोचते रहे तुम उसको नर-पिशाचो,

उसके जिस्म पर गाड़ वहशी निगाहें।

किया है वह जघन्य अपराध तुमने,

मानवता का मुख जिससे हो गया काला,

बाकी हर सजा तुम्हारे लिए कम होगी,

बनो तुम खूंखार कुत्तों का निवाला।

देवभूमि कहलाता है प्रदेश यह हमारा,

जिसे तुमने यूं आज शर्मसार किया।

तुम्हारे उन मां-बाप का दोष क्या,

जिन्हें तुमने जीते जी ही मार दिया।

जाने क्या-क्या अरमान बिटिया के होंगे,

देखती होंगी आंखें उसकी कैसे-कैसे सपने,

उसकी हर हसरत का गला घोंट डाला,

तुमने इस पाश्विक कृत्य से अपने।

इतना वीभत्स अपराध करते,

किंचित भी तुम्हारा दिल न पसीजा,

अपनी इस करनी का दुष्टो,

भोगना ही होगा अब तुमको नतीजा।

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