रावी, व्यास और सतलुज के बीच का क्षेत्र त्रिगर्त

By: Jul 26th, 2017 12:05 am

अवेष्ट चिनाब नदी के निचले भाग में बसते थे। महाभारत में वे कौरवों की ओर से लड़े थे। रावी, व्यास और सतलुज इन तीन नदियों के बीच का प्रदेश ‘त्रिगर्त’ कहलाता है। इसे जालंधरायण भी कहते थे। त्रिगर्त को आज कांगड़ा नाम से जाना जाता है…

आर्य और हिमाचल

यद्यपि महाभारत में खश सरीखी जातियों द्वारा हिमाचल के इस पर्वतीय भाग में जनपदों के स्थापित करने का वर्णन अवश्य मिलता है। फिर भी पांडवों से संबंधित इस प्रदेश में बहुत सी किंवदंतियां प्रचलित हैं। महाराजा पांडु ने कुंती और माद्री जो मद्र देश से थीं, सहित पांडुकेश्वर में गंधमादन क्षेत्रंतर्गत तपस्या की थी और यहीं पांचों पांडवों का जन्म और नामकरण संस्कार हुआ था। यहीं पांडु की मृत्यु तथा अपने मृत पति के साथ माद्री सती हुई थी। महाभारत में स्पष्ट रूप से लिखा है कि पांडवों ने अपने वनवास के दिन इस प्रदेश में ही बिताए। भीमसेन ने वनवास काल में अपने भाइयों एवं माता कुंती की सलाह से हिडिंबा नामक एक असुर महिला से यहां विवाह किया था। जनश्रुति के अनुसार कुल्लू घाटी का हिडिंबा मंदिर इसी महिला के नाम से है और यहीं पर उनका विवाह हुआ था। महाभारत में हिमालय की गिरि मालाओं को उपगिरि, बहगिरि तथा अंतगिरि नामक तीन भागों में बांटा गया है। अर्जुन ने अपनी दिग्विजय यात्रा में इन तीनों गिरियों पर विजय पाई थी। इन्हीं गिरि मालाओं में प्रागैतिहासिक किन्नर लोग भी अर्जुन को मिले, जिनका वर्णन महाभारतकार ने किया है। महाभारत के अनुसार उस समय हिमाचल के इस भू-भाग में अनेकों जनपद थे। अवेष्ट चिनाब नदी के निचले भाग में बसते थे। महाभारत में वे कौरवों की ओर से लड़े थे। रावी, व्यास और सतलुज इन तीन नदियों के बीच का प्रदेश ‘त्रिगर्त’ कहलाता है। इसे जालंधरायण भी कहते थे। त्रिगर्त को आज कांगड़ा नाम से जाना जाता है। महाभारत युद्ध में त्रिगर्त का संस्थापक योद्धा ‘सुशर्मा’ दुर्योधन (कौरवों) की ओर से लड़ा था। अर्जुन की उत्तर- पश्चिमी दिग्विजय के सिलसिले में महाभारतकार ने त्रिर्गत और कुलूत (कुल्लू) पहाडि़यों में बसे हुए गणों और रजवाड़ों का उल्लेख किया है। सभापर्व में ही सुकुट (सुकेत) और कुलिंदों का भी उल्लेख किया गया है। सतलुज के दक्षिण तथा तौंस (तमस) नदी तक का प्रदेश प्राचीनकाल में कुलिंद कहलाता था। इसमें हिमाचल प्रदेश के आज के महासू और सिरमौर जिला के भाग आते हैं। सभापर्व के अनुसार कालकूट भी कुलिंद प्रदेश में था, जो कहीं तौंस और यमुना नदियों के इर्द-गिर्द ही पड़ता था। महाभारत से यह भी पता चलता है कि युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भेंट लेकर आने वाले लोगों में खश, एकासन, हाई, पदर, दीर्घवेणु, पारद, कुलिंद, तंरण और परतंगण नामक पहाड़ी देशों के राजा लोग थे, परंतु जब महाभारत का युद्ध हुआ तो इनमें बहुत से कौरवों की ओर से लड़े थे। अंत में पांडव राजपाट परीक्षित को सौंप और वैराग्य लेकर पांडुकेश्वर में आकर तप करने लगे। महाभारत में इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि हिमाचल के लोग भारतीय राजनीति में शुरू ही से भाग लेते आ रहे हैं।

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