लावारिस पर्यटन को ढोता लाव-लश्कर
सुरेश कुमार
लेखक, योल, कांगड़ा से हैं
स्वच्छता में कितने ही तमगे बटोर चुका यह प्रदेश पर्यटन के कंधों पर सवार हो कर आई गंदगी का गढ़ बन रहा है। इतने श्रद्धालुओं के लिए शौच की व्यवस्था है कहां। हफ्ता भर ठहरने वाले ये श्रद्धालु कहीं तो निपटते होंगे…
मौजूदा मंजर पर नगर डालें तो बरसात के मौसम में सड़कों पर पड़ोसी राज्यों से श्रद्धा का सैलाब रेंगता नजर आएगा। साइकिलों, मोटरसाइकिलों, ट्रक और ट्रालों में भरे श्रद्धालु आस्था को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हिमाचली शक्तिपीठों की ओर रुख कर रहे हैं। और हम हैं कि इस भीड़ को ही पर्यटन समझ बैठते हैं। क्या कभी इस ओर प्रशासन ने ध्यान दिया कि पड़ोसी राज्य से आने वाले इन श्रद्धालुओं की श्रद्धा प्रदेश में कितनी गंदगी परोस जाती है। प्रदेश की कानून व्यवस्था तो दांव पर लगती ही है और छवि खराब होती है अलग से। हर साल इन्हीं दिनों में पता नहीं कितने हादसे हो जाते हैं कि हिमाचल की सड़कें इनसानी खून से रंग जाती हैं। प्रदेश में आने वाले श्रद्धालु ट्रकों में भर-भर कर आते हैं और उस पर भी ट्रकों को दो मंजिला बना लिया जाता है ताकि एक ही ट्रक में ज्यादा श्रद्धालु आ सकें और पैसे की बचत हो। श्रद्धालुओं की यह बचत हिमाचल पर भारी पड़ती है। सर्पीली सड़कों पर ऐसे ट्रक अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और तब होता है भयावह हादसा कि रूह कांप जाती है। हादसों का बढ़ता ग्राफ प्रदेश की छवि को तार-तार करता है। हिमाचल के प्रवेश द्वारों पर ही इस तरह के वाहनों की एंट्री रोक देनी चाहिए ताकि न किसी की जान का जोखिम हो और प्रदेश की छवि भी बनी रहे। नहीं चाहिए हमें ऐसा पर्यटन जिसमें लाशें बिछती हों और लोग कराहते हों। इसके साथ ही साइकिलों और मोटरसाइकिलों पर युवा पीढ़ी का हुजूम उमड़ता है, जो कई जगह उद्दंडता का उदाहरण भी देता है। कई बार स्थानीय लोगों से उनका वाद-विवाद बढ़ कर झगड़े का रूप लेता है और ऐसे श्रद्धालु स्थानीय लोगों को नुकसान पहुंचाकर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने में ये दोपहिया वाहन चालक भी कम नहीं हैं। एक ही मोटरसाइकिल पर बिना हेलमेट के तीन-तीन सवारियां बड़ी दबंगता दिखाते हुए प्रदेश में घूमती रहती हैं और हम इसे पर्यटन से जोड़ रहे हैं।
प्रदेश में ‘नो हेलमेट नो पेट्रोल’ का अभियान चले या कुछ और इनके नियम अपने होते हैं। पंजाब में तो हेलमेट पहनने का रिवाज ही नहीं है इसलिए यहां भी वे वही रिवाज चलाते हैं। हिमाचल में दोपहिया वाहनों पर हेलमेट की सख्ती का तोड़ इन पर्यटकों ने यह निकाल लिया कि सिख न होते हुए भी पगड़ी पहनकर बाइक पर घूमते रहो, कोई चालान नहीं काटेगा। तो क्या हम ये समझें कि ये पर्यटक ट्रैफिक पुलिस को ही मूर्ख बनाए जा रहे हैं। हिमाचल यातायात पुलिस को भी उस बाइक सवार का लाइसेंस चैक करना चाहिए ताकि पता चल सके कि वह सच में ही पगड़ीधारी है या चालान से बचने के लिए पगड़ी पहनी हुई है। हमारी पुलिस व्यवस्था प्रदेश की छवि को बरकरार रखने में अहम भूमिका निभा सकती है, पर पुलिस तो खुद अपने अस्तित्व के लिए हाथ-पैर मार रही है। हमारे पुलिस विभाग में लगभग 3 हजार के करीब तो रिक्तियां ही हैं। इन 3 हजार पुलिस कर्मियों का काम दूसरे जवानों को करना पड़ता है। कार्य का भार बढ़ने से पुलिस के मनोबल पर भी असर पड़ता है और फिर वह अनमने ढंग से काम करती है और फिर बढ़ते हैं इस तरह के अनुशासनहीनता के मामले। पुलिस भी कितने चालान काटेगी। ऊपर से आदेश आ जाते हैं कि सख्ती कम करो, नहीं तो पर्यटकों की आमद कम होगी। हम इसी भीड़ को पर्यटक मान लेते हैं, जो आस्तिक कम उद्दंड ज्यादा लगती है। यह तो हुआ यातायात और सड़क सुरक्षा का पक्ष। अब जरा स्वच्छता की ओर मुड़ें तो हम पाएंगे कि स्वच्छता में कितने ही तमगे बटोर चुका यह प्रदेश पर्यटन के कंधों पर सवार हो कर आई गंदगी का गढ़ बन रहा है।
इतने श्रद्धालुओं के लिए शौच की व्यवस्था है कहां। हफ्ता भर ठहरने वाले ये श्रद्धालु कहीं तो निपटते होंगे। फिलहाल हिमाचल के पास ज्यादा संसाधन भी नहीं कि इतने शौचालय बनाए जा सकें। पोलिथीन पर पाबंदी वाला प्रदेश इसी सीजन में इतना पोलिथीन अपनी झोली में भर लेता है कि बाकी का सारा साल इसे साफ करने में गुजर जाता है। बात लंगरों की करें तो पंचायतों को 5-10 हजार रुपए सिक्योरिटी के जमा करवाकर पुण्य कमाने वाले ये श्रद्धालु सड़क किनारे वाहनों को रोक कर लंगर तो छका देते हैं, पर लंगर के बाद का मंजर उतना ही गंदा होता है। सरकार को अपनी सोच बदलनी होगी और इस भीड़ को सभ्यता सिखानी होगी। हम बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की श्रद्धा का सम्मान करते हैं, पर प्रदेश की छवि को ताक पर रख कर नहीं। सरकार को शक्तिपीठों से पहले सरायों का निर्माण करना चाहिए, ताकि श्रद्धालु वहां पर विश्राम कर सकें और फिर आगे बढ़ें। पर्याप्त शौचालयों का निर्माण हो, ताकि खुले में शौच पर रोक लगे। लंगर लगाने के लिए पैरामीटर बनाए जाएं और लंगर लगाने वाली संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंपी जाए ताकि बाद में प्रदेश गंदगी साफ करने में ही न लगा रहे। यानी कुछ इंतजाम करके पर्यटन की इस भीड़ को सही दिशा दी जा सकती है। इससे पर्यटन भी संवरेगा और प्रदेश की छवि भी खराब नहीं होगी। अगर हमें पर्यटन का दोहन करना है, तो पहले हमें खुद को इस लायक बनाना होगा कि हम उसे संभाल सकें। हम सिर्फ पर्यटकों के आंकड़े गिनने तक ही सीमित न रहें, बल्कि हम उन्हें संभाल सकते हैं या नहीं यह सोचने का विषय है।
ई-मेल : sureshakrosh@gmail.com
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