वहशत से दहशत में देवभूमि

By: Jul 13th, 2017 12:02 am

वंदना राणा

लेखिका, शिमला से हैं

हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि जो घटनाएं बाहरी सूबों में घटती थीं, हिमाचल भी कभी उसका साक्षी बनेगा। जहां चींटी को मारने पर भी पश्चाताप किया जाता था, वहां कुछ वहशी दरिंदों ने एक मासूम को बेरहमी से नोच डाला, तो यह कौन सा हिमाचल तैयार हो रहा है…

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में आजकल कुछ ऐसी हिंसक और शर्मनाक घटनाएं हो रही हैं, जिनको देख, सुनकर रौंगटे खड़े हो रहे हैं। पिछले कुछ समय से देवभूमि हिमाचल असुरक्षा के दायरे में आती जा रही है। अभी थोड़ा ही समय गुजरा है जब हमीरपुर के मासूम युग का अपहरण करके उसे दर्दनाक यातनाएं देकर मारा गया। उस दिल दहला देने वाले हादसे के जख्म भरे भी नहीं थे कि एक और अमानवीय घटना में मंडी जिला के होशियार सिंह को मार दिया। उसका शव जंगल में उल्टा लटका मिला। वह गुत्थी अभी सुलझी भी न थी कि एक छोटी सी बच्ची कोटखाई शिमला के इनसानी भेडि़यों का शिकार हो गई। इतनी दरिंदगी तो खूंखार जानवरों में भी न देखी थी और न सुनी थी। उस छोटी बच्ची के साथ दुराचार कर उसकी हत्या कर दी गई। ऐसी न जाने कितनी ही दिल दहलाने वाली शर्मनाक घटनाएं हमारे हिमाचल प्रदेश में हो रही हैं, जिसे देवभूमि और वीरभूमि के नाम से भी अलंकारा गया है। इस पावन और शांत प्रदेश में ऐसी वारदातोें, घटनाओं का होना बहुत चिंतनीय और सोचनीय है।

हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि जो घटनाएं बाहर के सूबों में घटती थीं, हिमाचल भी कभी उसका साक्षी बनेगा। यहां के लोग तो बहुत भोले और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखने वाले हैं। यहां पर पेड़-पौधे, नदियां, झरने और पहाड़ तक पूजे जाते हैं। सूबे के चप्पे-चप्पे की जमीन को देवी-देवताओं का वास माना जाता था। जिधर जाएं, श्रद्धा उमड़-घुमड़ पड़ती है। जहां चींटी को मारने पर भी पश्चाताप किया जाता था, वहां कुछ वहशी दरिंदों ने एक मासूम को बेरहमी से नोच डाला, तो यह कौन सा हिमाचल तैयार हो रहा है? बेहद अफसोस की बात है, जहां ईमानदारी और सच्चाई दिलों में कूट-कूट कर भरी होती थी, वहीं पर होशियार सिंह जैसे कर्मी की हत्या हो रही है। बहुत ही दुख की बात है कि जहां बच्चों में ईश्वर की साक्षात मूर्त नजर आती थी, वहीं पर युग को मारा जाता है। तड़पा-तड़पा कर इन सबकी चीखें जंगलों में सुनसान जगहों में ही दबकर रह जाती हैं। कितना निर्दयी हो गया है समाज, जहां लोगों की आत्माएं मर चुकी हैं। ऐसा लगता है जिंदा लाशें घूम रही हैं, इनसानियत का खून पीने का ख्वाब लिए। हम न्याय के लिए दर-ब-दर  भटकते हैं और दोषी आराम से इज्जत से समाज में घूमते हैं। उनके लिए कोई सजा नहीं, कोई कानून नहीं। हमारा न्याय तंत्र इतना बेअसर, बहरा और अंधा क्यों है? कई दफा तो न्याय को पाने के लिए इनसान का धन, समय और जिंदगी तीनों ही खत्म हो जाते हैं, न्याय अगर मिलता है तो सब कुछ जाने के बाद।

अकसर घटनाएं, वारदातें होती हैं, मीडिया में खबरें छपती हैं, उड़ती हैं, तब जाकर लोगों को पता चलता है कि हमारे समाज में क्या हो रहा है। कोटखाई में छात्रा के साथ दुष्कर्म करके उसे मार दिया गया। सुनसान जंगल के रास्ते में उसकी चीखें गूंजती रही और कोई उन्हें सुनने वाला नहीं था। क्या बीती होगी उस पर और अब उसके घरवालों पर जिनकी बच्ची के साथ यहा हादसा हुआ। हैरानी यह कि अभी तक हत्यारों को पकड़ा नहीं गया, आखिर क्यों? क्या अब और ऐसे हादसे का इंतजार है? क्यों हमारा प्रशासन, पुलिस, सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर गंभीर नहीं होती। आखिर कब तक हम यूं ही असुरक्षा के जाल में फंसे रहेंगे? क्यों हमें इन हादसों की पीड़ा महसूस नहीं होती? क्यों दूसरों के आंसू, क्रंदन हमें विचलित नहीं करते? क्यों हम इतने संवेदनाहीन हो गए हैं? ऐसे लगता है हम इनसान नहीं, हैवान हो गए हैं। इनसानियत का पाठ तभी तो हमें याद नहीं रहता। आज हम जिस माहौल में जी रहे हैं, उसमें खौफ है, डर और आतंक है, दहशत है, जो हर रोज किसी न किसी को निगल रही है। गुडि़या जो उस बच्ची को काल्पनिक नाम दिया गया है, आज उसके लिए सड़कों में कैंडल जुलूस निकाल कर श्रद्धांजलि दी जा रही है। असली श्रद्धांजलि तब होगी, जब उसे सही मायनों में इनसाफ मिलेगा। उसके हत्यारों को फांसी की सजा होगी। तब कानून से लोग डरेंगे और ऐसी घटनाएं खुद को दोबारा दोहरा नहीं पाएंगी। इसके लिए समाज को खुद भी जागना होगा। जब तक खुद की छत न टपके, तब तक अपराध से लड़ने का इंतजार करने की आदत अब छोड़नी होगी। अगर समाज में ऐसी कोई भी वारदात किसी के साथ हो रही है, तो फिर हम खुद की सुरक्षा के प्रति निश्चिंत कैसे हो सकते हैं?

शिमला दुष्कर्म प्रकरण के हत्यारों को एक बार फांसी हो गई, तो गुनहगार गुनाह करने से डरेंगे। जंगलों, सुनसान सड़कों, रास्तों में सुरक्षा के भी इंतजाम होने चाहिएं, ताकि आगे से ऐसी वारदातें न हों सकें। घरों में लड़कों को नैतिक शिक्षा व संस्कार देने होंगे, ताकि वे नारी का सम्मान करना सीखें। हर बार सुरक्षा की उम्मीद दूसरों से क्यों लगाई जाए? अपनी सुरक्षित को लेकर खुद बेटियों और समाज को भी जागरूक होना होगा। सरकार व प्रशासन को भी जनता के लिए ऐसे उचित कदम उठाने होंगे, जिनसे पीडि़तों को न्याय मिले और दोषियों को सख्त सजा। तभी उस बच्ची के साथ सच्चा इनसाफ होगा।

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