वेंकैया बनाम गोपाल गांधी

By: Jul 19th, 2017 12:02 am

केंद्रीय सूचना एवं शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू अब देश के नए उपराष्ट्रपति होंगे। दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद भी आरएसएस के ठेठ कार्यकर्ता को…। यह फैसला अप्रत्यशित नहीं है। हम राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में इसकी चर्चा कर चुके हैं कि पहली बार राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आरएसएस के होंगे। हमने स्पष्ट और निर्णायक तौर पर वेंकैया को उपराष्ट्रपति मान लिया है। हालांकि मतदान की तारीख पांच अगस्त तय की गई है। दरअसल लोकसभा में फिलहाल 543 और राज्यसभा में 243 सांसद हैं। यह 786 का आंकड़ा ही निर्वाचक मंडल है। इनमें से 425 सांसदों का प्रत्यक्ष समर्थन सत्तारूढ़ एनडीए के पक्ष में है। इनके अलावा अन्नाद्रमुक के 50, बीजद के 27, तेलंगाना राष्ट्रसमिति के 14 और वाईएसआर कांगे्रस के आठ सांसदों ने भी वेंकैया को समर्थन देना तय किया है, क्योंकि पहली बार उपराष्ट्रपति आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का होने वाला है। संघ-भाजपा ने उस दक्षिण भारत से अपना उम्मीदवार चुना है, जहां पार्टी का जनाधार बेहद कम है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार जरूर रही है और भविष्य की संभावनाएं भी जिंदा हैं। अलबत्ता आंध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु आदि दक्षिणी राज्यों में भाजपा राजनीतिक ताकत नहीं है। इस तरह उपराष्ट्रपति चुनाव का आंकड़ा एनडीए के पक्ष में 524 बनता है। यह बहुमत से बहुत आगे की स्थिति है। कांग्रेस और यूपीए के समर्थन में 261 सांसद ही हैं। इस बार जद-यू विपक्षी खेमे में है। बेशक विपक्ष की पराजय आईने की तरह साफ है, फिर भी चुनाव लड़ा जा रहा है, ताकि विपक्षी एकता की ताकत को, 2019 के संदर्भ में परखा और लामबंद किया जा सके। लिहाजा उपराष्ट्रपति चुनाव वेंकैया बनाम गोपाल कृष्ण गांधी के समीकरण के आधार पर होगा। गोपाल पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, राजदूत रहे हैं, प्रधानमंत्री दफ्तर में काम किया है और बंगाल के राज्यपाल भी रहे हैं। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र हैं, यह दीगर है कि गांधीवादी मूल्यों से उनका कोई सरोकार नहीं है। गोपाल देश के बौद्धिक और संभ्रांत नागरिक हैं, लेकिन इस कड़ाई में चुनावी और राजनीतिक आंकड़ा उनके पक्ष में नहीं है, लिहाजा यह चुनाव भी सांकेतिक है। एनडीए उम्मीदवार वेंकैया नायडू को 25 सालों का संसदीय अनुभव, वह मोदी सरकार में ही संसदीय कार्यमंत्री रहे। चार बार राज्यसभा सांसद रहे। चूंकि उच्च सदन में भाजपा-एनडीए का बहुमत फिलहाल नहीं है। लिहाजा 20 से ज्यादा बिल राज्यसभा में लंबित हैं। उपराष्ट्रपति पदेन राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। लिहाजा अपना सभापति होने का परोक्ष लाभ सत्तारूढ़ पक्ष को जरूर होगा। चूंकि वेंकैया लंबे समय तक राज्यसभा में रहे हैं। लिहाजा उसकी कार्यवाही की बारीकियां और पेचीदगियां भी बखूबी जानते हैं। वेंकैया आंध्र में कम्मा समुदाय से आते हैं। जातीय आधार पर भाजपा को आंध्र और तेलंगाना में कितना राजनीतिक फायदा होगा, यह बाद का आकलन होना चाहिए, लेकिन भाजपा कम्मा-समर्थक होने का दावा कर सकेगी। हालांकि उपराष्ट्रपति पद के लिए पीएम मोदी की इच्छा किसी आदिवासी चेहरे को आगे करने की थी। उन्होंने नजमा हेपतुल्ला के साथ बातचीत के दौरान यह स्वीकार भी किया था कि अब दलितों में पैठ बनाने के बाद आदिवासियों पर फोकस किया जाना चाहिए। ओडिशा में चुनाव के मद्देनजर भाजपा के लिए ऐसा वोट बैंक अनिवार्य है, लेकिन निर्णय कम्मा जाति के नेता पर हुआ, जिस पर चंद्रबाबू नायडू और जगमोहन रेड्डी सरीखे नेताओं का पहले से ही वर्चस्व है। बहरहाल वेंकैया एक बेहतर पसंद हैं, लेकिन मोदी सरकार में वह जिन मंत्रालयों को देख रहे थे और स्मार्ट सिटी सरीखे लक्ष्य सामने थे, उनमें एक ठहराव जरूर आएगा, क्योंकि नए मंत्री को मुद्दे समझाने में समय तो लगेगा और फिर सभी वेंकैया की तरह कुशाग्र बुद्धि नहीं होते।

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