सवालिया बनती प्रदेश पुलिस की साख

By: Jul 19th, 2017 12:02 am

किशन बुशैहरी

लेखक, नेरचौक, मंडी से हैं

निश्चित रूप से प्रदेशवासियों की सुरक्षा एवं उनके संवैधानिक-सामाजिक अधिकारों के संरक्षण एवं सुरक्षा का दायित्व प्रदेश पुलिस प्रशासन का है। प्रदेश के वर्तमान घटनाक्रमों से यह प्रतीत होता है कि पुलिस प्रशासन राजनीतिक दबाव और सामाजिक प्रतिबद्धता के अभाव में अपने उत्तरदायित्वों से विमुख होता जा रहा है…

क्या यह सत्य नहीं है कि वर्तमान दौर में हम एक ऐसे समाज का हिस्सा बन चुके हैं, जिसमें नैतिकता, संवेदनशीलता एवं सामाजिक सौहार्द जैसे अति महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्यों का पतन हो चुका है। प्रदेश के वर्तमान घटनाक्रम जिसमें हत्या, अपहरण, बलात्कार, भ्रष्टाचार जैसे अनैतिक व असामाजिक कृत्यों के कारण प्रदेश की देवभूमि, दानव भूमि में परिवर्तित हो चुकी है। मूलतः हमारा संविधान देश व प्रदेश के प्रत्येक नागरिक के मानवीय एवं लोकतांत्रिक अधिकारों के संरक्षण की अनिवार्यता को अधिमान देता है, परंतु वर्तमान परिस्थितियों का अवलोकन करें तो प्रदेशवासियों के समक्ष जो परिदृश्य उभर रहे हैं, उसमें प्रदेशवासियों में भय व असुरक्षा का वातावरण व्याप्त है। पुलिसिया वर्दी के भय का वातावरण इस प्रकार से निर्मित किया गया है कि हम पुलिस की विपरीत कार्यशैली की आलोचना भी नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक ठसक भ्रष्टाचार व कानूनी औपचारिकताओं की उलझन आम आदमी को न्याय से कोसों दूर रखती है। न्याय एवं निष्पक्षता एक ऐसी धुरी है, जिसकी अभिलाषा में हमारा समस्त समाज घूम रहा है। न्याय किसी की अधीनता स्वीकार नहीं कर सकता। यह तो स्वतंत्र है। अमावस्या की अंधेरी रात में भी अपनी चमक बिखेरता है, परंतु हमारी भ्रष्टाचार में लिप्त छिद्रमयी व्यवस्था न्याय-अन्याय के इस अंतर को समझने में असमर्थ है, जिसके परिणामस्वरूप प्रदेशवासियों में हताशा, क्षोभ, आक्रोश की भावना व्याप्त है। न्याय प्राप्ति के लिए आम नागरिक अपने आपको असहाय व मजबूर पा रहा है, जिससे उसकी मानसिक वेदना को समझा जा सकता है। वर्तमान में प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली, विश्वसनीयता एवं निष्पक्षता को प्रदेश की जनता संदेह की दृष्टि से देख रही है। कैसी विडंबना है कि कितनी अवैज्ञानिक अवधारणा के बल पर पुलिस विशेषज्ञ अन्वेषण कर रहे हैं कि वनरक्षक होशियार सिंह ने जहर खाकर आत्महत्या की है?

इस रवैये ने समस्त घटनाक्रम को संदेहास्पद स्थिति में पहुंचा दिया है, जिससे यह प्रतीत होता है कि पुलिस प्रशासन बिना किसी तथ्य के सार्थक अन्वेषण ही नहीं करना चाहता। ज्ञातव्य है कि पुलिस प्रशासन अपने अन्वेषण को विभिन्न दृष्टिकोण पर केंद्रित कर अपराधियों तक या किसी परिणाम तक पहुंचना चाहता हो, उसके लिए एसआईटी जैसे विशेष अन्वेषण दल का गठन करना पुलिस प्रशासन की प्राथमिकता रहती है। स्मरणीय है कि हिमाचल प्रदेश में बहुत से जघन्य हत्याकांड हुए, जिसमें मंडी जिला का चर्चित टेकचंद हत्याकांड, बल्ह में दो साल पहले हरिशरण हत्याकांड, रिवालसर का बंटी हत्याकांड व चौंतड़ा के नौजवान पैराग्लाइडर नरेश हत्याकांड, हमीरपुर जिला का चर्चित आदित्य प्रकरण, शिमला के मासूम युग की निर्मम हत्या, मंडी जिला के कुम्मी पंचायत के घट्टा गांव के गरीब नौजवान युवक ओम प्रकाश की सात साल पहले रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई मौत आज तक रहस्य की तरह पुलिस प्रशासन की अकर्मण्यता के कारण बहुत गहराई तक दफन हो चुकी है। इस कारण पीडि़त परिजनों की अंतहीन वेदना को शायद ही कोई अनुभव कर सके। सराज व कोटखाई की जनता, विभिन्न सामाजिक संगठनों व विपक्षी राजनीतिक दलों का पुलिस प्रशासन द्वारा गठित विशेष अन्वेषण दल का विरोध करना व उस पर अविश्वास प्रकट करना इस प्रकार के जघन्य अपराधों में पुलिस प्रशासन की कार्यशैली व कार्यप्रणाली पर स्वतः ही प्रश्न खड़े करता है। अपनी तथाकथित नैतिकता व अनुशासन पर गर्व करने वाले प्रदेश के शीर्ष राजनीतिक दल एवं राजनीतिज्ञ इस प्रकार के कृत्यों में मुख्य संरक्षक की भूमिका में नजर आते हैं।

चूंकि प्रदेश व देश में राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण के बिना प्रदेश में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार व अंसवैधानिक कार्य संभव नहीं है, राजनेता अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए प्रायः भ्रष्टाचार में लिप्त व अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों को संरक्षण देते रहे हैं। भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक संरक्षण के कितने दूरगामी व भयावह परिणाम हो सकते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वनरक्षक होशियार सिंह जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ व ईमानदार नौजवान की निर्मम मौत है व कोटखाई की मासूम बिटिया के साथ की गई दरिंदगी हमारे समक्ष प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इनकी निष्पक्ष जांच को लेकर पुलिस प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यशैली से असहमत होकर प्रदेशवासियों को सड़कों पर निकल कर विरोध के लिए विवश होना भी अब हमें आश्चर्यचकित नहीं करता है। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि प्रदेशवासी कर्त्तव्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता के अभाव में प्रदेश पुलिस को ही अपराधी की श्रेणी में खड़ा कर रहे हैं, जो कि पुलिस जैसे सशक्त संगठन के लिए शुभ संकेत नहीं है। निश्चित रूप से प्रदेशवासियों की सुरक्षा एवं उनके संवैधानिक-सामाजिक अधिकारों के संरक्षण एवं सुरक्षा का दायित्व प्रदेश पुलिस प्रशासन का है, परंतु प्रदेश के वर्तमान घटनाक्रमों से यह प्रतीत होता है कि पुलिस प्रशासन राजनीतिक दबाव में सामाजिक प्रतिबद्धता व सामाजिक सरोकार के अभाव व संवेदनहीनता के कारण प्रदेश पुलिस प्रशासन अपने इस उत्तरदायित्व से विमुख होता जा रहा है। प्रदेश पुलिस के इस रवैये से भविष्य में आम जनमानस के बीच असुरक्षा एवं पुलिस के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण के रूप में प्रकट हो सकता है व काफी हद तक हो भी रहा है।

ई-मेल : kishanbushahari@gmail.com

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