सियासी समीकरणों के बीच उलझा चिंतन

By: Jul 27th, 2017 12:05 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

पीके खुरानाएस. राधाकृष्णन, डा. जाकिर हुसैन से लेकर भैरों सिंह शेखावत और वर्तमान उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी तक सभी उपराष्ट्रपतियों की योग्यता और योगदान का लंबा इतिहास रहा है। इनमें से बहुत से महानुभाव बाद में राष्ट्रपति बने, परंतु जहां सब निर्णय राजनीतिक समीकरणों को लेकर होने हों, वहां सारा चिंतन अर्थहीन हो जाता है। इसीलिए लगता है कि अब हमें खुले दिल से सोचना चाहिए कि क्या हम अपने संविधान के वर्तमान स्वरूप को जारी रहने दें या इसमें किसी परिवर्तन की कोशिश करें…

दो दिन पहले बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिला दी गई। भारतीय गणतंत्र के चौदहवें राष्ट्रपति ने विधिवत अपना कामकाज संभाल लिया है और अब अगले माह उपराष्ट्रपति पद पर भी राजग उम्मीदवार एम. वेंकैया नायडू के चुन लिए जाने में कोई अवरोध नजर नहीं आता। नायडू भाजपा में लंबे समय से अहम पदों पर रहे हैं। देश भर में उनकी पहचान वर्तमान राष्ट्रपति से भी कहीं ज्यादा रही है। वह न केवल लंबे समय से केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं, बल्कि भाजपा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह दक्षिण भारत से होने के बावजूद अच्छी हिंदी बोल लेते हैं और उनकी योग्यता पर कोई सवाल करना बेमानी है। महामहिम कोविंद को जब राष्ट्रपति पद के लिए राजग उम्मीदवार के लिए नामजद किया गया था, तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उनकी सबसे बड़ी योग्यता बताई थी कि वह दलित वर्ग से हैं। पूरा विपक्ष मोदी और शाह की इस गुगली में आ गया और उनके मुकाबले में मीरा कुमार को लाते वक्त भी विपक्ष का नजरिया यही था कि वह किसी जाने-पहचाने दलित नेता को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए।

केंद्र और अधिकांश राज्यों में बहुमत के कारण इस चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को बढ़त हासिल थी और कोविंद का राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाना महज औपचारिकता थी। सोमवार को राष्ट्रपति पद के चुनाव का परिणाम आने के कुछ घंटों के भीतर ही राजग ने उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में अपने वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू के नाम की घोषणा कर दी। हालांकि इससे पूर्व नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके थे कि वह अपने मंत्रिमंडल में से किसी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाएंगे। यही नहीं, खुद वेंकैया नायडू ने भी एक बयान में कहा था कि वह न राष्ट्रपति होना चाहते हैं और न उपराष्ट्रपति, वह उषा (उनकी धर्मपत्नी) के पति ही ठीक हैं। लेकिन आखिरकार उन्हें इस पद के लिए उम्मीदवार बनाने की घोषणा हो ही गई। विपक्ष ने उपराष्ट्रपति पद के लिए महात्मा गांधी के पौत्र गोपालकृष्ण गांधी को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाया है, लेकिन हम सब जानते हैं कि यह भी एक प्रतीकात्मक लड़ाई है। विपक्ष जानता ही नहीं, बल्कि मानता भी है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए होने वाला मतदान भी एक औपचारिकता मात्र है और देश के अगले उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ही होंगे। पांच अगस्त को उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान होगा और दस अगस्त को वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यकाल समाप्त होने पर नायडू उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगे और अपना कार्यभार संभाल लेंगे।

रामनाथ कोविंद भाजपा में वैंकेया नायडू से कहीं जूनियर हैं और अब उन्हें कोविंद से जूनियर पद पर जाना पड़ रहा है। इसमें कभी-कभार अहं के टकराव की गुंजाइश हो सकती है। हालांकि नायडू बहुत संयमित नेता हैं और वह जानते हैं कि भाजपा में इस समय नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है और उनकी नाराजगी मोल लेने में समझदारी नहीं है। वह 68 वर्ष के हैं। पांच साल उपराष्ट्रपति पद पर रहने के बाद वह राष्ट्रपति भी बन सकते हैं, जिसका अर्थ यह है कि सक्रिय राजनीति से हटने पर भी उनके लिए यह ज्यादा घाटे का सौदा नहीं है। नायडू को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना कर मोदी ने एक बार फिर अपनी रणनीतिक चतुराई का परिचय दिया है और एक तीर से कई शिकार किए हैं। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष भी हैं। राज्यसभा में भाजपा अभी अल्पमत में है और वहां पी. चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल जैसे भारी भरकम नेताओं की भरमार है। राज्यसभा के संचालन के लिए किसी अनुभवी नेता का होना भाजपा के लिए फायदे का सौदा है। राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उपराष्ट्रपति कहीं अधिक सक्रिय भूमिका अदा करता है, जबकि राष्ट्रपति की भूमिका औपचारिक ज्यादा है, व्यावहारिक कम। नायडू दक्षिण से हैं, जहां भाजपा पैर पसारना चाहती है। उनका चयन दक्षिण भारत में भाजपा के पक्ष में अच्छा संदेश देगा, लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि नायडू के रहते दक्षिण में भाजपा का कोई और नेता उभर नहीं पा रहा था। उनका स्थान खाली होने से कई नए लोगों को आगे आने का अवसर मिलेगा।

राष्ट्रपति चुनाव के समय इसे भाजपा और विपक्ष ने ही नहीं, बल्कि मीडिया ने भी इस चुनाव को दलित बनाम दलित का मुद्दा बनाकर शेष सभी मुद्दों को गौण कर दिया था। विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मीरा कुमार ने इस रुख पर खेद जताते हुए कहा भी था कि मीडिया सिर्फ इस बात की चर्चा कर रहा है कि राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार दलित वर्ग से हैं, लेकिन कोई भी दोनों उम्मीदवारों की योग्यता, उपलब्धियों आदि की चर्चा नहीं कर रहा है। यह संतोष का विषय है कि इस बार इसे दक्षिण बनाम शेष भारत या किसान का बेटा बनाम शहरी बाबू आदि का मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है। हालांकि भाजपा ने वेंकैया नायडू को चुनते समय मुख्यतः राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखा। उसके लिए वैंकेया नायडू का अनुभव और योग्यता एक अतिरिक्त खूबी मात्र थी, उनके चुने जाने का पहला कारण नहीं थी। सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा. जाकिर हुसैन, वीवी गिरि, गोपाल स्वरूप पाठक, बीडी जत्ती, आर. वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा, केआर नारायणन, कृष्ण कांत, भैरों सिंह शेखावत और वर्तमान उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी आदि सभी उपराष्ट्रपतियों की योग्यता और योगदान का लंबा इतिहास रहा है। इनमें से बहुत से महानुभाव बाद में राष्ट्रपति बने, परंतु जहां सब निर्णय राजनीतिक समीकरणों को लेकर होने हों, वहां सारा चिंतन अर्थहीन हो जाता है। शायद इसीलिए लगता है कि अब हमें खुले दिल से सोचना चाहिए कि क्या हम अपने संविधान के वर्तमान स्वरूप को जारी रहने दें या इसमें किसी परिवर्तन की कोशिश करें।

क्या इसमें आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए या फिर इसमें कुछ व्यावहारिक संशोधन करके इसे वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी बनाना चाहिए। मुंबई के उद्यमी, पेशे से आर्किटेक्ट और इंजीनियर, जशवंत बी. मेहता और उनके साथी ओपी मोंगा पिछले कई दशकों से देश में राष्ट्रपति प्रणाली लाए जाने की वकालत करते रहे हैं। जशवंत मेहता ने राष्ट्रपति प्रणाली और संसदीय प्रणाली के तुलनात्मक विवेचन के लिए आधा दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, सैकड़ों सेमिनार किए हैं और उन्होंने ‘फोरम फॉर प्रेजिडेंशियल डेमोक्रेसी’ नामक राजनीतिक दल का गठन भी किया है। दीपक मित्तल की अध्यक्षता वाली ‘जागो पार्टी’, पूर्व आईएएस अधिकारी तथा हरियाणा सरकार में पूर्व मंत्री डा. केआर पुनिया की अध्यक्षता वाली ‘राष्ट्रीय जनहित पार्टी’ तथा रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल बलबीर सिंह परमार की अध्यक्षता वाली ‘सैनिक समाज पार्टी’ भी राष्ट्रपति शासन प्रणाली की हिमायत करती है। ये सभी दल अभी बहुत छोटे हैं, इसलिए जनता और मीडिया इनकी बात को गंभीरता से नहीं ले रहे। ऐसे में ‘दिव्य हिमाचल’ के चेयरमैन भानु धमीजा देश में राष्ट्रपति प्रणाली लाने के लिए एक अभियान चलाए हुए हैं। आशय यही है कि इस विषय पर बहस चले, ताकि देश को आज की आवश्यकताओं के अनुरूप एक नया संविधान देने की दिशा में प्रगति कर सकें। देश की भलाई इसी में है कि हम समस्याओं से मुंह न मोडें़, उनकी अनदेखी न करें, बल्कि उपयुक्त समाधान ढूंढें, ताकि समस्याओं का समाधान हो सके। आशा है कि इन सब महानुभावों के संयुक्त प्रयासों का फल शीघ्र मिलेगा। आमीन!

ई-मेल : features@indiatotal.com

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