हफ्ते का खास दिन

By: Jul 30th, 2017 12:02 am

मैथिलीशरण गुप्त

जन्मदिवस 3 अगस्त

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त, 1886 चिरगांव, झांसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। पिता रामचरण एक निष्ठावान प्रसिद्ध राम भक्त थे। इनके पिता कनकलता उप नाम से कविता किया करते थे और राम के विष्णुत्व में अटल आस्था रखते थे। गुप्त जी को कवित्व प्रतिभा और राम भक्ति पैतृक देन में मिली थी। वह बाल्यकाल में ही काव्य रचना करने लगे। पिता ने इनके एक छंद को पढ़कर आशीर्वाद दिया कि तू आगे चलकर हमसे हजार गुनी अच्छी कविता करेगा और यह आशीर्वाद अक्षरशः सत्य हुआ। मुंशी अजमेरी के साहचर्य ने उनके काव्य संस्कारों को विकसित किया। उनके व्यक्तित्व में प्राचीन संस्कारों तथा आधुनिक विचारधारा दोनों का समन्वय था। मैथिलीशरण गुप्त जी को साहित्य जगत में दद्दा नाम से संबोधित किया जाता था। मैथिलीशरण गुप्त को पढ़ने की अपेक्षा चकई फिराना और पतंग उड़ाना अधिक पसंद था। फिर भी इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। इन्हें ‘आल्हा’ पढ़ने में भी बहुत आनंद आता था।

इसी बीच गुप्तजी मुंशी अजमेरी के संपर्क में आए और उनके प्रभाव से इनकी काव्य प्रतिभा को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। अतः अब यह दोहे, छप्पयों में काव्य रचना करने लगे, जो कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में प्रकाशित होने वाले वैश्योपकारक पत्र में प्रकाशित हुई। वह द्विवेदी जी को अपना काव्य गुरु मानते थे और उन्हीं के बताए मार्ग पर चलते रहे तथा जीवन के अंत तक साहित्य साधना में रत रहे। उन्होंने राष्ट्रीय आंदलनों में भी भाग लिया और जेल यात्रा भी की। मैथिलीशरण गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से पारिपोषित था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदनमोहन मालवीय उनके आदर्श रहे। महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व ही गुप्त का युवा मन गर्म दल और तत्कालीन क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था। ‘अनघ’ से पूर्व की रचनाओं में, विशेषकर जयद्रथ वध और भारत भारती में कवि का क्रांतिकारी स्वर सुनाई पड़ता है। बाद में महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू और विनोबा भावे के संपर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आंदोलनों के समर्थक बने। 1936 में गांधी ने ही उन्हें मैथिली काव्यदृमान ग्रंथ भेंट करते हुए राष्ट्रकवि का संबोधन दिया।

महावीर प्रसाद द्विवेदी के संसर्ग से गुप्तजी की काव्यदृकला में निखार आया और उनकी रचनाएं सरस्वती में निरंतर प्रकाशित होती रहीं। 1909 में उनका पहला काव्य जयद्रथ वध आया। काव्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी। राष्ट्रप्रेम की इस अजस्त्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र के चिरगांव से कविता के माध्यम से हो रहा था। बाद में इस राष्ट्रप्रेम की इस धारा को देश भर में प्रवाहित किया थाःजो भरा नहीं है भावों से,  जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है,  जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

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