हिमाचली पुरुषार्थ : पर्यावरण को पेड़ों की पोशाक पहनाते नयन सिंह

By: Jul 19th, 2017 12:07 am

पर्यावरण बचाओ पेड़ उगाओ के नाम पर सरकार प्रति वर्ष करोड़ों रुपए आम जनता को जागरूक करने के लिए खर्च कर रही है, परंतु कनोग निवासी नयन सिंह ने ग्लोबल वार्मिंग की गंभीरता को देखते हुए तथा पेड़-पौधों से लगाव के चलते 60 के दशक से ही देवदार के पेड़ लगाने शुरू कर दिए थे। नयन सिंह द्वारा उगाए देवदार के हजारों पेड़ आज बड़े जंगल का रूप ले चुके हैं…

CEREERलक्ष्य कोई भी हो सकता है, माध्यम कोई भी हो सकता है, पर लगन पक्की होनी चाहिए। नयन सिंह ने भी लक्ष्य चुना पेड़ लगाने का और माध्यम बने देवदार के पेड़ और लगन के तो नयन सिंह पक्के ही हैं। जिस पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार अभियान चलाती है, उसपर काफी पैसा खर्च करती है, पर सिरे नहीं चढ़ता।  उसी अभियान को 90 वर्षीय नयन सिंह अपने बलबूते चलाए हुए हैं और अब तक हजारों पेड़ लगा चुके हैं। पर्यावरण बचाओ पेड़ उगाओ के नाम पर सरकार प्रति वर्ष करोड़ों रुपए आम जनता को जागरूक करने के लिए खर्च कर रही है, परंतु कनोग निवासी नयन सिंह ने ग्लोबल वार्मिंग की गंभीरता को देखते हुए तथा पेड़-पौधों से लगाव के चलते 60 के दशक से ही देवदार के पेड़ लगाने शुरू कर दिए थे। नयन सिंह द्वारा उगाए देवदार के हजारों पेड़ आज बड़े जंगल का रूप ले चुके हैं। ऐसा नहीं है कि अपनी मिलकियत भूमि पर ही उन्होंने ये पेड़ उगाए गए हैं बल्कि निःस्वार्थ भाव से सरकारी भूमि पर भी कुछ पेड़ उगाए गए हैं, जिससे उनकी निःस्वार्थ भावना व प्रकृति प्रेम का पता चलता है और मजे की बात यह है कि आज तक नयन सिंह ने यहां से एक भी पेड़ अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं काटा है। 1957 में पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट नयन सिंह प्रतिवर्ष युवा अवस्था से अब तक देवदार के पेड़ लगाते आ रहे हैं, जिसमें उनके दोनों पुत्रों राजेंद्र व मनु ने भी भरपूर सहयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप इन उगाए गए पेड़ों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। इस क्षेत्र में नयन सिंह युवाओं के लिए पर्यावरण व कृषि के क्षेत्र में किसी रोल मॉडल से कम नहीं हैं। 60 के दशक से भी पहले के ग्रेजुएट नयन सिंह आसानी से कोई अच्छी सरकारी नौकरी भी प्राप्त कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा न कर पेड़-पौधों की परवरिश में ही अपना पूरा जीवन गुजार दिया। नयन सिंह के दोनों पुत्र राजेंद्र व मनु भी इनके नक्शे कदम पर चलते हुए आज की तारीख में अच्छे और कामयाब बागबान हैं। इन्होंने भी पेड़ पौधों में और अधिक विस्तार करते हुए फलदार बागीचे तैयार कर रखे हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि इस क्षेत्र में देवदार के पेड़ केवल नयन सिंह की ही जमीन में दिखाई देते हैं। नयन सिंह आज के दौर में नौकरी के पीछे भाग रहे युवाओं को मशविरा देते हुए कहते हैं कि किसानों व उनके बच्चों को अपने घर के आसपास खाली पड़ी जमीन व खेतों में इमारती लकड़ी योग्य पेड़ व फलदार पौधे लगाने चाहिए।  इससे उनकी इन्कम तो बढ़ेगी ही बल्कि पर्यावरण में भी जबरदस्त सुधार आएगा। डीएफओ राजगढ़ मृत्युंजय के मुताबिक नयन सिंह ने काफी अच्छा सराहनीय काम किया है, जिससे कि युवाओं को भी सीख लेनी चाहिए तथा अधिक से अधिक पेड़-पौधे उगाने चाहिएं।

जब रू-ब-रू हुए…

मकसद यही कि हिमाचल के नंगे पहाड़ पेड़ों से ढक जाएं…

पेड़ पौधों से आपकी मोहब्बत क्यों, कैसे और कब से?

मेरी दादी ग्लाबो देवी को पेड़- पौधों से बहुत लगाव था। उसके बाद मेरी माता जी चानणों देवी भी कोई न कोई पौधा उगाने में लगी रहती थी। लेकिन वह व्यूहल या कुछ फलदार पौधे उगाते थे, लेकिन मुझे पेड़-पौधों से इतना लगाव हो गया कि मैं प्रतिवर्ष देवदार के पौधे उगाता था।

आपने देवदार के पौधे ही क्यों चुने?

देवदार के पोधे इसलिए उगाए क्योंकि देवदार के जंगल जहां होते हैं, वहां का वातावरण और आबोहवा बहुत अच्छे हो जाते हैं। देवदार के जंगल से निकलने वाला पानी भी अच्छा हो जाता है। देवदार की लकड़ी बहुत कीमती होती है उसका मुकाबला कोई भी इमारती लकड़ी नहीं कर सकती। बल्कि देवदार से तो मेरा प्रेम है। यह जो नंगे पहाड़ हैं अगर इनमें देवदार उगाया जाए तो वातावरण ही बदल जाएगा।

आपके जीवन में पौधा रोपण के मायने क्या हैं और इस राह पर चलते हुए सुकून?

बात यह है कि यह काम तो फोरेस्ट डिपार्टमेंट का था, परंतु फोरेस्ट डिपार्टमेंट तो इस मामले में ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा है। पेड़ पौधों के प्रति प्यार जगाना पड़ता है। लोगों में जिस तरह से अपर शिमला में सेब के पौधों से प्यार हुआ,  उस प्यार का असर यह हुआ कि आज करोड़ों रुपए प्रदेश में आते हैं। इसी तरह से जब तक लोगों में देवदार के प्रति प्यार नहीं होगा, देवदार लगेगा नहीं। वन महोत्सव मनाए जाते हैं हर वर्ष, लेकिन में समझता हूं कि वह रस्म निभाने से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि नए उगाए गए पौधे को डेढ़ से दो साल तक निगरानी में रखना पड़ता है, तब जाकर कहीं कामयाबी मिलती है।

क्या आप हिमाचल जंगल की वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हैं?

हिमाचल में अब जंगल है ही कितने? इसलिए संतुष्टि जैसी कोई बात ही नहीं। हर तरफ  अधिकतर नंगे पहाड़ दिखाई देते हैं।

फोरेस्ट नीति में कहां- कहां दोष पाते है?

जब हम कोई पौधा उगाते हैं तो उसकी लगातार देखरेख भी होनी चाहिए, तभी कामयाबी मिलती है। पौधे रोपने का सही वक्त पौधे की अच्छी किस्म इत्यादि बहुत सी बातं हैं, जिन्हें ध्यान में रखना होता है।  हिमाचल में वनों की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसकी जिम्मेदारी कहीं न कहीं सरकारी अमले की भी है। वे पोधे रोपकर चले जाते हैं और उसकी निगरानी नहीं करते। असमय पौधे रोपने से भी कामयाबी नहीं मिलेगी।

हिमाचली समुदाय के जंगलों से घटते रिश्ते की वजह क्या देखते हैं और आपकी नजर में इस दिशा में क्या होना चाहिए?

पेड़- पौधों का महत्त्व सही मायने में नहीं समझ पाए हैं लोग। आजादी के बाद अगर वनों की तरफ सरकारें सही वन नीति के साथ विशेष ध्यान देतीं, तो आज यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती। राजाओं के समय में वनों की तरफ  अतिरिक्त ध्यान दिया जाता था। अगर उन दिनों में कोई भी व्यक्ति जंगल में आग लगाता था, तो उसे राजा की तरफ  से जुर्माना लगाया जाता था। आग लगाने वाले का नाम उजागर नहीं होता था, तो राजा उस गांव से सामूहिक तरीके से जुर्माना वसूल करता था।

क्या चीड़ के पेड़ आपको भी परेशान करते हैं?

चीड़ सर्वनाश का कारण है। चीड़ का जंगल उगाना बिलकुल भी सही नहीं है। चीड़ से वातावरण खुश्क और गर्म हो जाता है। गर्मी के दिनों में चीड़ के पेड़ से गिरने वाले पत्तों में बहुत ही आसानी से आग लग जाती है और उस आग में आसपास के अन्य कीमती पौधे भी स्वाह हो जाते हैं। उन दिनों आग बुझाने के प्रति वन विभागीय कर्मी भी बहरे हो जाते हैं। मेरे हजारों पौधे पास के चीड़ के जंगल में लगी आग के कारण कई बार आग की भेंट चढ़ गए। अगर हमारा चीड़ के जंगल के कारण नुकसान न होता, तो आज मेरे पास देवदार के करीब एक लाख पेड़ होते।

पेड़ों की तादाद बढ़ाकर या अधिक जंगल उगाकर कैसे हिमाचल की आर्थिकी सुदृढ़ होगी?

हिमाचल को कुछ करने की जरूरत ही नहीं, अगर नंगे पहाड़ वनों से ढक जाएं तो।

मकसद जिसे आप पाना चाहते है। संदेश जिसे लहराना चाहते है।

अब तो 90 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूं। चल फिर नहीं सकता, ठीक से बोल नहीं सकता। मकसद तो यही है कि ये नंगे पहाड़ वनों से ढक जाएं। इन पहाड़ों को वनों की चादर ओढ़ने को मिल जाए और पर्यावरण फिर से खुशगवार हो जाए। संदेश यही कि सभी लोग पेड़- पौधे उगाएं। पेड़- पौध हमारे सच्चे मित्र हैं, ये कभी किसी को निराश नहीं करते। चाहे प्रतिवर्ष पांच पौधे ही उगाएं, पर

उगाएं जरूर।

विभागीय तौर पर कभी किसी ने प्रोत्साहन दिया या प्रयास को खुर्द- बुर्द करती व्यवस्था से मिली खटास।

मुझे विभागीय तौर पर कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। न ही इस बारे में मेरी किसी वन्य कर्मचारी या अधिकारी ने मेरी सुध ली।

वर्तमान में आपके परिवार के लोग जैसे लड़के, बहुएं, पोते और पोतियां देवदार के पौधे उगाने के सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं या नहीं।

मेरी एक पोती है विशाखा, उसको पौधे उगाने का शौक है। वह प्रतिवर्ष देवदार इत्यादि के पौधे उगाती है। इस वर्ष भी कुछ दिन पहले उसके देवदार के 50 पौधे रोपे हैं।

राजेश कमल सूर्यवंशी, राजगढ़

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