अनुच्छेद-35ए पर महबूबा की बेचैनी

By: Aug 5th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीकुछ दिन पहले महबूबा मुफ्ती ने चेतावनी दी कि यदि संविधान से अनुच्छेद-35ए को हटाने की कोशिश की गई, तो कश्मीर घाटी में तिरंगे को थामने वाला कोई नहीं बचेगा। अरब-ईरान से आने वालों, जिनकी जड़ें अभी तक भी घाटी में नहीं जम सकीं, के बारे में तो वही बेहतर जानती होंगी, जहां तक कश्मीरियों का ताल्लुक है, वे तिरंगे को हाथ में ही थामे रहेंगे, कंधे की जरूरत नहीं पड़ेगी। महबूबा मुफ्ती को अपना रक्तचाप इस मामले को लेकर शायद बढ़ाने की जरूरत नहीं है…

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती आजकल गुस्से में हैं। कुछ दिन पहले 28 जुलाई को उन्होंने चेतावनी दी कि यदि संविधान से अनुच्छेद-35ए को हटाने की कोशिश की गई, तो कश्मीर घाटी में तिरंगे को थामने वाला कोई नहीं बचेगा। उनका कहना था कि घाटी के लोगों को जो विशेषाधिकार मिले हैं, उनसे छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। महबूबा मुफ्ती ने साफ किया कि घाटी में उनकी अपनी पार्टी पीडीपी और अन्य राजनीतिक दल तमाम खतरों के रहते भी अपने हाथों में तिरंगा थामे रखते हैं, लेकिन यदि विशेषाधिकारों से छेड़छाड़ की गई तो तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा। महबूबा मुफ्ती तिरंगे थामने वाला कोई नहीं रहेगा, कहते हुए पूरे राज्य जम्मू-कश्मीर का नाम बार-बार ले रही थीं। लेकिन यकीनन उनका इशारा घाटी की तरफ ही रहा होगा, क्योंकि वह जानती होंगी कि जम्मू संभाग में तो लोगों ने तिरंगे थामने को लेकर ही शेख अब्दुल्ला की पुलिस की गोलियां खाई थीं और प्रजा परिषद के उस आंदोलन में नौ लोग शहीद भी हो गए थे। इसी प्रकार लद्दाख संभाग की बात भी वह नहीं कर रही होंगी, क्योंकि लद्दाख में कुछ साल पहले तक लोगों ने तिरंगा उठा कर ही कहा था कि लद्दाखियों को घाटी वालों के विशेषाधिकार नहीं चाहिएं, उन्हें केंद्र शासित राज्य बना देना चाहिए।

महबूबा मुफ्ती विशेषाधिकारों के मामले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 और 35ए का जिक्र कर रही थीं। महबूबा का कहना था कि कश्मीर घाटी के मुसलमानों ने 1947 में यहां रहने का फैसला किया था, जिसकी एवज में उन्हें विशेषाधिकार मिले हुए हैं, वे किसी भी हालत में बने रहने चाहिएं। महबूबा मुफ्ती का यह तर्क अरब के बद्दू शायद समझ सकते हों, यहां के लोगों को यह उल्टा तर्क समझ में नहीं आएगा। इस तर्क का अर्थ तो यह है कि मुसलमान भारत में रह रहे हैं, इसी से गदगद होकर भारतीयों को चाहिए कि वे उन्हें विशेषाधिकार दें। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक बार कहा था कि भारत के मुसलमानों में से 95 प्रतिशत मुसलमान हिंदुओं की औलाद हैं। शेष पांच प्रतिशत मुसलमान वे हैं, जिनके पूर्वज हिंदोस्तान को जीतने के लिए इस देश में आए थे और धीरे-धीरे यहीं घुल-मिल गए। कश्मीर घाटी में ये पांच प्रतिशत कौन हैं, इनकी शिनाख्त तो महबूबा मुफ्ती भी आसानी से कर सकती हैं। यकीनन उन्होंने की भी होगी और जब वह कहती हैं कि घाटी में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा, तो वह उन्हीं पांच प्रतिशत मुसलमानों की बात कर रही होंगी। अब उन विशेषाधिकारों की बात, जिनको लेकर महबूबा मुफ्ती गुस्से में है। अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बारे में तो भारत सरकार की ओर से फिलहाल नहीं कहा गया है कि इस अनुच्छेद को हटाया जाएगा या हटाया जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद-35ए के बारे में भी भारत सरकार ने फिलहाल ऐसा नहीं कहा। वैसे केवल रिकार्ड के लिए देख लिया जाए कि अनुच्छेद-35ए क्या है और भारतीय संविधान में यह कब और किस रास्ते से घुस आया है। बाबा साहेब अंबेडकर ने जो संविधान बनाया था, उसमें यह अनुच्छेद नहीं है।

पूरा रिकार्ड खंगाल लेने के बाद, कहा जा सकता है कि भारतीय संसद ने कभी इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल नहीं किया और न ही इस अनुच्छेद को शामिल करने के लिए कभी संविधान का संशोधन किया। भारतीय संविधान, जो भारत सरकार के विधि मंत्रालय ने प्रकाशित किया है, उसमें अनुच्छेद-35 के बाद अनुच्छेद-35ए कहीं दिखाई भी नहीं देता। दरअसल यह अनुच्छेद भारतीय संविधान के परिशिष्ट में दिया हुआ है, इसलिए वहां आसानी से किसी का ध्यान नहीं जाता। कहा गया है कि भारतीय संविधान के लिए अनुच्छेद-35ए जम्मू-कश्मीर सरकार ने बनाया था और राष्ट्रपति ने अपने कार्यपालिका आदेश द्वारा इसे भारतीय संविधान के शरीर के अंदर स्थापित कर दिया। अभी तक यह माना जाता था कि संविधान निर्माण का काम विधानपालिका का है, कार्यपालिका का उसमें कोई दखल नहीं है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर सरकार यदि चाहे तो भारतीय संविधान के लिए अनुच्छेद बना सकती है और बिना भारतीय संसद को बताए राष्ट्रपति उसे केवल अपने कार्यपालिका आदेश से संविधान का हिस्सा बना सकते हैं। कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर की कार्यपालिका को यह ताकत अनुच्छेद-370 ने दे रखी है और इसी अनुच्छेद ने राष्ट्रपति को कार्यपालिका आदेश से ही संविधान निर्माण करने की ताकत दे दी है।

भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को इस का विश्वास नहीं था। उन्होंने पंडित नेहरू को लिखा भी था कि अनुच्छेद-370 राष्ट्रपति को यह ताकत नहीं देता, लेकिन पंडित नेहरू नहीं माने क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले यह थ्योरी दी थी कि घाटी के मुसलमानों ने भारत में ही रहने का निर्णय किया है, इसलिए इनाम में उन्हें विशेषाधिकार मिलने ही चाहिएं। अपने आपको भारतीय संविधान का विशेषज्ञ मानने वाले एजी नूरानी का कहना है कि 35ए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 में से निकला है, इसलिए इसे भी छुआ नहीं जा सकता। इसका अर्थ यह हुआ कि अब अनुच्छेद-370 की संतानें भी पैदा होने लगी हैं और वे संतानें भी स्वयं ही भारतीय संविधान का अंग बन जाएंगी। लेकिन यदि अभी से ध्यान न दिया गया और अनुच्छेद-370 ने तेज गति से संतानें पैदा करना शुरू कर दिया, तो मूल भारतीय संविधान गुम हो जाएगा और अनुच्छेद-370 की अवैध संतानें ही सारे भारतीय संविधान पर कब्जा कर लेंगी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-35ए जिसे भारतीय संसद ने नहीं बनाया, कहता है-जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी वाशिंदों की परिभाषा और उनको दिए जाने वाले विशेषाधिकारों व सुविधाओं, मसलन राज्य में सरकारी नौकरियां देना, अचल संपत्ति प्राप्त करना, राज्य में बस जाना, पढ़ने के लिए छात्रवृत्तियां या अन्य सरकारी सहायता देना इत्यादि को लेकर जम्मू-कश्मीर में जो अधिनियम इस समय लागू हैं या फिर राज्य का विधानमंडल भविष्य में इस संबंधी कोई अधिनियम पारित करता है, तो उस अधिनियम को इस आधार पर असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता कि इन अधिनियमों से देश के नागरिकों के साथ भेदभाव होता है। जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी कौन है, इसको पहले ही राज्य के संविधान की धारा-6 में स्पष्ट कर दिया गया है।

इसके अनुसार-मोटे तौर पर राज्य का स्थायी निवासी वह है जो या तो 1954 से राज्य में रह रहा हो या फिर उसके पूर्वज 1944 या उससे पहले से रियासत में रह रहे हों। इस परिभाषा का अर्थ यह हुआ कि 1944 या उससे पूर्व जो लोग जम्मू-कश्मीर में रह रहे थे , उनकी संतानें ही राज्य की स्थायी निवासी मानी जाएंगी। राज्य के स्थायी निवासियों को ही राज्य प्रदत्त सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इसका अर्थ यह है कि 1944 से पूर्व रह रहे लोगों की संतानों को यह राज्य अनंत काल के लिए लीज या पट्टे पर दे दिया गया है। यह उनकी व्यक्तिगत/सामूहिक संपत्ति हो गई है। किसने दिया है? उन्होंने स्वयं ही ले लिया है। इस लीज को ही वे जम्मू-कश्मीर का संविधान कहते हैं। राज्य सरकार को अंदेशा होगा कि भविष्य में उच्चतम न्यायालय में इस असंवैधानिक हास्यास्पद स्थिति को कोई चुनौती न दे दे, इसलिए उसने इन अमानवीय असंवैधानिक धाराओं और अधिनियमों के इर्द-गिर्द अनुच्छेद-35ए की कांटेदार तार स्वयं ही लगा ली। इस असंवैधानिक तार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है। उससे उत्तेजित होकर महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि किसी ने 35-ए को छेड़ा तो कश्मीर में तिरंगे को कोई कंधा देने वाला भी नहीं मिलेगा। अरब-ईरान से आने वालों, जिनकी जड़ें अभी तक भी घाटी में नहीं जम सकीं, के बारे में तो वही बेहतर जानती होंगी, जहां तक कश्मीरियों का ताल्लुक है, वे तिरंगे को हाथ में ही थामे रहेंगे, कंधे की जरूरत नहीं पड़ेगी। महबूबा मुफ्ती को अपना रक्तचाप इस मामले को लेकर शायद बढ़ाने की जरूरत नहीं है।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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