आईपीसी धारा-498ए
आज हमारे देश में लड़कियों और महिलाओं को लेकर कई कानून बनाए गए हैं। आज के इस दौर में जहां महिलाओं की सुरक्षा को ज्यादा सोचने की जरूरत है, वहीं सुरक्षा के लिए कुछ सख्त कानून भी बनाए गए हैं। इन कानूनों की जानकारी होना हर महिला के लिए जरूरी है। वैसे तो महिलाओं के लिए कई तरह के कानून बनाए गए हैं। उनमें से एक के बारे में आज आपको बताने जा रहे हैं, जिसे जानने का अधिकार हर महिला को है-
जब आईपीसी में धारा 498-ए को शामिल किया गया था तो समाज ने, विशेषकर वैसे परिवारों ने राहत महसूस की जिनकी बेटियां दहेज के कारण ससुराल में पीडि़त थीं या निकाल दी गई थीं। लोगों को लगा कि विवाहिता बेटियों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। इससे दहेज के लिए बहुओं को प्रताडि़त करने वालों परिवारों में भी भय का वातावरण बना। शुरू में तो कई लोग कानून की इस धारा से मिलने वाले लाभों से अनभिज्ञ थे, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसका सदुपयोग भी करने लगे। पर कुछ ही समय बाद इस कानून का ऐसा दुरुपयोग शुरू हुआ कि यह वर पक्ष के लोगों को डराने वाला शस्त्र बन गया।
क्या कहता है ये कानून
दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निपटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है। दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा- 498-ए का प्रावधान किया गया है। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है। अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताडि़त किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताडि़त करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
यह है सजा
इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के दौरान हुई हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है। 1961 में बना दहेज निरोधक कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। दहेज निरोधक कानून की धारा- 8 कहती है कि दहेज देना और लेना संज्ञेय अपराध है।
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