आरोप-प्रत्यारोप ने जकड़ा प्रदेश का विकास

By: Aug 19th, 2017 12:07 am

गिरीश वर्मा

लेखक, पतलीकूहल, कुल्लू से हैं

newsआज जहां प्रदेश में विकास की धारा का प्रवाह होना चाहिए था, वहां ठहराव के कई रूप देखे जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नेताओं द्वारा जो ऊर्जा विकास की दिशा में लगानी चाहिए थी, वह एक-दूसरे से उलझने में लगती रही। विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव, हर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर कीचड़ उछालता नजर आता है…

राजनेताओं का ध्येय जहां प्रदेश की हालत को बेहतर बनाने में होना चाहिए था, वह मात्र अब एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने तक सीमित हो गया है। विधानसभा व संसद के दोनों सदनों में जहां जनता के मसलों पर मंथन होना चाहिए था, वहां लात-घूसों का संघर्ष देखकर सदन भी शर्मिंदा है। लेकिन उन राजनेताओं को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके लिए यह दुर्व्यवहार भी किसी बहादुरी से कम नहीं होता। नेताओं के दिलोदिमाग में मात्र कुर्सी को हथियाने की होड़ मची हुई है। वे विकास पर ध्यान न देकर अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए डटे हुए हैं। मतदाता ने राष्ट्रीय व प्रादेशिक हितों का ख्याल रखने के लिए इन नेताओं को कई लोकतांत्रिक अधिकार दिए है। दुखद यह कि हमारे नेतागण लगातार जनता की उन अपेक्षाओं व उम्मीदों से कटते जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस तरह से जनता के हितों की बलि दी जा रही है, वह चिंताजनक स्थिति है।

हमारे नेता भी इस क्षति से अनभिज्ञ नहीं हैं। फिर भी वे अपनी दुराचारी व संकीर्ण राजनीति का खेल खेलकर लोकतंत्र की परिभाषा को बिगाड़ते जा रहे हैं। देश व प्रदेश में जनता की मांगों को ढाल बनाकर नेता कई आंदोलन करते रहते हैं। आंदोलन करने वालों को विध्वंसकारी नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण तरीका अपनाना चाहिए। विडंबना यह कि आंदोलन के लिए तोड़-फोड़ का जो रास्ता ये अपनाते हैं, वह प्रदेश व देश हित में नहीं है। प्रदेश में जिस तरह से कई प्रकार के संगठन अपनी मांगों को लेकर हिंसक रास्ता अख्तियार कर रहे हैं, उससे कानून व्यवस्था तार-तार होती नजर आ रही है। जब प्रदेश व देश को चलाने वाले ही आक्रामक तेवर दिखाकर एक-दूसरे पर पत्थर व माइक फेंकते हुए नजर आते रहेंगे, तो उस उनसे विकास की कामना करना परिहास का विषय नजर आता है। जब तक हमारे नेताओं में ऐसी विध्वंसकारी मानसिकता रहेगी, हम प्रदेश व देश में शांतिपूर्वक विकास की डगर पर चलने में असमर्थ रहेंगे और बाहरी शक्तियां उस पर हावी रह कर अपना उल्लू सीधा करती रहेंगी। इसलिए यदि हम एक खुशहाल-समृद्ध प्रदेश व देश की परिभाषा को विध्वंसकारी आंदोलन की दहलीज तक ले जाते रहेंगे, उससे नुकसान ही हाथ लगेगा।

यदि हमें प्रदेश में विकास को गति प्रदान करनी है, तो सबसे पहले जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदों को यह गैर जिम्मेदाराना मानसिकता छोड़ना होगी। अमूमन जब भी हमारे नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे हैं, तो उससे प्रदेश को कुछ हासिल नहीं होता। तो फिर वह काम करना ही क्यों, जिससे प्रदेश को कोई लाभ न हो। आज जहां प्रदेश में विकास की धारा का प्रवाह होना चाहिए था, वहां ठहराव के कई रूप देखे जा सकते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारे नेताओं द्वारा जो ऊर्जा विकास की दिशा में लगानी चाहिए थी, वह एक-दूसरे से उलझने में लगती रही। विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव, हर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर कीचड़ उछालता नजर आता है। जिस तरह से इस खेल में भ्रष्टाचार, अवसरवाद, अलगाववाद तथा अराजकता का समावेश प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है, उससे प्रदेश विकास से वंचित रह रहा है। आज जनता नेताओं के लुभावने भाषणों व उनके घोषणा पत्रों से भी तंग आने लगी है। राजनीतिज्ञ भोली-भाली जनता को मीठे बोलों से लुभाने में लगे हैं, मात्र सत्ता हथियाने के लिए। नेताओं के वादों व घोषणाओं की झड़ी में डूबी जनता उस पतवार की ओर टकटकी लगाए बैठी है, जो उसकी डूबती नैया को किनारे पर लगाए। मगर ऐसा नहीं हो रहा, बल्कि बड़ी बेरहमी के साथ उसकी आस्था व विश्वास का गला घोंटा जा रहा है। रही बात विकास की, तो उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यदि इस ओर ध्यान दिया जाता, तो आज देश व प्रदेश को वर्तमान समय की तमाम चुनौतियों से न जूझना पड़ रहा होता। सियासत के दलदल में नेता जिस कद्र धंसे हुए हैं, वहां से विकास की संभावना नजर नहीं आती।  प्रदेश की सियासी पार्टियां जहां जातिवाद व क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने में लगी हैं, ठीक उसी की बिसात में देश की बड़ी पार्टियां भी जाति व मजहब के नाम पर सियासत के इस खेल को आगे बढ़ा रही हैं। विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के नेताओं की मानसिकता फिर से इस कद्र ओछी होती दिख रही है कि वे विकास करने के बजाय जनता को बांटने पर तुले हुए हैं। जब तक देश के कर्णधारों, जिन्हें जनता ने चुनाव में जिताकर एक सुदृढ़ प्रदेश व देश को बनाने के लिए विधानसभाओं व लोकसभा में भेजा है, के जहन से विनाशकारी मानसिकता का राक्षस बाहर नहीं निकलता, विकास की कामना बेमानी होगी। प्रदेश को समृद्ध बनाना है तो नेताओं को सबसे पहले उस मानसिकता को अपने जहन से खत्म करना होगा जो विकास की गति को मंद कर रही है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App