ऋग्वेद में जनों का उल्लेख है, जनपदों का नहीं

By: Aug 2nd, 2017 12:05 am

प्रत्येक जन में अनेक कुटुंब होते थे। अतः एक ही जाति के पुरुष से उत्पन्न विभिन्न कुटुंबों के समुदाय का नाम जन था। शुरू-शुरू में इन जनों का कोई निश्चित तथा स्थायी स्थान नहीं होता था और वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे। ऋग्वेद में जनों का उल्लेख आता है, परंतु जनपदों (स्थायी राज्यों) का नहीं…

आर्य और हिमाचल

इस प्रकार वैदिक आर्यों तथा उत्तर वैदिक आर्यों की गतिविधियां बौद्ध काल तक शिवालिक तथा हिमाचल की आबाद घाटियों तक ही सीमित रही। यह बात नहीं कि वे लोग हिमाचल में आए ही नहीं। आए तो अवश्य परंतु बाद में और वह भी विजेता बन कर नहीं, अपितु ऋषि मुनियों के नेतृत्व में शांतिप्रिय लोगों के रूप में अपना पशुधन, गृहस्थी का सामान और अपने देवताओं को साथ लेकर। जब वे यहां आए तो उनका यहां पर पहले से ही बसने वाली जातियों से आसानी से मेल-जोल हो गया, क्योंकि खश लोग जो उनके ही भाई बंधु थे, उनमें मिल गए और उनके रीति रिवाज, धर्म उनकी सभ्यता और संस्कृति को उन्होंने भी अपना लिया।

हिमाचल के प्राचीन जनपद

जनपदों का उदय वैदिक युग के अंत में हुआ, जिसके द्वारा सही मायनों में भारतीय संस्कृति का विकास हुआ। जन अपने को किसी पूर्वजन विशेष की संतान मानते थे। प्रत्येक जन में अनेक कुटुंब होते थे। अतः एक ही जाति के पुरुष से उत्पन्न विभिन्न कुटुंबों के समुदाय का नाम जन था। शुरू-शुरू में इन जनों का कोई निश्चित तथा स्थायी स्थान नहीं होता था और वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे। ऋग्वेद में जनों का उल्लेख आता है, परंतु जनपदों (स्थायी राज्यों) का नहीं। लगता है कि उस समय तक जनों ने अपने स्थायी राज्य स्थापित नहीं किए होंगे। इस दार्शनिक काल को राजनीतिक दष्टि से जनपद का काल कहा जाए, जो अनुचित न होगा। इसी काल में जनपदों का उदय हुआ, जिनकी स्थापना शनैः शनैः सारे देश में हुई। ये जनपद राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक हर दृष्टिकोण से एक इकाई के रूप में खड़े हुए। शुरू-शुरू में जनपदों में किसी एक वर्ग विशेष के मनुष्य ही रहते थे। अतः उनका जीवन एक सजातीय राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परंपरा के अनुकूल संगठित था। इन जनपदों में शांति, सुव्यवस्था और धर्म नीति की स्थाना राजतंत्र से कहीं अधिक विकसित और सुदृढ़ बुनियादों पर हुई। जनपदों में अराजकता का तो कोई प्रश्न था ही नहीं। उन लोगों का उस भूमि के साथ जिस पर वे वास करते थे, एक प्रकार का मोह तथा प्रगाढ़ मातृ भाव था।

प्रत्येक जनपद की भूमि वहां के निवासियों की मातृभूमि बन गई। भाषा, धर्म, अर्थव्यवस्था और संस्कृति सभी दृष्टियों से जनपद स्थानीय जीवन की दृढ़ इकाई हो गए। इन जनपदों की बुनियादें इतनी पक्की थीं कि सैकड़ों वर्ष तक भी उनके नैतिक ढांचे जैसे के तैसे अडिग तथा अटल बने रहे। कालांतर में इन जनपदों में अन्य वर्गों और जातियों के लोग भी आकर बसने लगे।

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