खुशी और गम के 70 वर्ष

By: Aug 14th, 2017 12:08 am

कुलदीप नैयर

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

newsमैं यह कल्पना नहीं कर सकता कि हमारी संसद कश्मीर को आजाद करने के लिए कोई प्रस्ताव लाएगी। पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर उसके लिए जीवन रेखा के समान है। इसलिए मुझे लगता है कि इस समस्या का समाधान अगले 70 वर्षों में भी निकलने वाला नहीं है। अब तक का समय हम एक-दूसरे पर गोलियां बरसाने में व्यर्थ गंवा चुके हैं। सबसे पहले भारत को संयुक्त राष्ट्र में दाखिल याचिका वापस लेनी चाहिए और पाकिस्तान को आश्वस्त करना चाहिए कि वह शांति तथा उसके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है…

स्वतंत्रता दिवस के समारोह मुझे अपने गृह नगर सियालकोट में बिताए दिनों की याद दिलाते हैं। कानून में डिग्री हासिल करने के बाद मैं वकालत का पेशा शुरू करने ही वाला था कि देश के विभाजन के कारण मेरी सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। इसके कारण मुझे वह स्थान छोड़ना पड़ा जहां मैं जन्मा और पला-बढ़ा था। जब भी मैं इस विषय में सोचता हूं तो यह एक दुखद गाथा के रूप में सामने आ जाता है। इसके बावजूद खुशी की बात यह है कि हिंदू और मुसलमानों के बीच व्यक्तिगत संबंध बहुधा प्रभावित नहीं हुए। मेरे पिता जी, जो एक डाक्टर थे, ने जब सियालकोट से बाहर आना चाहा तो उन्हें देशांतर से रोक दिया गया। एक दिन मेरी माता जी तथा उन्होंने निर्णय किया कि वह लोगों को बताए बिना सियालकोट से निकल जाएंगे। वे चुपचाप रेलगाड़ी में चढ़ गए। कुछ समय बाद हमारे पड़ोस के कुछ बच्चों ने उन्हें पहचान लिया और उनसे सियालकोट न छोड़ने का आग्रह किया। मेरे पिता जी ने उन्हें बताया कि वह पहले से ही दिल्ली में रह रहे बच्चों से मिलने जा रहे हैं और जल्द ही वापस लौट आएंगे। लेकिन बच्चे अपनी जिद पर अड़ गए और उन्होंने उन्हें यात्रा करने की अनुमति नहीं दी। कुछ समय बाद वे नरम पड़ गए और उन्होंने मेरे माता-पिता को बताया कि वे एक दिन बाद उसी रेलगाड़ी से जा सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि निकट के नारोवाल पुल पर सभी यात्रियों को मार देने की योजना बनाई गई है। और ऐसा ही हुआ। अगले दिन वे हमारे घर आए और मेरे माता-पिता को बताया कि वे पलायन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि हमने यह सुनिश्चित कर लिया है कि उनकी यात्रा सुरक्षित रहे। उन बच्चों ने पुल को पैदल पार करने में मेरे माता-पिता की मदद की तथा सीमा पर अलविदा भी कहा।मैं कुछ दिनों तक सियालकोट में ही रुका रहा तथा बाद में वाघा के लिए एक अन्य रास्ता पकड़ा। एक ब्रिगेडियर, जिनका भारत के लिए तबादला हुआ था, जगह छोड़ने से पहले मेरे पिता जी के पास आए और पूछा कि क्या वह कुछ मदद कर सकता है। मेरे पिता जी ने मेरी ओर देखा तथा ब्रिगेडियर को मुझे सीमा पार ले जाने को कहा। मैंने एक जीप के पिछले हिस्से में बैठकर यात्रा की। यह जीप सामान से भरी पड़ी थी। अमृतसर के लिए मुख्य सड़क से थोड़ा हटकर सियालकोट है। लेकिन मैं यह देखकर हैरान था कि सड़क पर सैकड़ों लोग थे। एक छोटी नदी पाकिस्तान की ओर जा रही थी और हम अमृतसर की यात्रा कर रहे थे। एक चीज पक्की थी कि कोई भी वापस नहीं लौट रहा था। मुझे इधर-उधर बिखरे पड़े मृत शरीरों की दुर्गंध आ रही थी। लोगों को जीप के लिए रास्ता बनाना पड़ रहा था।

एक स्थान पर एक सिख ने हमें रोका और आग्रह किया कि हम उसके पोते को दूसरी ओर ले जाकर पालन-पोषण करें। मैंने उसे बताया कि मैंने अभी अपनी पढ़ाई पूरी की है तथा मैं एक बच्चे को पालने का जिम्मा नहीं उठा सकता। उसने कहा कि इससे फर्क नहीं पड़ता और आग्रह किया कि मैं उसे शरणार्थी शिविर में छोड़ दूं, वह बाद में उसे वहां से ले लेगा। इस पर मैंने न कहा और उसका दीन-हीन चेहरा मुझे आज भी घूरता नजर आता है। सियालकोट में एक अमीर मुसलमान गुलाम कादिर ने अपना एक बंगला खोला और मेरे पिता जी को बताया कि जब तक वह महसूस करते हैं कि शहर में वे सुरक्षित नहीं हैं, तब तक उसमें रह सकते हैं। वह बंगला अपने आप में एक शरणार्थी शिविर बन गया और एक समय उसमें हम करीब 100 लोग रह रहे थे। कादिर ने ही हम सभी को राशन भी उपलब्ध करवाया। हमारा दोधी दूध की निरंतर सप्लाई कर रहा था। जब मैंने बार्डर पार किया तो मेरे पास केवल एक छोटा बैग, एक जोड़ी पतलून और वे 120 रुपए थे जो मुझे मेरी मां ने दिए थे। लेकिन मेरे पास बीए आनर्स और एलएलबी की डिग्रियां थीं और मुझे विश्वास था कि मैं अपने जीवन को फिर से व्यवस्थित कर लूंगा। इसके बावजूद मुझे चिंता थी कि मेरे पिता जी को जालंधर में जिंदगी नए सिरे से शुरू करनी पड़ेगी। फिर भी कुछ ही दिनों में वह काफी लोकप्रिय हो गए तथा उनके पास बड़ी संख्या में मरीज सुबह से शाम तक आने लगे। मैं एक बार दिल्ली गया जहां दरियागंज में मेरी मामी रह रही थीं। जामा मस्जिद वहां बिलकुल नजदीक थी और मैं अकसर सस्ता होने के कारण वहां पर मांस खा लिया करता था। वहां पर मैं एक आदमी से मिला जो मुझे उर्दू अखबार अंजाम में ले गया। इस तरह मेरा पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ। बाकी एक इतिहास है। मैं इस विषय में कुछ नहीं बोलना चाहता। क्या ऐसी स्थिति में, जबकि दोनों ओर से एक मिलियन लोग मारे गए, विभाजन जरूरी था। वह कड़वाहट अभी भी है। दोनों देश अभी भी एक-दूसरे को शत्रु समझते हैं। भारत व पाकिस्तान में 1965, 1971 व 1999 में तीन बार युद्ध हो चुके हैं। सीमा पर अभी भी तनाव है और वहां मौजूद दोनों ओर के जवान हर वक्त गोली चलाने को तैयार खड़े रहते हैं। हम 70वां स्वतंत्रता दिवस पहले ही मना चुके हैं। हमारी सीमाएं तनावमुक्त, जैसी कि मैंने कल्पना की थी, होने के बजाय वहां अब भी गोलियां चलती हैं और हर वक्त गश्त होती रहती है। एक लंबी सीमा पर तनाव की दर बढ़ती ही जा रही है। दोनों देशों में बातचीत नहीं हो पा रही है।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि जब तक पाकिस्तान घुसपैठ नहीं रोकेगा, तब तक उससे बात नहीं होगी। पाकिस्तान का कहना है कि घुसपैठ रोकने की उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि घुसपैठियों पर उसका नियंत्रण नहीं है। इस तरह दो देश आपस में दूरी बनाए हुए हैं और दोनों में कोई संपर्क नहीं है। वीजा लेना बहुत मुश्किल हो गया है। दोनों ओर के रिश्तेदार और मित्र इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। पाकिस्तान कोई भी संबंध स्थापित करने से पहले कश्मीर मसले का समाधान चाहता है। कश्मीर अपने आप में एक लंबी कहानी है क्योंकि विभाजन फार्मूला भारत व पाकिस्तान को मान्यता देता है। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे घाटी की आजादी, जो कश्मीरी चाहते हैं, पर विचार शुरू किया जा सके। वास्तव में उन्होंने अपना लक्ष्य पाने के लिए बंदूकें उठा ली हैं। हाल ही में मैं ऐसे कुछ लोगों से मिला जिस दौरान मुझे पता चला कि वे घाटी को एक स्वतंत्र इस्लामी राज्य बनाने को कटिबद्ध हैं। अब बातचीत के जरिए उन्हें समझाना मुश्किल हो गया है। मैं यह कल्पना नहीं कर सकता कि हमारी संसद कश्मीर को आजाद करने के लिए कोई प्रस्ताव लाएगी। पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर उसके लिए जीवन रेखा के समान है। इसलिए मुझे लगता है कि इस समस्या का समाधान अगले 70 वर्षों में भी निकलने वाला नहीं है। अब तक का समय हम एक-दूसरे पर गोलियां बरसाने में व्यर्थ गंवा चुके हैं। सबसे पहले भारत को संयुक्त राष्ट्र में दाखिल याचिका वापस लेनी चाहिए और पाकिस्तान को आश्वस्त करना चाहिए कि वह शांति तथा उसके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है। ऐसा भी संभव है कि दोनों ओर के मीडिया प्रमुख बातचीत की मेज पर आकर ठोस प्रस्ताव तैयार करें।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com

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