गुड़-चने क्या खिलाए…बंदर सिर पर बैठ गए
घुमारवीं — जंगल का किनारा, खेतों में मक्की की फसल नहीं, कई बीघा भूमि बंजर, दुकानों के आगे लगी लोहे की जालियां। बात हो रही है घुमारवीं शहर से दस किलोमीटर दूर बसे गांव बद्धाघाट की। बद्धाघाट गांव के लोग व किसान उत्पाती बंदरों के खौफ से दहशत में है। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि घरों में न रोटी सुरक्षित है और न ही खेतों में अनाज। जाहिर है कि जिन बंदरों को कभी गुड़-चने, ब्रेड खिलाया करते थे, आज वही लोगों को खाने को दौड़ रहे हैं। गांव के आधे से अधिक किसानों ने खेतों में बिजाई करना बंद कर दिया है। दस साल पहले जहां किसान खेतों में अनाज उगाकर अपने परिवार की रोजी-रोटी चलाते थे, वहीं अब यहां के किसानों को अनाज खरीदना पड़ रहा है, जबकि बंदरों के खौफ से बचने के लिए दुकानदारों को मजबूरन पिंजरे में कैद रहना पड़ रहा है। दुकानदारों को दुकानों के गेटों के बाहर लोहे की जालियां लगाकर सामान बेचना पड़ रहा है। जंगल के इर्द-गिर्द जीवन यापन करने वाले किसानों ने तो खेतों में फसलों की बिजाई वर्षों पहले ही छोड़ रखी है, लेकिन बंदरों का उत्पात यहीं नहीं थम रहा है। बंदर घरों व दुकानों में घुसकर रोटी व अन्य सामान को भी उठा ले जा रहे हैं। उत्पाती बंदर आज तक कई लोगों तथा बच्चों को काटकर घायल भी कर चुके हैं। ऐसे में बच्चों को घरों में अकेला रखना व स्कूल भेजने के लिए भी लोगों को भी बंदरों से दो-चार होना पड़ रहा है। हालांकि बंदरों पर नुकेल कसने को सरकार व विभाग की योजनाओं पर बंदरों की कारगुजारी भारी पड़ रही है। इन योजनाओं पर सरकार ने करोड़ों रुपए भी खर्च किए, लेकिन धरातल पर यह बेअसर साबित हो रहे हैं।
सामान बेचना भी हो रहा मुश्किल
अशोक कुमार ने बताया कि बंदर जहां खेतों में फसलों को बर्बाद कर रहे हैं, वहीं दुकानों से भी सामान उठाकर ले जा रहे हैं। इससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बंदरों से सामान बचाने के लिए दुकानों के आगे मजबूरन उन्हें जाली लगानी पड़ी है। बंदर अभी तक गांवों के कई बच्चों तथा लोगों को काटकर घायल कर चुके हैं।
किसान-दुकानदार सभी परेशान
कश्मीरी लाल का कहना है कि गांव में बंदरों के आतंक से किसान, दुकानदार व राहगीर परेशान हैं। दस साल पहले की तुलना में अब बंदरों की संख्या बढ़ गई है। आक्रामक हो चुके बंदर किसानों की खेतों में बिजाई की गई फसल को उजाड़ रहे हैं। इससे कई किसानों ने अब खेती करना ही बंद कर दिया है।
बंदरों का आतंक, अब दुकानदारी छुड़वाने को आतुर
खदेड़ने पर नहीं काट रहे बंदर
प्रीतम पटियाल का कहना है कि गांवों में बंदरों का खौफ है। बंदरों से खेतों में फसल सुरक्षित नहीं है। भगाने पर बंदर काटने को दौड़ रहे हैं। दस साल पहले खेतों में बंदरों की उजाड़ कम होती थी, जिससे किसानों को भरपूर फसल होती थी, लेकिन अब किसानों को बहुत कम फसल मिल रही है।
बिजाई तो भूल ही जाओ
सुरेंद्र पटियाल का कहना है कि बंदरों के आतंक से परेशान उन्होंने खेतों में मक्की की बिजाई करना बंद कर दिया है। यदि खेतों में मक्की की बिजाई करें, तो बंदर पूरी फसल को उजाड़ देते हैं। उन्होंने खेतों में चरी व बाजरा की बिजाई की है। बंदरों की दहशत बढ़ती जा रही है।
अकेले जाने से भी लग रहा डर
सुरेंद्र कौशल का कहना है कि बंदरों से न तो खेतों में अनाज सुरक्षित है और न ही दुकानों में सामान। बंदरों के आतंक से लोग परेशान हैं। खेतों में मक्की की फसल को बर्बाद कर दे रहे हैं। दस साल पहले गांव में बंदरों का आतंक नहीं था, लेकिन अब तो अकेला चलने से भी डर लगता है।
फसलों को कर रहे बर्बाद
कर्म सिंह का कहना है कि बंदरों की उजाड़ से फसलें बर्बाद हो गई हैं। दस साल पहले यहां पर बंदर बहुत ही कम होते थे, लेकिन अब किसानों की सारी मेहनत को उत्पाती बंदर चौपट कर रहे हैं। गांव में किसानों की फसलों को बंदर काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। कई किसानों ने अब खेती बंद कर दी है।
लोगों को डरा रहे बंदर
अनिल कुमार का कहना है कि पहले की तुलना बंदरों का आतंक अब बढ़ गया है। लगभग दस साल पहले बंदर लोगों से डरते थे, लेकिन अब बंदर लोगों को डरा रहे हैं। कई लोगों व बच्चों को बंदर अब तक काटकर घायल कर चुके हैं। खेतों में फसल सुरक्षित नहीं है और न ही खेतों में अनाज हो रहा है। बंदर घरों से रोटियां उठाकर ले जा रहे हैं। अब तो अकेले बच्चे घरों में भी सुरक्षित नहीं है।
दुकान में लगानी पड़ी जाली
राकेश महाजन ने बताया कि बंदरों के खौफ के कारण उन्हें मजबूरन दुकान के आगे लोहे की जाली लगानी पड़ी है। पिंजरे में कैद रहकर सामान बेचना पड़ रहा है। दस साल पहले बंदर कम नुकसान करते थे। बंदरों की उजाड़ के कारण खेतों में फसल बहुत कम हो रही है। बच्चों तथा बड़ों को काटने को दौड़ रहे हैं। लोग खेतों में जाने से तो कतराते ही हैं, घरों में भी अपने आप असुरक्षित समझ रहे हैं।
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