गोपनीयता का स्वांग और भाजपा की हार

By: Aug 18th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंहअहमद पटेल की जीत में कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि कांग्रेस के पास 50 वोटों की ताकत थी, जो कि उन्हें जिताने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन अमित शाह, जिन्हें अहमद पटेल से कई हिसाब चुकता करने थे, ने उनकी जीत में रोड़ा अटकाने की एक कुटिल योजना बना ली थी।  संभवतः इसी वजह से गुजरात राज्यसभा चुनाव एकाएक देश की राजनीति के केंद्र में आ गए और दोनों ही पार्टियों के लिए यह एक सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई। राज्यसभा के चुनावी इतिहास में इससे पहले कभी भी इस तरह की अनिश्चितता और राजनीतिक हितों का जबरदस्त टकराव देखने को नहीं मिला…

गुजरात में अहमद पटेल के हाथों राज्यसभा की एक सीट हार जाने के बावजूद भाजपा ने पिछले तीन वर्षों में देश के 18 राज्यों में सत्ता हासिल करके बड़ी सियासी जीत अपने नाम दर्ज कर ली है। निश्चय ही यह भाजपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और काफी हद तक इसका श्रेय अमित शाह को जाता है। चुनावी गठजोड़ तथा राजनीतिक प्रबंधन में वास्तव में उन्होंने ही मुख्य भूमिका निभाई। बिहार, गोवा, मणिपुर और असम, जहां भाजपा के पास बहुमत नहीं था, में गठबंधन बनाने तथा सत्ता हासिल करने में वह सफल रहे हैं। हालांकि गुजरात के हालिया चुनाव ने उन्हें यह भी सिखा दिया कि लगातार हार झेल रहे विपक्ष से किस तरह मुकाबला करना है। दूसरी तरफ इस चुनाव ने यह भी साबित कर दिया कि राजनीति में कोई भी अजेय नहीं है और ऐसा समय आ ही जाता है जब सर्वाधिक शक्तिशाली लोग भी हार जाते हैं। इस बात में भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस ने इस सीट पर अहमद पटेल को जिताने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी। सामान्यतः अहमद पटेल की जीत में कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि कांग्रेस के पास 50 वोटों की ताकत थी, जो कि उन्हें जिताने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन अमित शाह, जिन्हें अहमद पटेल से कई हिसाब चुकता करने थे, ने उनकी जीत में रोड़ा अटकाने की एक कुटिल योजना बना ली थी। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आने वाले नेता शंकर सिंह वघेला ने अहमद पटेल की संभावित हार में प्रमुख कारक का काम किया। इसलिए कांग्रेस के छह विधायकों ने पार्टी छोड़कर भाजपा को वोट देने का आश्वासन दिया था। वास्तव में वघेला पहले से ही इन विधायकों को लेकर चिंता करने की सलाह कांग्रेस को दे रहे थे। लेकिन किसी ने भी उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया, जैसा कि कांग्रेस में अकसर होता आया है। उन्होंने इस चूक के लिए अहमद पटेल को जिम्मेदार ठहराया जो उनके अनुसार गुजरात कांग्रेस में तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं। संभवतः इसी वजह से गुजरात राज्यसभा चुनाव एकाएक देश की राजनीति के केंद्र में आ गए और दोनों ही पार्टियों के लिए यह एक सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई।

राज्यसभा के चुनावी इतिहास में इससे पहले कभी भी इस तरह की अनिश्चितता और राजनीतिक हितों का जबरदस्त टकराव देखने को नहीं मिला। चुनाव के दिन लोग रात तक जागते रहे और कुछ तो अगले दिन सुबह तक यह जानने के प्रयास में सोए ही नहीं कि अहमद पटेल का क्या हुआ? कहना न होगा कि यह एक तरह से भारत-पाकिस्तान के बीच रोमांचक क्रिकेट मैच की तरह बन गया था, जिसमें दोनों ही देशों के दर्शक मैच की आखिरी गेंद तक टीवी सेटों पर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। अहमद पटेल ने भी पल-पल बदलती सियासी परिस्थितियों को हल्के में नहीं लिया। अमित शाह को मात देने के लिए उन्होंने अपने सभी 44 विधायकों को इकट्ठा किया और उन्हें चुनाव होने तक कर्नाटक के एक रिजोर्ट में छह दिन तक रखा गया। वहां उन विधायकों के मनोरंजन के लिए नृत्य आदि रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया गया और कांग्रेस की पकड़ से कोई भी नहीं बच पाया। कांग्रेस के लिए यह करना जरूरी हो गया था, क्योंकि भाजपा डींग हांक रही थी कि कांग्रेस के छह विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं तथा वे भाजपा प्रत्याशी बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में मतदान करने वाले हैं। राजपूत भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं और भगवा दल ने उन्हें प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग की योजना बनाई थी। भाजपा द्वारा बिछाई गई इस बिसात पर एक वक्त तो यह भी लगने लगा था कि वह जीत जाएंगे और अहमद पटेल को हार का सामना करना पड़ेगा। अगर चीजों को अपने हिसाब से होने दिया गया होता तो ऐसा ही होता, लेकिन भाजपा को अति आत्मविश्वास महंगा पड़ा। वह सीधे इस गंदे खेल में खुलेआम जुट गई और उसकी रणनीति अंततः बुरी तरह से पिट गई। इसके साथ ही भाजपा ने एक और गलती कर दी। कांग्रेस के दो बागी विधायकों ने मतदान के दौरान मतपत्र अमित शाह को दिखा दिए। ऐसा करते हुए वे चुनाव आयोग के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गए।

यह तो सभी को पता था कि वे बगावत के जरिए कांग्रेस से विश्वासघात करेंगे, लेकिन भाजपा का अति आत्मविश्वास इतना था कि वह कैमरे में कैद होने के बाद ऐहतियातन भी कोई कदम नहीं उठा सकी। बाद में ये दोनों मत अवैध घोषित कर दिए गए, जिससे अहमद पटेल की जीत हो गई। कांग्रेस इस मसले को चुनाव आयोग के समक्ष ले गई, उसने एक कड़ी लड़ाई लड़ी और अंततः वह सफल हो गई। इन वोटों को चुनाव आयोग द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया, जिससे अहमद पटेल फिर चुन लिए गए। अगर हम सभी वोटों की गिनती करें तो पटेल एक मत से विजयी हो गए। जनता दल यूनाइटेड के विधायक ने व्हिप जारी होने के बावजूद अगर विपक्ष में वोट न किया होता, तो भी यह सीट चली गई होती। राकांपा ने भी एक वोट दिया तथा पटेल जीत गए। इस जीत के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ना लाजिमी है, क्योंकि कई झटके लगने के बाद उसने एक बड़ी लड़ाई जीत ली है। दूसरी ओर अमित शाह का यह भाव खत्म हो गया कि वह अजेय हैं। आम तौर पर राज्यसभा चुनाव को लेकर लोग इतने उत्सुक नहीं होते, क्योंकि दलों की विधानसभा में शक्ति के अनुसार किसकी जीत व किसकी हार होगी, इस बात का पहले ही अनुमान लगा लिया जाता है। इसके विपरीत यह चुनाव एक भयंकर लड़ाई में बदल गया तथा पूरा देश परिणाम जानने के लिए काफी देर तक टेलीविजन से चिपका रहा। दोनों दलों को भी जीत के लिए काफी पसीना बहाना पड़ा। मेरे लिए भी यह चुनाव एक सीख यह लेकर आया कि एक संस्था के रूप में राज्यसभा की उर्वरा शक्ति क्या है। हालांकि अब तक यह सदन एक प्रतिबंधक के रूप में काम कर रहा है, जहां निचले सदन के किसी भी विधेयक को रोका जा सकता है क्योंकि इस सदन में सत्तारूढ़ दल का बहुमत नहीं है। इसके अधिकतर मनोनीत सदस्य विशेषाधिकारों का प्रयोग तो करते हैं, लेकिन देश के प्रति उनका योगदान नगण्य ही होता है। इस चुनाव ने यह भी साफ कर दिया कि अगर मतपत्र व्हिप को दिखा दिया जाए तो गोपनीयता बाकी नहीं बचती है। ऐसी स्थिति में गोपनीयता भंग हो जाती है और चुनाव एक खुली जंग हो जाती है। फिर इस तरह के चुनाव क्यों होने चाहिएं? अब समय आ गया है कि भारतीय संविधान का दोबारा मूल्यांकन हो तथा राज्यसभा, राज्यों के राज्यपाल, राज्यों के उच्च सदन तथा इसी तरह के अन्य उर्वरशील संस्थानों को प्रासंगिक तथा प्रभावी बनाया जाए।

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