ग्लोबल वार्मिंग से सिकुड़ रहे ग्लेशियर

By: Aug 23rd, 2017 12:05 am

ग्लेशियरों के सिकुड़ने की घटना को वैज्ञानिकों ने गंभीरता से लिया है। परिषद के अध्ययनों से साफ प्रतीत होता है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियरों के सिकुड़ने के साथ-साथ मौसम का मिजाज भी बदल रहा है…

मनाली का स्वागत द्वार रांगड़ी क्षेत्र में 20 पंजीकृत व चार गैर-पंजीकृत होटल हैं। यह होटल प्रतिदिन 145 केएलडी सीवरेज व 0.51 सॉलिड वेस्ट वातारण में छोड़ रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हिमाचली घर प्रीणी क्षेत्र में भी कुल नौ होटल कार्य कर रहे हैं, जिनकी कुल बिस्तर क्षमता 490 है तथा ये होटल 71 केएलडी मल एवं 0.25 टीपीडी कूड़ा प्रतिदिन छोड़ रहे हैं।  वशिष्ट इलाके में भी 551 बिस्तर क्षमता वाले कुल 36 होटल प्रतिदिन 80 केएलडी सीवरेज व 0.28 प्रतिशत अनाक्षित कूड़ा वातावरण में उड़ेल रहे हैं। इसी तरह क्लब हाउस क्षेत्र में चल रहे कुल 37 होटल प्रतिदिन वातावरण में 67 केएलडी सीवरेज व 0.23 टीपीडी नष्ट न होने वाला कूड़ा छोड़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त नगर, सोलंग व कटराईं क्षेत्र में 841 बिस्तर क्षमता वाले कुल 57 होटल हैं, इनसे प्रतिदिन 122 केएलडी सीवरेज व 0.42 टीपीडी अनाक्षित कूड़ा बाहर आ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार यहां पर्यावरण की समस्या से जूझने के लिए कोई भी विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है। जीव अनाक्षित कूड़ा गलता-सड़ता नहीं है। इससे निकले रसायन के कारण पेड़-पौधे तथा वनस्पति तक सूख जाती तथा यह कचरा बीमारियों को खुला आमंत्रण है। मनाली में पर्यावरण असंतुलन की इस समस्या को देखते हुए नार्वे सरकार आगे आई तथा उसकी सहायता से यहां 1.5 करोड़ रुपए की लागत से कूड़े-कचरे का निष्पादन करने के लिए परियोजना का निर्माण किया गया है। इस परियोजना के माध्यम से शहर का कूड़ा-कचरा एकत्र कर विभिन्न प्रकार के अलग-अलग कूड़ेदानों में इकट्ठा किया जा रहा है तथा इसकी वैज्ञानिक विधि से खाद तैयार की जा रही है।

सिकुड़ते हिमालयी ग्लेशियर : हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। ग्लेशियरों के सिकुड़ने की वजह से जहां एक ओर मैदानी क्षेत्रों में पहाड़ों की अपेक्षा तापमान कम होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ों में बर्फबारी कम होने की वजह से नदियों के जल स्तर में भी गिरावट आ रही है। ग्लेशियरों के सिकुड़ने की घटना को वैज्ञानिकों ने गंभीरता से लिया है। परिषद के अध्ययनों से साफ प्रतीत होता है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियरों के सिकुड़ने के साथ-साथ मौसम का मिजाज भी बदल रहा है।

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