जीएम फसलों का जानलेवा जंजाल

By: Aug 2nd, 2017 12:05 am

भारत डोगरा

लेखक, पर्यावरणविद हैं

जेनेटिक प्रदूषण से जीएम फसलें उन अन्य किसानों के खेतों को भी प्रभावित कर देंगी, जो सामान्य फसलें उगा रहे हैं। इस तरह जिन किसानों ने जीएम फसलें उगाने से साफ इनकार किया है, उनकी फसलों पर भी इन खतरनाक फसलों का असर हो सकता है। अब तक उपलब्ध सभी तथ्यों के आधार पर यह मजबूती से कहा जा सकता है कि सभी जीएम/जीई फसलों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए, ताकि इनसे जेनेटिक प्रदूषण फैलने की कोई संभावना न रहे…

मई माह में जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेजल समिति (जीईएसी) ने व्यवसायिक उद्देश्यों से जीएम सरसों की खेती को स्वीकृत करने की अपनी संस्तुति पर्यावरण मंत्रालय को सौंप दी है। इसके साथ ही जीएम फसलों, विशेषकर जीएम खाद्य फसलों पर बहस तेज हो गई है। ध्यान रहे कि इससे पहले भारत में केवल एक जीएम फसल उगाई गई है, बीटी कपास। दूसरे शब्दों में जीएम सरसों को भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया तो यह भारत में व्यावसायिक स्तर पर उगाई जाने वाली पहली जीएम खाद्य फसल होगी। जेनेटिक इंजीनियरिंग से प्राप्त फसलों को संक्षेप में जीई फसल या जीएम (जेनेटिकली मॉडीफाइड) फसल कहते हैं। सामान्यतः एक ही पौधे की विभिन्न किस्मों से नई किस्में तैयार की जाती रही हैं। जैसे गेहूं की दो किस्मों से एक नई गेहूं की किस्म तैयार कर ली जाए। पर जेनेटिक इंजीनियरिंग में किसी भी पौधे या जंतु के जीन या आनुवंशिक गुण का प्रवेश किसी अन्य पौधे या जीन में करवाया जाता है, जैसे आलू के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या सूअर के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या मछली के जीन का प्रवेश सोयाबीन में करवाना या मनुष्य के जीन का प्रवेश सूअर में करवाना आदि। यह कार्य जीन बंदूक से पौधे की कोशिका पर बाहरी जीन दाग कर किया जाता है या किसी बैक्टीरिया में बाहरी जीन का प्रवेश कर उससे पौधे की कोशिका का संक्रमण किया जाता है। जीएम फसलें व जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीक हमारे देश में व विश्व स्तर पर भी इतनी विवादग्रस्त क्यों बनी हुई है? इस बारे में भारत सरकार महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के दौर में है। अतः हमारे भविष्य को बहुत गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले इस मुद्दे पर इन दिनों विशेष ध्यान देने की जरूरत है। विशेषकर किसानों तक इस बारे में सही तथ्य पहुंचाना बहुत जरूरी है, ताकि वे इन फसलों के बारे में निर्णय लें, तो उनके पास केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रचार न हो, अपितु सही तथ्य हों। इन फसलों को फैलाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इनके बारे में यह प्रचार बहुत किया है कि जहां ये फसलें सबसे अधिक व सबसे पहले फैली हैं, वहां उत्पादकता बढ़ी है।

पर अमरीका में इन फसलों की उत्पादकता के बारे में फें्रड्स ऑफ अर्थ ने बहुत विस्तृत अध्ययन कर बता दिया है कि यह दावे सही नहीं हैं। यूनियन ऑफ कंसर्ड साइंटिस्ट्स के अध्ययन से भी यही बात सामने आई है। विश्व के अनेक जाने-माने वैज्ञानिकों ने ‘इंडिपेंडेंट साइंस पैनल’ बनाकर इसके माध्यम से जीएम फसलों के बारे में चेतावनी दी है। इस पैनल में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया, जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा-जीएम फसलों के बारे में जिन लाभों का वादा किया था, वे प्राप्त नहीं हुए हैं। ये फसलें खेतों में बढ़ती समस्याएं उपस्थित कर रही हैं। अब इस बारे में व्यापक स्वीकृति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनेटिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है। अतः जीएम फसलों व गैर जीएम फसलों का सह अस्तित्व नहीं हो सकता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएम फसलों की सुरक्षा या सेफ्टी प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं, जिनसे इन फसलों की सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की ऐसी क्षति होगी, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है, जिसे फिर ठीक नहीं किया जा सकता है। जीएम फसलों को अब दृढ़ता से अस्वीकार कर देना चाहिए। वर्ष 2009-10 में जब बीटी बैंगन के संदर्भ में इस विवाद ने जोर पकड़ा था, तब विश्व के 17 ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों ने भारत के प्रधानमंत्री को इस विषय पर पत्र लिखकर स्पष्ट बताया कि इस विषय पर अब तक हुए अध्ययनों का निष्कर्ष यही है कि जीएम फसलों से उत्पादकता नहीं बढ़ी है। इन वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि विश्व में जीएम फसलों का प्रसार बहुत सीमित रहा है व पिछले दशक में इसकी नई फसलें बाजार में नहीं आ सकी हैं। किसान भी इन्हें स्वीकार करने से कतराते रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि जीएम तकनीक में ऐसी मूलभूत समस्याएं हैं, जिनके कारण कृषि में यह सफल नहीं है। जीएम फसलों में उत्पादन व उत्पादकता के मामले में स्थिरता कम है। 17 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के पत्र में यह भी कहा गया है कि जलवायु बदलाव के दौर में जीएम फसलों से जुड़ी समस्याएं और बढ़ सकती हैं।

जहां जीएम फसलों से उत्पादकता टिकाऊ तौर पर बढ़ने की संभावना नगण्य है, वहीं इतना निश्चित है कि किसान चंद बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर बीज पर निर्भर हो जाएंगे व उनका खर्च काफी बढ़ जाएगा। जीएम फसलें स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हो सकती हैं। इससे संबंधित ढेर सारी जानकारी उपलब्ध है व इसके बारे में जनचेतना भी बढ़ रही है। यही वजह है कि अनेक देशों में जीएम फसलों व खाद्य पर कड़े प्रतिबंध हैं। अतः पूरी संभावना है कि जहां ऐसे प्रतिबंध होंगे, वहां के बाजार का लाभ उठाने में जीएम फसल उगाने वाले किसान वंचित हो जाएंगे। यह मांग भी जोर पकड़ रही है कि जीएम उत्पाद पर इसका लेबल लगाया जाए। जीएम उत्पाद का लेबल लगा होगा, तो स्वास्थ्य के बारे में चिंतित लोग इसे न खरीदकर सामान्य उत्पाद को खरीदेंगे। इस कारण भी जीएम फसल उगाने वाले किसान की फसल कम बिकेगी या उसकी फसल को कीमत कम मिलेगी। सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा तो यह है कि जेनेटिक प्रदूषण से जीएम फसलें उन अन्य किसानों के खेतों को भी प्रभावित कर देंगी, जो सामान्य फसलें उगा रहे हैं। इस तरह जिन किसानों ने जीएम फसलें उगाने से साफ इनकार किया है, उनकी फसलों पर भी इन खतरनाक फसलों का असर हो सकता है। अब तक उपलब्ध सभी तथ्यों के आधार पर यह मजबूती से कहा जा सकता है कि सभी जीएम/जीई फसलों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए, ताकि इनसे जेनेटिक प्रदूषण फैलने की कोई संभावना न रहे। देश की कृषि, स्वास्थ्य व पर्यावरण की रक्षा के लिए यह नीति निर्णय लेना जरूरी है।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App