तीन तलाक को अब भारत में जगह नहीं

By: Aug 28th, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयर

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

कुलदीप नैय्यर यह भी हैरानी की बात है कि संविधान में समान नागरिक संहिता की व्यवस्था के बावजूद यह अब तक बना हुआ है। अब तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, वे इस मसले पर बचती रही हैं। मोदी सरकार भी यही कर सकती है। लेकिन यह कोई समाधान नहीं होगा। तीन तलाक को आज या कल जाना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिया है कि इस संबंध में संविधान की व्याख्या कैसे की जानी चाहिए…

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सख्त व बिलकुल स्पष्ट है। भारतीय संविधान की मूल व्यवस्थाओं से किसी भी सूरत में कोई समझौता नहीं हो सकता। स्वतंत्रता पर भी कोई समझौता नहीं हो सकता, क्योंकि इसी आधार पर महिलाएं व पुरुष अपनी इच्छा से जैसा वे चाहें, अपना जीवन व्यतीत करते हैं। मैं समझता हूं कि मुस्लिम समुदाय ने तीन तलाक पर पाबंदी को मंजूर कर लिया है, क्योंकि यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है। इसके बावजूद लगता है कि कट्टरवादियों का अपना अलग रास्ता हो सकता है। शाह बानो मामले में भी ऐसा ही हुआ था। वह एक मुस्लिम महिला थी। इस मामले में 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए उस परित्यक्त महिला के लिए पति की ओर से निर्वाह व्यय तय किया था। यह एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद संभव हो पाया था। तब मुसलमानों ने इस फैसले को मंजूर नहीं किया था। उनका तर्क था कि उनके वैयक्तिक कानून से संबद्ध मामलों में दखल देने का न्यायालयों के पास कोई अधिकार नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार तलाकशुदा महिला को राहत राशि तथा मेहर के द्वारा मदद का मसला शरीयत से जुड़ा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को मंजूर नहीं किया तथा उसके लिए गुजारे की राशि तय कर दी। तीन तलाक का किसी भी पंथनिरपेक्ष समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता। पाकिस्तान व बांग्लादेश समेत विश्व के अधिकतर मुस्लिम देश भी इस पर पाबंदी लगा चुके हैं। लेकिन भारत में स्थिति ऐसी है कि यहां इस मसले पर वाद-विवाद भी संभव नहीं है। अगर यहां विचार-विनिमय का प्रारूप भी बनता है तो उसे वैयक्तिक मामलों में दखल जानकर सीधे रद्द कर दिया जाता है। यहां तीन तलाक की परंपरा निर्बाध रूप से चलती रही और समाज में पुरुषों का वर्चस्व बना रहा। इसके विपरीत हिंदू पर्सनल लॉ देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हस्तक्षेप के बाद अस्तित्व में आया।

यह नेहरू ही थे जिन्होंने हिंदू धर्म में पहली बार तलाक को शामिल किया। देश भर में सम्मान प्राप्त तथा संविधान सभा के चेयरमैन डॉ. राजेंद्र प्रसाद की ओर से उन्हें भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा। अंत में इस मामले में नेहरू की जीत हुई, क्योंकि सरकारी मशीनरी पर उनका नियंत्रण था। मुसलमान भी दशकों तक इसी तरह की चुनौती का सामना कर चुके हैं। तीन तलाक को कुरान में मान्यता नहीं मिली हुई है, लेकिन इसके बावजूद यह लंबे समय से अस्तित्व में रहा है। कुछ मुस्लिम महिलाओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तथा गुजारिश की कि इस संबंध में लैंगिक समानता का सम्मान किया जाना चाहिए। सरकार ने इस विषय पर आम सहमति बनाने के लिए एक प्रश्नावली जारी करने की सोची, पर वह ऐसा करने से बचती रही। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस अभियान का विरोध किया। हैरानी इस बात की है कि इस बोर्ड में कोई महिला सदस्य नहीं है और वह महिलाओं से विचार-विमर्श के बिना आचार-व्यवहार के नियम बनाता चला गया। इससे मुस्लिम महिलाओं में नाराजगी बढ़ती गई और बोर्ड ऐसी नीति पर चलता रहा, जिसे महिलाओं का समर्थन हासिल नहीं था। इस तरह कट्टरवादियों की चलती रही। अब कभी न कभी इस मसले को संसद में आना है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय के कई वर्ग और दूसरे लोग इस तरह की स्थिति से आंदोलित हैं। मुस्लिम महिलाएं सामाजिक बहिष्कार कर रही हैं। दूसरी ओर मुस्लिम पुरुषों का अभी भी वर्चस्व है। हालांकि वे स्वीकार करते हैं कि पैगंबर चाहते थे कि महिला तथा पुरुष दोनों से समान व्यवहार हो। फिर भी जब इस संबंध में कानून बनाने की बारी आती है, तो बोर्ड परवाह नहीं करता। इस विषय पर विचार-विनिमय कैसे किया जा सकता है, जबकि लोगों का मत जानने के लिए प्रश्नावली जारी करने के खिलाफ खुद पर्सनल लॉ बोर्ड खड़ा है। देश भर में कई स्थानों पर महिलाएं प्रदर्शन कर चुकी हैं तथा मांग कर रही हैं कि उनसे भी सलाह ली जानी चाहिए।

नरेंद्र मोदी सरकार कोई कदम उठाने से आनाकानी कर रही है, जिसके कारण गलतफहमी हो रही है। इस मसले को इस बिंदु पर छोड़ा नहीं जा सकता। अब संसद को इस विषय में पहल करनी चाहिए। दोनों सदनों में इस विषय पर बहस होनी चाहिए, ताकि यह पता चले कि इस विषय में समाज, विशेषकर महिलाएं क्या सोचती हैं। चुनावी हितों के कारण राजनीतिक दल इस विषय पर चुप रहना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मुसलमान चुनावों को प्रभावित करते हैं। उत्तर प्रदेश में ही लोकसभा की 80 सीटें हैं जहां काफी मुसलमान रहते हैं। उदाहरण के तौर पर जब तक समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का इस समुदाय में सम्मान था, वे उनके वोट हासिल करते रहे। मुसलमान कांग्रेस से ठगा हुआ महसूस करते हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में सत्ता विरोधी स्वाभाविक लहर चलने के कारण अखिलेश यादव हार गए, जबकि उनके साथ आजम खां जैसे मुस्लिम नेता जुड़े हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, जो अकसर अपने भाषणों में अविवेकी लगते हैं, मुसलमानों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करते हैं। लेकिन वह जनता में लोकप्रिय नहीं हैं। अतः कांग्रेस का नेतृत्व सोनिया गांधी को ही करना होगा। अब यह मसला भी नहीं रहा है कि वह इटली से हैं। लोगों की भीड़ जुटाने में भी वह राहुल गांधी से कहीं आगे हैं। यह कांग्रेस के लिए एक चुनौती है, क्योंकि उसने उस राहुल के जिम्मे कांग्रेस को छोड़ दिया है जो लोगों में लोकप्रिय नहीं हैं। वास्तव में उनकी बहन प्रियंका बढेरा का उनकी अपेक्षा ज्यादा लोकप्रिय चेहरा है। यह शर्म की बात है कि एक पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में अभी भी तीन तलाक अस्तित्व में है, जिससे समुदाय में पीड़ा का डर बना रहता है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी मुस्लिम विधवाओं को गुजारा भत्ता तय करने के लिए कानून बनाने में विफल रहे। इसने अनावश्यक रूप से बाबरी मस्जिद विरोधी आंदोलन के लिए ईंधन का काम किया और पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल में इसे ढहा दिया गया। बाकी सब कुछ अब इतिहास है।

इसी तरह अब तीन तलाक बना नहीं रह सकता, क्योंकि यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है। यह भी हैरानी की बात है कि संविधान में समान नागरिक संहिता की व्यवस्था के बावजूद यह अब तक बना हुआ है। अब तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, वे इस मसले पर बचती रही हैं। मोदी सरकार भी यही कर सकती है। लेकिन यह कोई समाधान नहीं होगा। तीन तलाक को आज या कल जाना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिया है कि इस संबंध में संविधान की व्याख्या कैसे की जानी चाहिए। मुस्लिम समाज का नेतृत्व कर रहे कट्टरवादी उसे गुमराह कर रहे हैं। दुर्भाग्य से इस मसले में राजनीति भी घुस गई है। सत्तारूढ़ भाजपा की नजर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों पर टिकी है। बहुलतावाद को कोई क्षति नहीं होनी चाहिए। संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित पंथनिरपेक्षता तथा लोकतांत्रिक प्रणाली का अगर अनुगमन किया जाए, तो सुप्रीम कोर्ट अथवा किसी अन्य न्यायालय को हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ेगी।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com

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