देश की दृष्टि में हिमाचल

By: Aug 22nd, 2017 12:05 am

हिमाचल के राष्ट्रीय दृष्टि में आने के संयोग इस बार चुनाव के लिए अगर पुख्ता होते हैं, तो इसके आलोक में प्रदेश को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जा सकता है। विडंबना यह है कि दिल्ली के गलियारों में आज भी पहाड़ की छवि को ‘मुंडू’ बनाकर ही समझा जाता है, जबकि हिमाचल के उल्लेखनीय पक्ष की वकालत नहीं होती। इसीलिए सांसद अनुराग ठाकुर ने प्रदेश के संदर्भ में मीडिया पर जब संसद में प्रश्न उठाया, तो देश भी समझा कि पर्वत की चीख क्या होती है। कमोबेश हर सांसद अब अपनी भूमिका के राष्ट्रीय अर्थों को अनावृत करने की कोशिश कर रहा है, तो बहस के मसौदे नया आकार ले रहे हैं। हिमाचल को समझने की कोशिश यूं तो हर प्रधानमंत्री ने की, फिर भी जिन राहों पर अटल बिहारी वाजपेयी चलते हुए प्रीणी पहुंचे या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश का हुलिया देखा, उस पर राष्ट्रीय दृष्टि का इंतजार बढ़ जाता है। यही राष्ट्रीय दृष्टि अगर चुनावी मायनों में सक्रिय हो सकती है, तो फिर ठिठके कदमों की वास्तविकता भी जाननी होगी। आश्चर्य यह कि राष्ट्रीय बहस में जानवरों की रक्षा का बीड़ा उठाने वाला मीडिया, हिमाचल सरकारों को बंदरों के खिलाफ लिए गए फैसलों पर कोसता है, लेकिन किसानों-बागबानों के दर्द को जानने की कोशिश तक नहीं करता। पूर्व में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कोशिश की और अब मौजूदा सरकार ने खूंखार बंदरों को मारने की अनुमति दी, तो राष्ट्रीय चैनल पूरे प्रदेश को अमानवीय घोषित करने की शब्दावली ढूंढ लेते हैं। देश की शहादत में तीस फीसदी हिमाचलियों की शुमारी का जिक्र नहीं होता, लेकिन चर्चाएं सीना फुलाकर देश के अशांत क्षेत्रों पर राष्ट्रीय दृष्टि बनाती हैं। यह दीगर हे कि पहली बार राष्ट्रीय एसटी कमीशन के अध्यक्ष धर्मशाला आकर गद्दी समुदाय के प्रश्नों को खंगालते हैं, तो देश की दृष्टि में हिमाचल दिखाई देता है। हम भले ही मसलों की प्रासंगिकता में राजनीति का पुट देखें या गद्दी मामले में उतर आए शक्ति परीक्षण को भांप लें, लेकिन इस सारे प्रयास ने त्रिलोक कपूर को राष्ट्रीय दृष्टि के बड़े कैनवास पर जरूर देखा होगा। जब तक हिमाचली राजनीति का चरित्र राष्ट्रीय लहरों को नहीं पहचानेगा, प्रदेश के प्रति सोच-समझ की दरिद्रता समाप्त नहीं होगी। यह अलग बात है कि हिमाचल की क्षमता में देश को कर्मठ नेता मिले, तो यह राज्य अपनी सफलताओं का मॉडल बनाता गया। कहना न होगा कि कमोबेश अब तक के हर मुख्यमंत्री के विजन की छाप में हिमाचल आगे बढ़ा है और इसीलिए पहाड़ी राज्यों के सामने यह एक आदर्श है, फिर भी देश का आईना हमारे सामने नहीं आता। ऐसे में आगामी चुनावों की गैर राजनीतिक पड़ताल में सच और झूठ के बीच अगर अंतर समझना है तो देश की दृष्टि में पूरे अभियान को देखना होगा। बेशक प्रदेश के अस्तित्व में केंद्रीय योजनाओं का काफी लेखा-जोखा समझ में आता है, लेकिन हिमाचल की दृष्टि में आगे बढ़ने की नसीहतें भी नत्थी हैं। आगामी चुनाव में बहस और मुद्दे बटोरती राजनीतिक तकरीरों में देश के सामने नई तस्वीर क्या होगी, इस पर भी मंथन होना चाहिए। उदाहरण के लिए शांता कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री विद्युत उत्पादन में मुफ्त बिजली का हक हासिल किया, तो राष्ट्रीय फलक पर यह नीति बन गई। देश की नीतियों में हिमाचल के योगदान में कई नेता पहचाने गए। प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने कार्बन क्रेडिट व पोलिथीन मुक्त हिमाचल की जो कल्पना की, वह राष्ट्रीय दृष्टि में अनिवार्यता बन चुकी है। ऐसे में आगामी चुनाव की परिधि में सत्ता और विपक्ष के बीच भी विजन की प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। देश हिमाचल को किस तरह देखता है, यह यहां के चुनावी सफर की कहानी बन सकती है, बशर्ते राजनेता राष्ट्रीय धमनियों के साथ जुड़कर अपने वजूद को तराशें और पहचान बनाएं।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App