न्याय की लाठी से घुटनों पर बाबा

By: Aug 29th, 2017 12:02 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

सच्चा सौदा डेरे के चेलों द्वारा एक हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद अंततः गुरमीत राम रहीम को 10 साल की सजा सुना दी गई है। नागरिकों को भी चाहिए कि वे सामाजिक सौहार्द में वृद्धि और विकास रूपी रथ के सारथी बनें, न कि अपने ही प्राणों को जोखिम में डालकर राष्ट्र की प्रगति में बाधक बनें…

सच्चा सौदा डेरे के चेलों द्वारा एक हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद अंततः गुरमीत राम रहीम को 10 साल की सजा सुना दी गई है। इससे पहले 25 अगस्त से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और खासकर सिरसा तथा पंचकूला शहरों में डेरा सच्चा सौदा के कथित समर्थकों ने मीडिया की मौजूदगी में हिंसा और आगजनी का जो तांडव किया, उसे भारत सहित समस्त विश्व के लोगों ने देखा। डेरे के गुंडों के उस वीभत्स व अलोकतांत्रिक कृत्य की घोर निंदा हुई। यह बेहद आश्चर्यजनक है कि हरियाणा सरकार ने डेरामुखी गुरमीत राम रहीम की पंचकूला में सीबीआई की विशेष अदालत में पेशी के चलते उनके अंध समर्थकों की मौजूदगी और संभावित हिंसा की खुफिया सूचनाओं के बावजूद कोई भी एहतियाती कदम न उठाकर नेताओं और तथाकथित फर्जी बाबाओं के गठजोड़ की बातों को ही उजागर किया है। हजारों की संख्या में मौजूद डेरा समर्थकों ने पंचकूला में जिस प्रकार से निजी एवं सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, स्थानीय आबादी के प्राणों को संकट में डाला है, उसके लिए बाबा के बाद अब उनके उत्पाती चेलों को भी सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए। अफसोस तब और बढ़ जाता है, जब हरियाणा की खट्टर सरकार ने जाट आंदोलन और कथित स्वयंभू संत रामपाल के समर्थकों की हिंसात्मक घटनाओं से भी क्यों नहीं कोई सबक सीखा? भारत में फर्जी बाबाओं और विवादों का पुराना नाता रहा है। हरियाणा के सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम इस कड़ी में अगले शख्स हैं, जिन पर उनकी एक महिला अनुयायी ने अप्रैल, 2002 में यौन शोषण का आरोप लगाया था।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा। सीबीआई ने सितंबर, 2007 को डेरामुखी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर एफआईआर दर्ज की। अगस्त, 2008 से पंचकूला में विशेष सीबीआई अदालत में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान दोनों तरफ से 150 से ज्यादा गवाह पेश किए गए। 17 अगस्त, 2017 को बहस खत्म हुई और 25 अगस्त को अदालत ने डेरामुखी इस मामले में दोषी करार दिया है। बाबा को दोषी करार देने के साथ ही बाबा के कथित चेले क्रोध में आ गए आगजनी तथा हिंसा की घटनाओं को अंजाम देते हुए कई जगह हिंसात्मक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। भारत पिछले लगभग 50 वर्षों से लगातार विकासशील देशों की श्रेणी में ही खड़ा है। हां, ये खबरें जरूर मन को तसल्ली देती हैं कि आज भारत दुनिया के तेज आर्थिक विकास करने वाले देशों में है, परंतु अफसोस यह कि आज भी विकास का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पाया है। हमारी धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक चुनौतियां भारत की गरीबी और विकास से संबंधित जरूरतों को और तकलीफदेह बना रही हैं। आज जरूरत इस बात की है कि जनता जनार्दन जिन अपराधी नेताओं तथा कथित स्वंयभू संतों को बचाने के लिए उनके पीछे खड़ी हो जाती है, अगर यही लोग इन नेताओं को विकास के नाम पर फोरलेनिंग, ब्रॉडगेज रेल, बुलेट ट्रेन, चौड़ी-पक्की गलियों, उत्तम स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार संबंधी सुविधाओं के लिए इनका घेराव करे तो कुछ बात भी बने। लेकिन अच्छी शिक्षा के अभाव में भेड़चाल का हिस्सा बनकर यही भीड़ अपने द्वारा ही चुकाए गए टैक्स से बनी सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाकर खुद अपना नुकसान करती है।  इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विश्व में संभवतः भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा, जहां प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक भक्ति और धार्मिक आस्था सर्वाधिक प्रचलन में है।

हमारी धार्मिक पुस्तकें ज्ञान एवं नैतिकता जैसे मूल्यों का अनुपम भंडार हैं, जिनसे पूरा वैश्विक समाज भी लाभान्वित हो रहा है। मानवीय मूल्यों एवं नैतिकता में आ रही गिरावट और मानव मनों में बढ़ती अहंकार भावना हमें हमारे पुरातन संस्कृतिजन्य मूल्यों एवं आदर्शों से भटका रही है। स्वयं को ही भगवान घोषित करने वाले पाखंडी और आपराधिक प्रवृत्ति के बाबाओं से बचने की जरूरत है। राधे मां, रामवृक्ष यादव, जाकिर नाईक, रामपाल, आसाराम बापू, नित्यानंद, निर्मल बाबा जैसे अनेक तथाकथित ढोंगी अपने बेढंगे, बेहूदे और भोंडे आचरण द्वारा सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा देते नजर आते हैं। इसकी वजह बिलकुल साफ है कि इनको ऐसे कृत्यों को अंजाम देने के लिए खाद-पानी भी हमारी अर्द्धशिक्षित, अविवेकी और अशिक्षित जनता ही उपलब्ध करवाती है। नागरिकों को चाहिए कि वे सामाजिक सौहार्द में वृद्धि और विकास रूपी रथ के सारथी बनें, न कि अपने ही प्राणों को जोखिम में डालकर राष्ट्र की प्रगति में बाधक बनें। आज जरूरत इस बात की भी है कि सरकारें एक नए राष्ट्रीय एजेंडे को सामने लाएं और अपने नागरिकों में एक राष्ट्रीय चरित्र को विकसित करने की चुनौती को स्वीकार करें, जहां विकसित भारत की अवधारणा सर्वोपरि हो। देश में उत्पादकता बढ़ाने पर जोर होना चाहिए जो प्रतिस्पर्धा पर आधारित हो। कानून एवं व्यवस्था के मसलों को वोट बैंक की राजनीति से परे रखा जाना चाहिए। लोगों को ऐसे नेताओं के चरित्र एवं इरादों को परखना होगा, जिनमें दूरदृष्टि, विजन और सकारात्मक नजरिए की घोर कमी होती है और जिनका एकमात्र लक्ष्य जीतना भर होता है। ऐसे नेता महज चुनावी प्रबंधन की बैसाखियों के बलबूते सत्तासुख भोगते हैं और ठगी हुई आम जनता वहीं की वहीं खड़ी रह जाती है। समय बदला है, हालात बदले हैं और बदलाव के इस दौर में जनता को भी अपनी सोच बदलनी होगी।

ई-मेल : rmpanuj@gmail.com

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