फलसफा
ज़िंदगी मुझे बता तेरा फलस़फा क्या है
तड़प कर मर जाना अब ये सिलसिला क्या है
तेरी बज्म में क्यों तकलीफ मिलती है
जड़ें कटीं तो कली भी नहीं खिलती है
सा़की ज़रा ठहरो कुछ सुकून आने दो
पीने-पिलाने का सिलसिला बाद में होगा
तुम्हारी ये जुल़्फ, नाजों पेंचों खम
यहीं निकलेगा तो निकलेगा दम
कभी हंसी न देखी मासूम चेहरे पर
खंजर चलाना है, चलाओ दिल पर
जब्त लो अब अपनी वहशत पर
ज़माना है कहीं बदनाम न कर दे
न खंजर चलाते न घायल ही होता
ऐ! जख्मी दिल बताओ कहां जाऊं
रूह भटकेगीकूचों की हवाओं में
जख्म हैं गहरे भरेंगे तेरी अदाओं से
जिस्म तो फना होगा रूह भटकेगी
बता अब इस दिल का क्या करूं
अकेला दिल परेशां सा नजर आता
क़फस को तोड़कर अर्श में उड़ जाऊं
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