बच्चों की मौत पर शर्मनाक सियासत

By: Aug 25th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंह300 वर्ग मीटर में फैला गोरखपुर का यह अस्पताल राज्य का एकमात्र मल्टी स्पेशियलिटी तथा एम्स जैसा चिकित्सा संस्थान है। इस अस्पताल में इलाज के लिए नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों से भी लोग लाए जाते हैं। जब तक उन्हें अस्पताल में पहुंचाया जाता है, तब तक स्थिति अनियंत्रित हो जाती है तथा इससे निपटना मुश्किल हो जाता है। मुझे यह सोचकर शर्म आती है कि एक देश, जो चांद पर पहुंच चुका है तथा बुलेट टे्रन लाने की बातें कर रहा है, वहां लोगों की बेहतर सेहत के लिए पर्याप्त अस्पताल तक नहीं हैं…

उत्तर प्रदेश में इन दिनों जो कुछ भी हो रहा है, उससे लगता है कि प्रशासन और राजनेताओं में मानवता व संवेदना नहीं बची है। मैं ट्विटर पर एक वरिष्ठ व प्रतिष्ठित पत्रकार का ट्वीट पढ़कर सचमुच ही व्यथित व दुखी हो गया। उन्होंने सवाल उठाया कि कितने बच्चों के शव कब्र में भेजे गए और कितनों का दाह संस्कार हुआ। एक के बाद एक शव अस्पताल से बाहर आते हमने देखे और इस त्रासदी पर व्यवस्था की तरफ से लीपापोती की कोशिश भी हुई। इसी तरह प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि जुलाई व अगस्त के महीनों में बच्चों की इतनी मौतें होती ही हैं। मंत्री महोदय का यह बयान साफ दर्शाता है कि हमारे मंत्रियों में भी सावधानी व दायित्व का भाव नहीं बचा है। इसमें कोई शक ही नहीं कि उनका वक्तव्य तथ्यात्मक रूप से सही है, लेकिन यह समय इस तरह के आंकड़े बताने के लिए उपयुक्त नहीं था। फिलहाल ऐसे स्पष्टीकरण की भी कोई जरूरत नहीं थी कि हमने औरों से बेहतर काम किया तथा दूसरी सरकारों ने हमसे कमतर काम किया। इस तरह के संकटपूर्ण समय में हर किसी को स्थिति संभालने का काम करना चाहिए, ताकि और अधिक क्षति से बचा जा सके तथा बीमार लोगों का जरूरी उपचार किया जा सके। इसके बजाय कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं ने अस्पताल के दौरे शुरू कर दिए तथा उन्होंने मात्र सरकार का विरोध के लिए ही विरोध किया। इस पूरे प्रकरण में सबसे खराब भूमिका मीडिया की रही, जिसने सभी गलत खबरें दीं तथा त्रासदी को लेकर अफवाहें फैलाने का काम किया। मीडिया ने पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट के मुखिया डा. कफील खान का बचाव करते हुए उन्हें नायक की तरह पेश किया, जबकि बाद में वह खलनायक बनकर उभरे और अब निलंबित चल रहे हैं। डाक्टर कफील बीआरडी मेडिकल कालेज के बालरोग विभाग के अध्यक्ष थे। वह नीओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट के प्रमुख थे। इस प्रकरण के बाद उन पर निजी क्लीनिक चलाने के भी आरोप लगे हैं। गोरखपुर के स्थानीय अस्पताल में अब तक 60 से अधिक बच्चे मर चुके हैं तथा अभी और खतरे की आशंका बनी हुई है।

यह एक सत्य है कि जैपनीज इन्सेफ्लाइटिस (दिमाग का बुखार) रोग का यह मसला पिछले काफी समय से चिकित्सा प्रशासन को परेशान किए हुए है। पिछले करीब दो दशकों से सरकार इस घातक बीमारी से लड़ रही है तथा इससे उबरने का प्रयास भी वह कर रही है। वर्ष 1978 में अस्पताल में 5737 बीमार बच्चे दाखिल किए गए, जिनमें से 1344 की मौत हो गई। यह कहा जा सकता है कि अस्पताल में लाए गए कुल बीमार बच्चों में से 20 फीसदी बच्चे बच नहीं पाते हैं और काल का ग्रास बन जाते हैं। स्पष्ट रूप से यह एक गंभीर मामला है। जरूरत इस बात की है कि इस तरह के रोगों से लड़ने के लिए राष्ट्र स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिएं। रोगों से बचाव के लिए रणनीति बनानी होगी तथा व्यापक प्रबंध किए जाने चाहिए। इसके साथ चिकित्सा क्षेत्र में भी शोध व अनुसंधान की विशेष अपेक्षा है। यह एक वास्तविकता है कि गोरखपुर और इसके साथ लगते क्षेत्रों का प्रबंधन अच्छा नहीं है तथा यहां नागरिक सुविधाओं व स्वच्छता का अभाव है। वास्तव में इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता देने तथा स्वच्छ भारत अभियान को लागू करने की सख्त जरूरत है। यह काम एक बार अभियान चलाने मात्र से होने वाला नहीं है। वास्तव में यहां बरसात के दौरान निरंतर सफाई करने और स्वच्छता का संदेश देने की जरूरत है। ऐसे गंदगीयुक्त क्षेत्र उन मच्छरों के लिए उर्वर भूमि बनते हैं जो कि बीमारियां फैलाते हैं। यह दुखद तथा खतरनाक है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन स्वच्छता के उच्च मापदंड स्थापित करने की दिशा में कम ही ध्यान दे रहा है। यह सरकार व मुख्यमंत्री का दायित्व बनता है कि वह हर शहर व कस्बे में स्वच्छता अभियान के लिए विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों तथा कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करें। वाराणसी पर हमारी एक रिपोर्ट में मैंने प्रधानमंत्री को सख्त सुझाव दिया था कि देश का शहरी प्रबंधन दयनीय स्थिति में है, जहां उत्तरदायी नागरिक नेतृत्व को विकसित करने के लिए नया सांगठनिक डिजाइन बनाने की जरूरत है। इस अस्पताल में दयनीय नागरिक स्वच्छता प्रशासन के अलावा आक्सीजन की उपलब्धता न होना भी चिंताजनक है।

दुखद यह है कि सरकार तथाकथित आउटसोर्सिंग सिस्टम के माध्यम से निजी पार्टियों से आक्सीजन का प्रबंध कर रही थी, जिन्होंने राशि का भुगतान न होने के कारण सप्लाई पूरी नहीं की। सरकार ने आक्सीजन के निर्माताओं से सीधी खरीद करने के बजाय बिचौलिए वाला भ्रष्ट सिस्टम बनाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस तरह के कुप्रशासन की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते और अब इस दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत है। योगी जब संसद में थे, तो वह 1978 से ही इस तरह के सिस्टम का विरोध करते रहे हैं, लेकिन राज्य में उनके अपने राज में इस तरह का भ्रष्ट प्रशासन चल रहा है। राज्य में टीकाकरण की स्थिति भी ठीक नहीं है। सरकार का दावा है कि राज्य में सौ फीसदी टीकाकरण हो चुका है, जबकि एक निजी एजेंसी का दावा है कि यह आंकड़ा मात्र 20 फीसदी है। अगर सौ फीसदी टीकाकरण हो गया होता तो स्थिति इतनी भयंकर नहीं होनी चाहिए थी, जितनी दिख रही है। उत्तर प्रदेश शासन-प्रशासन चाहें, तो इससे सबक लेकर स्वास्थ्य तंत्र में सुधार के लिए पुख्ता तैयारी कर सकती है। इसके अलावा दूसरे राज्यों को भी इस तरह की त्रासदी से बचने के लिए अभी से गंभीर हो जाना चाहिए। मेरे लिए यह आश्चर्य का विषय है कि 300 वर्ग मीटर में फैला गोरखपुर का यह अस्पताल राज्य का एकमात्र मल्टी स्पेशियलिटी तथा एम्स जैसा चिकित्सा संस्थान है। इस अस्पताल में इलाज के लिए नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों से भी लोग लाए जाते हैं। जब तक उन्हें अस्पताल में पहुंचाया जाता है, तब तक स्थिति अनियंत्रित हो जाती है तथा इससे निपटना मुश्किल हो जाता है। मुझे यह सोचकर शर्म आती है कि एक देश, जो चांद पर पहुंच चुका है तथा बुलेट टे्रन लाने की बातें कर रहा है, वहां लोगों की बेहतर सेहत के लिए पर्याप्त अस्पताल तक नहीं हैं।

बस स्टैंड

पहला यात्री : कांगे्रस ने शिमला व धर्मशाला में परस्पर विरोधी वक्तव्य देने के लिए शिंदे जी को हिमाचल का प्रभारी क्यों बनाया?

दूसरा यात्री : यह उनके पैरों के नीचे जमीन का प्रभाव है, आप नहीं जानते कि वह दिल्ली में क्या कहेंगे?

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