बुढ़ापे की चिंता बढ़ाती नई पेंशन प्रणाली

By: Aug 1st, 2017 12:02 am

तिलक सिंह सूर्यवंशी

लेखक, सिहुंता, चंबा से हैं

पेंशन इसलिए जरूरी होती है कि बुढ़ापे में जीवन बिताने के लिए किसी दूसरे के आगे भीख न मांगनी पड़े। लेकिन जिस प्रकार नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत कर्मचारियों की व्यथा सामने आई है, उससे लगता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बुढ़ापा पेंशन नहीं, बल्कि बेरोजगारी व कौशल भत्ता दिया जा रहा है…

किसी भी देश अथवा राज्य की अर्थव्यवस्था की समृद्धि का अंदाजा लगाने का एक तरीका उसमें सेवारत सरकारी कर्मचारियों की स्थिति को भी माना जा सकता है। सरकारी कर्मचारी किसी भी देश के विकास की रीढ़ माने जाते हैं, परंतु यदि वही रीढ़ कमजोर स्थिति में होगी तो उस देश अथवा राज्य के स्वस्थ होने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है। जिस प्रकार आए दिन कर्मचारी संगठनों द्वारा पुरानी पेंशन बहाली की मांग प्रमुखता से समाचार पत्रों में आ रही है, यह कहीं न कहीं हर उस देशवासी की मांग है जो सरकारी सेवाओं में है अथवा आने की उम्मीद लगाए बैठा है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ही इसी तरह से भारतीय कर्मचारियों के शोषण की मिसाल देखी जा सकती थी। कर्मचारियों, अधिकारियों द्वारा चयन प्रक्रिया की योग्यताओं को पूरा करने के बावजूद इन्हें कई विसंगतियों का शिकार होना पड़ रहा है। अस्थायी नौकरियों का प्रावधान, अनुबंध श्रेणी में नियुक्ति, ऊपर से नियमित कर्मचारियों के आधे के बराबर पगार देना, सरकारी पेंशन का अभाव जैसी विकट समस्याएं कहीं न कहीं सेवारत कर्मचारियों, अधिकारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ व मानसिक प्रताड़ना का सूचक मानी जा सकती हैं। ऐसे कर्मचारियों के लिए नौकरी के दौरान न तो जीपीएफ, ग्रेच्युटी, पारिवारिक पेंशन, डेथ ग्रेच्युटी जैसी सुविधाओं का कोई प्रावधान है और न ही इनके लिए आर्थिक सुरक्षा की कोई गारंटी है।

सेवा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बुढ़ापे के दौरान पेंशन को माना जाता है। दुर्भाग्यवश सरकार ने इससे भी मुंह मोड़ लिया है और सरकारी मुलाजिमों को शेयर मार्केट व बीमा कंपनियों के हवाले कर दिया है। अगर सेवानिवृत्ति के बाद किसी कर्मचारी को अपनी आय-व्यय संबंधी जानकारी चाहिए होगी, तो उसे सरकार से नहीं, बल्कि बीमा कंपनी से ही संपर्क कर अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी होगी। दूसरी तरफ एक विधायक, सांसद आज शपथ ले तो उसके तुरंत बाद से ही पेंशन पाने का पात्र बन जाता है, भले वह एक दिन या पांच वर्ष राज करे। इसके साथ इनके लिए तमाम सुविधाओं, गाड़ी की व्यवस्था, फ्री टेलीफोन, यात्रा भत्ता, बच्चों के लिए शिक्षा, चिकित्सा और भरपूर वेतन जैसी सुविधाओं की व्यवस्था का प्रावधान सुनिश्चित है। दूसरी ओर भारत का वह आम नागरिक है, जो अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर महंगी व उच्च शिक्षा दिलाने के बाद सरकारी नौकरी का सपना देखता रहता है। कड़ी प्रतिस्पर्धा में जो भी सौभाग्यशाली लोग सरकारी नौकरी पाने में सफल होते हैं, वे बुढ़ापे के समय पेंशन से वंचित हैं। यह रवैया कहीं न कहीं भारत के लोक कल्याणकारी राज्य एवं संवैधानिक प्रक्रिया पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता दिखाई देता है।

 आज की इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पूरी शिक्षा हासिल करने के बाद लगभग 30-35 वर्ष की आयु में सरकारी सेवाएं देने का मौका मिलता है। तीन वर्ष तक अनुबंध में रहते हुए जो पैसा वह कमाता है, वह शादी करने में खर्च हो जाता है। जब नियमित होने का सौभाग्य मिलता है, तो वह मकान, जमीन का लेन-देन और बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा, शादी करवाने के लिए सारी दौलत खर्च देता है। बुढ़ापे का सहारा पेंशन को माना जाता है, जिसके लिए उसने अपनी पूरी उम्र दूसरों की सेवा में कुर्बान कर दी होती है। पेंशन इसलिए भी जरूरी होती है कि बुढ़ापे में जीवन बिताने के लिए किसी दूसरे के आगे भीख न मांगनी पड़े। वर्तमान समय में महंगाई जिस तेजी से बढ़ रही है, उसमें यह जरूरी हो जाता है कि सेवानिवृत्त कर्मियों को सम्मानजनक पेंशन मिले। लेकिन जिस प्रकार नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत कर्मचारियों की व्यथा सामने आई है, उससे लगता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बुढ़ापा पेंशन नहीं, बल्कि बेरोजगारी व कौशल भत्ता दिया जा रहा है। बहरहाल हर सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारी की मांग है कि पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः बहाल किया जाए। अगर ऐसा होता है तो कर्मचारी व इस प्रणाली में आने वाले इच्छुक लोगों में सरकारी कामकाज के प्रति निष्ठा, लगन और पूरी तन्मयता के साथ प्रतिस्पर्धा लांग कर सरकारी ढांचे को मजबूत करने में योगदान दे सकेंगे।

15 मई, 2003 को केंद्र सरकार के आदेशानुसार, पुरानी पेंशन बंद करने और उसके स्थान पर नई पेंशन व्यवस्था संबंधी आदेशों का विरोध उस समय कर्मचारियों ने शायद इसलिए नहीं किया होगा, क्योंकि इसके दूरगामी परिणामों की जानकारी से उक्त कर्मचारी वर्ग अनभिज्ञ रहा होगा। वर्तमान में उस वर्ग के लोगों की सेवानिवृत्ति का दौर शुरू हुआ है और उनको मिलने वाली मासिक पेंशन को देखकर हर कोई हक्का-बक्का रह जाता है। उसके मद्देनजर पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग उठना स्वाभाविक ही है। बहरहाल हमारे अपने राज्य के वर्तमान संरक्षकों पर कर्मचारी, अधिकारी आस लगाए बैठे हैं कि नेताओं की तरह कर्मचारियों को भी सम्मानजनक जीवन जीने का हक मिले व आर्थिक शोषण से निजात मिले। इस पुनीत कार्य के लिए मेरे विचारों से सभी राजनीतिक दलों, विपक्षी दलों व नौकरशाही पर आसीन लोगों को पुरानी पेंशन बहाली के लिए एकमत होकर तुरंत एवं प्रभावी निर्णय लेने की आवश्यकता है, ताकि कर्मचारियों की मुनाफाखोरी पर लगाम लगाकर आर्थिक असमानता से भी निजात मिल सके। इससे पहले कर्मचारियों को अपनी इस मांग को मनवाने के लिए हड़ताल या आंदोलन का रुख करने पड़े, जरूरी है कि सरकार को चुनावी प्रक्रिया से पहले अपनी नीति स्पष्ट कर कर्मचारी हितैषी होने का परिचय देना चाहिए। उम्मीद है कि सरकार जल्द इस विषय पर कोई सार्थक निर्णय लेगी।

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