मौत से भी बचा लेता है यह मंत्र

By: Aug 19th, 2017 12:05 am

शिवयोगी ने सुमिति को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने की सलाह दी। उन्होंने अभिमंत्रित भस्म को बच्चे के शरीर से लगाया, जिससे बच्चा जीवित हो उठा…

भारत में आदिकाल से ही तंत्र-मंत्र का प्रयोग होता रहा है। अनेक प्रकार की ब्याधियों से मुक्ति के लिए धार्मिक ग्रंथों में अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। इसी क्रम में इस बार हम महामृत्युंजय मंत्र की महिमा का बखान करेंगे। प्राचीन काल में दशार्ण देश (वर्तमान में मध्य प्रदेश) के राजा बज्रबाहु की सुमिति नाम की पटरानी थी। एक बार जब वह गर्भवती थी तो उसे उसी के महल की दासी ने जहर दे दिया। भगवत कृपा से उसका गर्भस्थ भू्रण विनष्ट नहीं हुआ, किंतु वह व्रणयुक्त हो गया। फलतः जिस बालक का जन्म हुआ, उसका शरीर भी व्रण से मरा हुआ था। दोनों मां-बच्चे का जिस्म घावों से भर गया। राजा ने अनेक उपचार किए, किंतु कुछ भी लाभ नहीं हुआ। इसी कारण राजा को अपनी पत्नी पर गुस्सा भी आ गया और उसने आक्रोश स्वरूप उसे दंड भी सुना दिया। अंत में सुमिति ने दुखी होकर भगवान शिव से अपने घावों को दूर करने के लिए प्रार्थना की। उसकी करुणामय कातर वाणी से दयामय आशुतोष का आसन हिल उठा। शिवयोगी प्रकट हुए और उन्होंने सुमिति को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने की सलाह दी। उन्होंने अभिमंत्रित भस्म को उसके तथा उसके बच्चे के शरीर से लगा दिया। भस्म के स्पर्श मात्र से ही उसकी सारी व्यथा दूर हो गई और मृत बालक पुनः जीवित हो उठा। शिवयोगी ने बालक का नाम भद्रायु रखा। सुमिति और भद्रायु दोनों महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे। उधर राजा बज्रबाहु को अपनी निर्दोष पत्नी तथा पुत्र को कष्ट देने का दंड भुगतना पड़ा। उसके राज्य को उसके शत्रुओं ने तहस-नहस कर दिया। राजा को बंदी गृह में डाल दिया गया। एक दिन भद्रायु के मंत्र से प्रसन्न हो शिवयोगी पुनः प्रकट हुए। उन्होंने उसे एक खड़ग और एक शंख दिया तथा बारह हजार हाथियों का बल देकर वह अंतर्ध्यान हो गए। भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें मार भगाया और राज्य को अपने अधीन कर अपने पिता को बंदी गृह से मुक्त किया। उसका यश चारों ओर फैल गया। भद्रायु ने शिव पूजा करते हुए वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया और अंत में शिवसामुन्य को प्राप्त हुआ। यह महामृत्युंजय मंत्र के जाप का लोकोत्तर महात्मय है। ज्योतिषी आज भी इस मंत्र की महिमा के बारे में कहते और लिखते हैं कि यदि 125000 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया  जाए तो अरिष्ट ग्रह का निवारण, आयुष्य वर्धनार्थ, अपघात या बच्चों को अल्प मृत्यु से भी बचाया जा सकता है। इस जप के कई तरह के अनुष्ठान व प्रयोग प्रचलित हैं। इनमें सबसे छोटा व सरल प्रयोग यह है ः

ओउम हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसै राप्लावयंत शिरो

द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम।

अंकन्य स्तकर द्वयामृतघटं कैलाश सकांतं शिवे

स्वैच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटाभांतात्रिनेत्रं भजे।

मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम

जन्म मृत्युजरारोगैः पीडि़तं कर्मबंधनैः।

अथ बृह-मंत्र की पांच माला जप

ओउम हों ओउम जूं सः भूर्भुवः

स्वः त्रयम्बकं।

इस प्रकार यह मंत्र व्यक्ति को मौत से भी बचा लेता है। इसी कारण इस मंत्र की सामाजिक स्वीकार्यता भी है। देश भर में कई अवसरों पर आयोजन करके लोग महामृत्युंजय जाप करके विविध संकटों से मुक्ति पाते हैं। इस मंत्र को लेकर लोगों में अकसर विश्वास की भावना रहती है। इसी कारण इस महामंत्र को सामाजिक स्वीकार्यता भी मिली हुई है। प्रायः हर वर्ग और उम्र के लोग इस महामंत्र का जाप करते हैं और आसन्न संकटों से मुक्ति पाते हैं।

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