यहां मेंढक की शादी से होती है बारिश

By: Aug 19th, 2017 12:05 am

असम के डिब्रूगढ़ के गांव में उभयचर अनुष्ठान होता है जहां मेंढक का विवाह करवाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से सूखे में भी बारिश होने लगती है। अनुष्ठान के दौरान लोग दो मेंढकों के बीच शादी समारोह का आयोजन करते हैं…

भारत परंपराओं का देश है। यहां की अनेक परंपराएं बड़ी विचित्र हैं जो हर किसी को हैरान करती हैं। बारिश करवाने को लेकर ही देशभर में अनेक परंपाएं हैं। इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते हैं। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बारिश न होने पर असम के डिब्रूगढ़ में लोग मेंढक की शादी तो इलाहाबाद में कीचड़ स्नान के लिए भी तैयार हो जाते हैं। यह सब इसलिए किया जाता है कि मानसून में बारिश बेहतर हो सके। उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य असम में डिब्रूगढ़ के गांव में उभयचर अनुष्ठान होता है जहां मेंढक का विवाह करवाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने पर सूखे क्षेत्र में भी बारिश होने लगती है। अनुष्ठान के दौरान गांव के लोग दो मेंढकों के बीच एक शादी समारोह आयोजित करते हैं और अच्छी फसल के लिए बारिश की मनोकामना इंद्रदेव से की जाती है। मेंढक की शादी के लिए दो बेड़े तैयार किए जाते हैं जिन्हें पारंपरिक रंग से सजाया जाता है। यह विचित्र विवाह समारोह लगभग पांच से छह घंटे तक चलता है। शादी में पारंपरिक भोजन की दावत भी होती है। जब यह पूरा समारोह संपन्न हो जाता है तो नर और मादा मेंढक को पास के तालाब में छोड़ दिया जाता है। इस तरह लोग डिबू्रगढ़ में बारिश का इंतजार करते हैं। बारिश कराने के लिए भारत में अन्य कई विचित्र परंपराएं भी हैं,जैसे तबेलों में बैठकर हवन करना आदि। गुजरात के अहमदाबाद में बारिश न होने पर पुरुष परजान्या यज्ञ करते हैं। यह यज्ञ वैदिक तरीकों से किया जाता है जिसमें यज्ञकर्ता पानी से भरे तबेलों में बैठकर हवन में आहुति देते हैं। जब अहमदाबाद या इसके आस-पास के क्षेत्रों में बारिश नहीं होती तब यह यज्ञ किया जाता है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में बच्चे इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए कीचड़ स्नान करते हैं। यह यज्ञ सैकड़ों वर्षों से किया जा रहा है। कीचड़ स्नान इलाहाबाद ही नहीं बल्कि कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में भी किया जाता है। एक अन्य प्रथा के अनुसार इलाहाबाद में ही एक परंपरा यह भी है कि बारिश के लिए महिलाएं 32 किलोमीटर दूर तक खेतों में हल चलाती हैं। ऐसा वह अच्छी फसल के लिए करती हैं। इलाहाबाद के आस-पास के क्षेत्रों में भी यही प्रथा अच्छी बारिश के लिए निभाई जाती है। उधर झारखंड के रांची में स्थित एक मंदिर में लाठी मंदा महोत्सव मनाया जाता है जहां बारिश के लिए अनुष्ठान किया जाता है। इस दौरान लोग लाठी लेकर मंदिर के मैदान में काफी समय तक लेटे रहते हैं और अच्छी बारिश की कामना करते हैं। इसके अलावा एक बार कर्नाटक में सरकार ने अच्छी बारिश के लिए हवन का आयोजन भी किया था जिसमें 20 लाख रुपए खर्च हुए थे। ऐसा शायद पहली बार हुआ था जब सरकार की ओर से बारिश के लिए पहल की गई। कर्नाटक के महाबलेश्वर में इस दौरान कावेरी बेसिन की पूजा की गई थी जिसमें एक अनुमान के मुताबिक 20 लाख रुपए तक खर्च किए गए थे। इस तरह देशभर में बारिश करवाने के लिए जगह-जगह अनेक परंपराएं प्रचलित हैं। सूखे से पीडि़त लोगों को बारिश के लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है।

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